Sunday, May 1, 2011

प्रेम अंकल इंटरनेट और वर्ल्ड कप

प्रेम अंकल इंटरनेट और वर्ल्ड कप
संस्मरण – प्रेमचंद सहजवाला
प्रेम अंकल ने जब पहली बार इन्टरनेट के बारे में पत्रिकाओं में पढ़ा तब बेहद प्रसन्न हुए. उन्हें सब से ज्यादा तो यही चीज़ भाई कि यदि हम अमरीका में कोई पत्र डाक के रस्ते भेजें तो उसे वहाँ पहुँचने में पंद्रह से बीस दिन तक आसानी से लग सकते हैं, पर यदि वही पत्र इन्टरनेट द्वारा भेजें तो उसे पहुँचने में एक मिनट से भी कम समय लगेगा! पर जब इन्टरनेट सचमुच अंकल के ऑफिस में आ गया तो वे चकित थे कि केवल पत्र यानी ई मेल भेजना तो मामूली सी बात है और कि किसी भी परिचित या अपरिचित से गपशप यानी चैट करना भी बहुत मामूली सी बात... ये सब तो इंटरनेट की ऐसी सेवाएं हैं जैसे खाने के साथ चटनी वटनी होती है. इंटरनेट पर तो पूरा का पूरा अखबार भी पढ़ा जा सकता है, सिर्फ भारत का नहीं, अमरीका का ‘वाशिंगटन पोस्ट’ भी तो पाकिस्तान का ‘द डॉन’ भी और कई अन्य. प्रेम अंकल अब एक साथ कई अखबार इंटरनेट पर पढ़ने लगे. सब से पहले तो उन्होंने एक्सप्रेसइण्डिया.कॉम खोला और वहाँ कभी कभी बड़े बड़े लोगों से चैट भी करते. कभी बिशन सिंह बेदी से तो कभी जसवंत सिंह या वाजपेयी से और कभी भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त अशरफ जहाँगीर काज़ी तक से! उनके चैट पर पूछे गए प्रश्न उत्तरों समेत अखबार में छपते और वे चकित होते कि जो कुछ पहले पत्र पत्रिकाओं में संभव था वह अब तत्क्षण इंटरनेट पर भी संभव है. वैसे मज़ेदार बात यह भी अंकल अभी सारी शब्दावली नहीं सीख पाए थे. उदहारण के तौर पर फुर्सत के क्षणों में वे एक बार चैटिंग पर बैठे तो कैनाडा में बैठी एक अजनबी युवती गुज्जूगर्ल ने उन से पूछा – ए.एस.एल? अंकल समझे लड़की पूछ रही है कि क्या आप आसनसोल से हैं? उन्होंने जवाब दिया कि नहीं, मैं आसनसोल से नहीं हूँ, मैं तो दिल्ली में रहता हूँ. फिर गुज्जूगर्ल से वे पूछने लगे कि आपका नाम गुज्जूगर्ल क्यों है? तब उस लड़की ने बताया कि उसका नाम तो जूली पटेल है पर वह क्योंकि गुजरात से है सो उसने अपना चैट नाम रख दिया है गुज्जूगर्ल! तब अंकल ने भी क्या किया कि अपना चैट नाम रख दिया बुद्धू! पर जूली पटेल अंकल से कहती कि आप बुद्धू लगते ही नहीं हो! आप तो इतना कुछ जानते हो! पर एक दिन मज़ेदार बात यह हुई कि जूली पटेल यानी गुज्जूगर्ल अंकल से चैट करती करती बोली – बी.आर.बी. बुद्धू समझा ही नहीं. काफी देर गुज्जूगर्ल गायब रही पर जब लौटी तो बेचैन से प्रेम अंकल ने उस से पूछा – ‘बी.आर.बी का मतलब?’ गुज्जूगर्ल बोली – ‘अंकल बी.आर.बी का मतलब मैं अभी आई. बी राईट बैक!’ तब अंकल ने गुज्जूगर्ल से यह भी पूछा कि पहले दिन उसने यह क्यों पूछा था कि क्या मैं आसनसोल से हूँ? इस पर गुज्जूगार्ल ने अपना कहकहा टाईप कर दिया – हा हा हा हा. ए.एस.एल था वह, इस का मतलब आप कितने साल के हो, नारी हो या पुरुष. आप कहाँ से चैट कर रहे हो? अब एक दिन गुज्जूगर्ल बात करते करते अंकल से बोली – ‘जस्ट वेट, आइ ऐम सेटिंग माई लैपटॉप.’ अंकल ने समझा गुज्जूगर्ल की गोद में कोई बच्चा है सो बोले – ‘इज़ यूअर बेबी सिटिंग ऑन यूअर लैप? ओके, पुट हिम इन बेड.’ गुज्जूगर्ल को बहुत गुस्सा आया, बोली – अब तो लगता है आप सचमुच बुद्धू हो अंकल. लैपटॉप तो कम्प्यूटर को ही कहते हैं जो एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सकता है.’ बहरहाल, अंकल को अब नेट के इस्तेमाल में खूब मज़ा आया. देखते देखते एक दिन वे यहाँ तक पहुंच गए कि अपना एक क्रेडिट कार्ड का बिल भी अंकल ने नेट पर भर दिया! बिल्कुल ही नहीं डरे! दरअसल अंकल के बेटे ने भी उन्हें बहुत कुछ समझा दिया था और गुज्जू ने भी. अब अंकल काफी एक्सपर्ट हो गए. अब उनके लिए सपत्नीक मुंबई अपनी ससुराल जाने के लिए आरक्षण करवाने के लिए घंटों लंबी लाइन में खड़े होने के दिन लद गए. अब वे अपनी गाड़ियों के और हवाई उड़ानों के आरक्षण भी नेट पर कराने लगे और उन्हें लगा कि नेट तो उस जादुई कालीन की तरह है जिस पर बैठ कर कोई भी व्यक्ति दुनिया के किसी भी कोने में आधे मिनट में ही पहुँच सकता है. शायद दुनिया के सब बड़े बड़े व्यापार भी अब तेज़ी तेज़ी से इंटरनेट पर होते होंगे. पर अंकल को लगा कि नेट पर बड़ी होशियारी भी ज़रूरी है शायद. पर फिर भी अंकल ने अब अपने बिजली के बिल, टेलीफोन के बिल, मोबाईल के बिल और यहाँ तक कि हाऊस टैक्स और सिनेमा के टिकट के पैसे तक नेट पर भरने शुरू कर दिए थे और उन्हें अज़खुद खुशी होती थी. अब अंकल की नेट यात्रा और भी मज़ेदार सी होने लगी थी. जब कॉमनवेल्थ गेम्स आए तो अंकल को बेचैनी सी हुई कि ये गेम्स सपत्नीक आखिर कैसे देखे जाएं. अंकल ने गूगल में टाईप कर दिया ‘कॉमनवेल्थ गेम्स टिकेट्स और गेम्स का वेबसाईट पता चल गया. अंकल ने धडाधड एक तो स्व्मिंग के और एक एथलीट्स के दो दो टिकट बुक करा दिए फिर बेसब्री से इंतज़ार करने लगे टिकटों के कोरियर का. बहुत बेसब्री के इंतज़ार के बाद गेम्स शुरू होने से एक दिन पहले दोनों खेलों के टिकटों के कोरियर आ गए. अंकल बेहद खुश थे. आंटी के साथ हो आए. स्टेडियम के बाहर से सीट तक पहुँचने की लंबी लाइन और लंबा फासला उन्हें महसूस ही नहीं हुआ. पर जब अंकल ने वर्ल्ड कप के टिकट बुक कराये तो बुरे फंसे. अब की बार उन्हें पता चला कि नौ मार्च को दिल्ली के फिरोज़ शाह कोटला में हो रहा है भारत का मुकाबला नेदरलैंड्स से! भला यह मौका वे कैसे चूक सकते थे अंकल! उन्होंने तो कट् कट् कट् कट् कर के आँखें मूँद कर दो टिकट बुक करा दिए. पत्नी को उन्होंने बताया कि तीन तीन सौ के हिसाब से दो टिकट के छः सौ रूपए और सौ रूपए कोरियर के कर के उन्होंने आठ सौ रूपए भर दिए हैं! पत्नी भी खुश हो गई पर अंकल बेसब्री से इंतज़ार करते ही रह गए. टिकट का कोरियर आया ही नहीं और मैच का दिन भी आ गया. अंकल ने पिछली रात देर तक बैंगलोर पूना दिल्ली वगैरह के बहुत से फोन मिलाए पर सब जगह से यही जवाब मिला कि जो नंबर आप टिकेट के साईट क्याजूँगा.कॉम से प्राप्त हुए एस.एम.एस से पढ़ कर बता रहे हैं वह नंबर उनके कम्प्यूटर में है ही नहीं! ठीक नौ मार्च सुबह सुबह बेटे ने उनसे कहा कि क्याजूँगा.कॉम का ऑफिस तो लोदी रोड पर ही साईं बाबा मंदिर के साथ कोठी नं. 13 में है, वहीं जा कर क्यों नहीं पता करते? और अंकल सुबह सुबह नौ बजे ही पहुँच गए क्याजूँगा के ऑफिस और वहाँ खूब ताव में आ कर पूछने लगे कि उनके टिकट गए कहाँ. एक लड़की ने उन्हें चैन से बिठाया कि अंकल वो एस.एम.एस दिखाओ आप. मैं चेक करती हूँ. लड़की ने तुरंत अपने लैपटॉप में एस.एम.एस में दर्ज नंबर टटोला तो लैपटॉप का ही स्क्रीन अंकल की तरफ करती बोली – ‘अंकल आपने टिकट के पैसे भरे कहाँ हैं? टिकट तो पांच सौ पचहत्तर रूपए का एक है? जबकि आपने टिकटों की बजाय उन सीटियों पर क्लिक कर दिया हैं जो दर्शक गण मैच देखते देखते बजाते हैं. ये लीजिए,’ और वह लड़की उस नंबर के मुताबिक अंदर से एक छोटा सा बॉक्स ले आई. उस लड़की ने ही फिर खोल कर अंकल को दिखा दिया कि देखिये, ये हैं टिकेट, इन्हें ऐसे गर्दन के गिर्द हार की तरह पहनते हैं!
अंकल के घर का नज़ारा खूब मज़ेदार था. बेटा तो ऑफिस जा चुका था पर ढाई बजे जब मैच शुरू हुआ तो अंकल आंटी टी.वी के सामने कुर्सियां डाल और वे सीटियाँ हार की तरह अपनी गर्दनों में पहन कर बैठ गए. जब भी नेदरलैंड का कोई खिलाड़ी आऊट होता या भारत की पारी में भारत की तरफ से कोई सिक्सर या बाऊंड्री वाऊंद्री लगते तो दोनों ज़ोर ज़ोर से सीटियाँ बजने लगता और एक दूसरे की तरफ देख खूब हँसते. वह दिन याद कर के और कभी कभी वे सीटियाँ निकाल कर आज भी अंकल को इन्टरनेट पर की हुई अपनी भूल पर खुद पर ही खूब हंसी आ जाती है!

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