Saturday, June 16, 2012

अफ़सोस हम फेसबुक पर नहीं बता पाएंगे...

अफ़सोस हम फेसबुक पर नहीं बता पाएंगे... कहानी - (प्रकाशित ‘हंस’ जून 2012) कहानी – प्रेमचंद सहजवाला फेसबुक की जगमगाती दुनिया से मैं वाकिफ ना था. कभी कभी चला जाता था. पर एक दिन एक दोस्त क्या बनी, मैं फेसबुक का ही हो गया. उस के साथ अचानक एक दिन चैट शुरू हो गई. मैं अभी यूं ही फेसबुक के अपने पन्ने पर अपनी डायरी के कुछ पन्ने उंडेल ही रहा था कि अचानक एक रिक्टैंगल सी उछली, कोई अलीशा बोल पड़ी – ‘हाय.’ सोचा देख लूं, यह हसीना है कौन? सो चैट की रिक्टैंगल के टॉप पर उसी के नाम को क्लिक कर दिया तो उसी का पन्ना आ गया. वाऊ! कितना तो मारक चेहरा है! फिर उसके फोटो एल्बम में गया तो अजब अजब सी आकर्षक तसवीरें अलीशा की. फोटो एक के बाद एक बदल कर फिर फिर पीछे, पिछली फोटो पर लौटता तो दांतों तले अंगुली दबा देता. बहुत हसीन है यह चेहरा. हर जगह है, दिल में छा सा जाता है. कहीं गोवा के बीच पर बैठा है, सेक्सी सेक्सी सा, तो कहीं घनी पहाड़ियों के बीच उस की उन्मुक्त सी खिलखिलाहट, उस के बॉब कट बाल सलोने से मुखड़े पर चार चाँद लगाते. कहीं वह कई लोगों के बीच, शायद अपने घर के ही लोगों के बीच खिलखिलाती सी बैठी है, कहीं वह अपने पापा के साथ, उन से लिपटती हुई तो कहीं मॉम के साथ चिपटती हुई! कब बनाया था इस अलीशा नाम की सुँदरी को मित्र, कुछ याद नहीं आ रहा. मैं भी हैंडसम हूँ, यानी माना जाता हूँ, सो उसी ने फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी होगी. और मैंने ऐक्सेप्ट कर ली होगी. पर आज अचानक उस ने दूसरी बार टाईप किया – ‘हाय हैंडी!’ ‘हैंडी’ मतलब जल्द हाथ आ जाने वाला, या हैंडसम! मैं खुद पर खुद ही मुस्करा दिया. जल्दी ही किसी के हाथ आ जाऊँ तो अपनी भी जवानी किसी काम आए. अभी तो नौजवानी में ही बिज़नेस शुरू कर के पूरा बहीखाता सा बन गया हूँ. बहरहाल, मैं ने झट से टाईप किया – ‘हाय’! फिर जब तक वह जवाब दे, मैंने अगली लाईन में फिर टाईप कर दिया – ‘हाय ब्यूटी!’ - ‘मुंबई में कहाँ रहते हो?’ - ‘महीम’, मैंने झट से उत्तर टाईप कर दिया. - ‘वाऊ. वह तो बहुत पॉश कॉलोनी है ना!’ - ‘ह्म्म्म. आप दिल्ली में कहाँ?’ - ‘जोर बाग.’ - ‘वाऊ. वह तो करोड़पति लोगों की कॉलोनी है!’ - ‘क्यों नहीं. मेरे पिता तो इंडस्ट्रीयलिस्ट हैं. दिल्ली आए कभी हैंडी?’ - ‘आया था ब्यूटी, लोदी गार्डन घूमता रहा था. सामने ही लोदी का मकबरा. सर्दियों का मौसम खत्म होने को था और बहुत बड़े बड़े फूल देख चकित था. इतने सुंदर फूल भी होते हैं!’ - ‘वहीं, लोदी गार्डन के सामने ही तो है जोर बाग!’ - ‘आई नो. सचमुच, आप सी हसीना पहले कभी फेसबुक पर देखी ही नहीं थी.’ - ‘इज़ इट! क्या मेरी ख़ूबसूरती पूरी की पूरी देख चुके?’ - ‘थोड़ी सी देख कर ही हैरान हूँ. पहाड़ों के बीच खड़ी सुंदरता देख थरथरा गया था मन.’ - ‘ह्म्म्म! स...च! पर मेरी बहुत कम तस्वीरें देख पाए हो तुम हैंडी, अभी मेरी पूरी ख़ूबसूरती से वाकिफ कहाँ हो तुम?’ - ‘फिलहाल तो उस ख़ूबसूरती के गुरूर से वाकिफ हो रहा हूँ हे सुंदरता की देवी!’ - ‘हा हा. गुरूर तो मुझ में है ही. पर मेरी ख़ूबसूरती की एक और झलक देखोगे? घबरा जाओगे क्या?’ - ‘घबराने की बात नहीं है. तुम खुद तो नहीं घबरा रही हो ना?’ - ‘नो नो. हा हा. घबराहट होती कौन सी चिड़िया है, मैं जानती ही नहीं. आज़ाद खयालों की हूँ, हर ज़रूरत बटोरना अपना हक समझती हूँ. दोस्ती तक को कैज़ुअली लेती हूँ. सब कुछ, सब कुछ कैज़ुअली!’ - ‘आखिर किसी को तो चाहती होगी! कौन है वो!’ - ‘मैं खुद. खुद अपने से ज़्यादा प्यार मुझे किसी से नहीं.’ - ‘क्या मुझ से भी नहीं.’ - ‘वाऊ. इतने स्मार्ट मत बनो. क्या मेरी तस्वीरें देखोगे? कितनी हॉट हूँ, महसूस करना चाहोगे?’ - ‘इस लायक समझती हो तो दिखा दो एक झलक.’ - ‘ओके. अपना मेल आई.डी. दे दो ना. या इस लिंक को क्लिक करो.’ और एक लिंक सामने आ गया. पर मैंने अपना ई मेल ऐड्रेस दे दिया, फिर झिझक कर उस लिंक को क्लिक ही कर दिया. सामने जो ऐल्बम थी, मुझे अपनी गिरफ्त में ले गई. गोवा की बीच पर बिकिनी में बैठी अलीशा. बाथरूम की मिरर के सामने शॉवर लेती कंधों तक ही दिखती अलीशा. एक अँधेरे की छाया जैसी आकृति अलीशा जिस से पता नहीं चल रहा था कि निर्वस्त्र है कि कुछ पहन रखा है. उन तस्वीरों में मैं फिलहाल खो गया हूँ, इसलिए अलीशा काफी सब्र से इंतज़ार कर रही होगी, यह महसूस हुआ तो पूछ बैठा – ‘ये तस्वीरें किस ने खींची ब्यूटी!’ - ‘मैंने खुद. एक ऑटोमेटिक कैमेरा से.’ - ‘ह्म्म्म. होती है, ऐसी एक कैमेरा भी. पर अलीशा, रुको...’ - ‘ओके. देख लो कुछ और तसवीरें.’ - ‘इस... इस तस्वीर में जिसमें तुम शायद अपने ही बेडरूम में हो, तुम्हारी तस्वीर के टॉप पर किसी की फिंगर सी आ गई है, लगता है किसी ने कैमरा से खींचते हुए लेंस के किनारे ही अपनी अंगुली फिट कर दी गल्ती से.’ - ‘ह्म्म्म. वह एक दो तसवीरें मेरे एक्स-बॉय फ्रेंड ने खींची हैं, जब वह बॉय फ्रेंड था. मेरे साथ जॉब करता था. फिर हमारी दोस्ती टूट गई, सिर्फ चार बार साथ सोने के बाद.’ ख़ासा नर्वस था मैं, फिर भी मज़ा आ रहा था. पर उस की कई तस्वीरों से यह कदापि नहीं लगा कि वह कोई प्रोफेशनल सेक्स वर्कर है. एक आला खानदान की लाडली बेटी ज़रूर लगी अपनी फैमिली वाली तस्वीरों से. न न, वह तो कोई मॉडल भी नहीं लगती. पर ना जाने क्या लगती है वह. शायद वह कोई बहुत मामूली सी, किसी अमीर उद्योगपति की आज़ाद सी बेटी है जिस के लिये खुद अपने आप से प्यार करने के अलावा और कुछ ज़रूरी होगा ही नहीं. इसलिए मैंने पूछा ही नहीं, तुम्हारा वह बॉय फ्रेंड कौन था, क्यों अलग हुआ, वह भी चार पांच बार तुम्हारे साथ सम्भोग करने के बाद! पुनः उसके पन्ने से उसकी उम्र देखी, पर वहाँ सिर्फ जन्मदिन लिखा था. उसकी तस्वीरों से अंदाजा लगाया, बीस बाईस से ज़्यादा क्या होगी. मैंने कहा – ‘आज हमारी दोस्ती की शायद यह पहली मुलाकात है. जाते जाते क्या दोगी मुझे? कुछ मांग लूं तो उतनी दूर से दोगी भी क्या.’ वह बोली – ‘इतनी दूर से भी काफी कुछ दे सकती हूँ. पर न जाने क्यों, मैंने तुम्हें पसंद कर लिया है, सो मैं कहूंगी तुम दिल्ली आओ, जोर बाग, मेरे पापा की कोठी में. खासे अमीर हो, फ्लाईट पकड़ लो किसी दिन.’ - ‘पर तुम्हें क्या पता अलीशा मैं कैसा व्यक्ति हूँ. कोई लुटेरा निकलूँ तो!’ - ‘हा हा हा हा हा हा.’ उसने चार पांच बार हा हा हा हा टाईप कर दिया, बोली – ‘हमारी कोठी में आ कर कोई हमें ही लूट ले! ऐसी जुर्रत! बहुत खतरनाक सिक्यूरिटी मैन खड़ा होता है यहाँ! उस की तो डील डौल से ही घबरा जाओगे! पर जाने दो, तुम्हें क्या चाहिए बोलो!’ - ‘बस... एक ‘किस’ दे दो.’ - ‘लोप्!’ और उसने एक और लिंक फेंक दिया. उसे क्लिक किया तो सामने ही बड़े चुलबुलाते से दो गुलाबी गुलाबी होंठ ‘पुच पुच’ करते बार बार बंद हो रहे थे, फिर थोड़े महीन से ही खुल जाते. मैं चकित था. फिर आखिर टाईप कर दिया – ‘पुच! थैंक्स अलीशा. बोलो कब आऊँ मैं दिल्ली! जोर बाग...’ - ‘मैं नेक्स्ट संडे के बाद फ्री हूँ. आ जाओ. मोस्ट वेलकम.’ और उस मुलाकात के आखिरी चुंबन के बाद मैंने फ्लाईट भी बुक करा ली. * * अगले ही वेनिस्डे की. गो एयर फ्लाईट नंबर जी एट वन फाईव टू. जैसे किसी एडवेंचर पर निकल पड़ा हूँ. सोचा नहीं, यह खराब लड़की हो ही नहीं सकती, यह अपने तरीके से जीने वाली एक बहादुर हिंदुस्तानी लड़की है. और वेनिस्डे शाम को ही मेरी फ्लाईट उतर रही थी इंदिरा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय विमान पतन. बाहर आया तो लोगों की भीड़ थी, पर ज़रा ही दूर, केपरी पहने, एक फूलदार, बाहर फूलते से टॉप में जो सुँदरी दिखी, उस के हाथ में एक बैनर सा देखा, मेरा ही नाम था – आशीष, फ्रॉम मुंबई. ब्यूटी लापरवाही से रेलिंग पर टेक सी लगाए अकेली खड़ी थी, जैसे वह दुनिया का हर काम अकेले ही कर लेती है, और सचमुच दिखा भी ऐसा ही. अपनी कार को वह रिंग रोड पर फर्राट से दौड़ाए जा रही थी. ऐसा लगा कि यही ब्यूटी, ऐसे ही आत्मविश्वास के साथ अंतरिक्ष तक जा सकती है, अंतरिक्ष में रहने के रिकॉर्ड ब्रेक कर सकती है! उसने एक कैसेट चला रखा था – ‘ना तो दोस्त है ना रकीब है, तेरा शहर कितना अजीब है... मैं किसे कहूँ मेरे साथ चल, यहाँ सब के सर पे सलीब है...’ जब मैं उस के करीब जा खड़ा हुआ था, बहुत तबियत से मुस्कराई थी वह – ‘आशीष? माय फेसबुक फ्रेंड. हैंडी?’ - ‘या. मी ओनली.’ उसकी मुस्कराहट में सचमुच, एक सच्ची खुशी और स्वागत का सा भाव था. उसने तपाक से अपना हाथ आगे बढ़ाया था, और मैंने हाथ बढ़ा कर उसका हाथ थाम लिया था. वहाँ से बात करती करती पार्किंग तक आई और अपनी कार पहचान कर उसमें बैठ गई और मुझे भी अपने साथ वाली सीट पर आने को कहा. कार के बाहर ही खड़े थे जब, मेरा मन किया था कि कह दूं – ‘जो तुमने फेसबुक में चैट के अंत में दिया था, वह क्या इस मुलाक़ात के शुरू में नहीं दोगी?’ उसने जैसे चुपचाप कह दिया था – ‘हाँ, दूंगी. तुम मांगो तो!’ पर नहीं, मुझे लगा था कि मैं ज़रा सा भी उसे जानता होता तो वह वहीं, जहाँ रेलिंग पर खड़ी थी, मुझे मिलते ही कम से हग ज़रूर करती और वह ‘किस’ भी दे देती जिस का मैं चाहे अनचाहे ही प्यासा हो गया था, वह भी इस ब्यूटी का! अलीशा का! सोचा दिल्ली मुंबई में यह सब सिर्फ हवाई अड्डों पर चलता है, कि कोई किसी को पकड़ कर ‘किस’ कर दे या ‘किस’ दे दे. बाकी तो शहर में कभी कभी पोलिस भी घुस जाती होगी, लोदी गार्डन जैसी जगहों पर. मुंबई में तो शिव सेना वाले पीछे ना पड़ जाएं बस, वर्ना... यहाँ आज़ादी नाम की चीज़ नहीं. विदेशों में तो हर कोई हर किसी से मिलते ही लिपट पड़ता होगा, मौके बे मौके ‘किस’ कर लेता होगा! यह तो प्यासे लोगों का देश है ना! यहाँ तो प्यासे प्यासियाँ ही रहती हैं, प्यासे प्यासे मर्यादा पुरुषोतम और प्यासी प्यासी अनुसुयाएं! बहरहाल, जोर बाग की वह कोठी आ गई. जहाँ हमें पहुंचना था. पीछे ही कहीं वे रेलिंग जैसी सीढ़ियाँ थीं, अलीशा कह रही थी, ये पीछे की सीढ़ियाँ पता है क्यों बनी थी? एकदम एक रूसी लेखक के अंदाज़ में, कि मैं जब स्कूल में थी ना, कहीं मेरी सहेलियां घर के ड्राइंग रूम के बाहर की लॉबी से गुज़र कर लिफ्ट में जाएँगी तो लॉबी अपनी टॉफियों के रैपर्स वगैरह फेंक कर खराब ना कर दें. कह कर वह इतनी उन्मुक्त सी खिलखिलाई जैसे एयरपोर्ट से यहाँ तक के सफर में ही मेरी अपनी हो गई हो. पीछे रेलिंग जैसी सीढ़ियाँ चढ़ कर हम किसी मिडल फ्लोर तक ही पहुंचे, कि एक प्यारी सी लिफ्ट आ गई. और यहाँ सेकंड फ्लोर तक पहुँच कर कमरे में घुसते ही मुझ में इतनी हिम्मत बख्श दी थी उस ब्यूटी अलीशा ने कि मैंने पूछ डाला – ‘जो कुछ तुमने फेसबुक की चैट के अंत में सिर्फ फोटो क्लिक कर के दिया, वह अब नहीं दोगी ब्यूटी?’ - ‘हा हा हा हा हा हा ... ‘ वह लगातार हँसती ही चली गई. बोली, यह सारा फ्लोर अपना है. मेरा. यहाँ हम जो चाहे करेंगे, आप की फ्लाईट तो परसों की है ना, कुछ सब्र करो हैंडी. सब दूंगी. जिसके लिये बुलाया है वह दिये बिना कैसे जाने दूंगी तुम्हें.’ मेरी हिम्मत भी अब चार चाँद चढ़ गई थी, कुछ नहीं होगा. यह बहुत अच्छी, पवित्र सी लड़की है. न न, मेरा कोई खर्च नहीं कराएगी, न लूटेगी. मैंने क्या किया कि वह अभी अपनी कार की चाबी ऊपर किसी सुंदर से शो केस में रख रही थी कि उसकी कमर को दाहिनी बांह से घेर लिया. कोई डर नहीं था, वह गुस्सा नहीं करेगी, यह जैसे उसकी आत्मा ने मेरी आत्मा से कह दिया था. उसने भी क्षण भर में फारिग हो कर मुझ से लिपट कर एक ‘किस’ देते हुए कहा – ‘उतावले मत बनो हैंडी, ये दो रातें हमारी हैं, ये सारा समय हमारा है, सारी कायनात हम दोनों की. पर पता है, यह मत कहना मुझ से, कि तुम मुझ से शादी करो ब्यूटी. अगर सूटेबल मैच देखने के खयाल से आये हो तो चले जाओ हैंडी, मेरे लिये किसी के साथ एक कप चाय पीना और एक रात सेक्स करना एक ही बात है. मैं संवेदना नाम की चिड़िया को जानती ही नहीं!’ और ‘पुच’ ‘पुच’ ‘पुच’ उसने तीन बार मेरे होंठों को गिरफ्त में ले लिया, जैसे ‘किस’ की रिक्वेस्ट मेरी नहीं थी, उसकी डिमांड थी वह. बहुत एडवेंचरस है, नहीं, बहुत नॉर्मल है यह लड़की, अलीशा, द ब्यूटी! रात डिनर हो गया. उसके पापा आए, ममी आई, सब से इंट्रो हो गया. उसके भैया सिंगापुर गए हुए हैं, परसों ही लौट आएंगे. पर मेरी फ्लाईट के बाद. वर्ना वे भी मिल लेते तुम से. उसकी ममी ने जो कुछ पूछा उसमें जांच पड़ताल जैसा कुछ नहीं था. पूछा –‘क्या बिज़नेस है?’ मैंने बता दिया – ‘एक छोटा सा प्यारा सा रेस्तरां चलाता हूँ. एक आईसक्रीम शॉप भी उसी में है, सब है. मॉल जैसा.’ उसकी ममी के लिये सब नॉर्मल था. उसके पापा ने घर के बारे में पूछा, जैसे पूछना ही नहीं चाहते हों, पर बैठ कर डिनर कर रहे हैं तो पूछना ही था. बता दिया मैंने – ‘फादर रिटायर्ड हैं, मॉम तो ज़मानों से हऊस-वाईफ़ थी.’ उसके पापा मुस्करा कर अपनी बीबी की तरफ देखने लगे, पता चल गया, वह भी ज़मानों से हाऊस-वाईफ रही होगी. बहुत से नोट गिनती होगी, घर से ही पूरे बंगलो का फाईनेंस देख लेती होगी. डिनर के दौरान ही बाहर के सुंदर लॉन सुंदर सुंदर शीशों से नज़र आ गए. एक दरबान सा शख्स गेट पर यहाँ से भी नज़र आ रहा था. और रात आ गई. हम दोनों पूर्णतः निर्वर्स्त्र निर्द्वन्द्व एक दूधिया लेकिन बहुत कम, ज़ीरो वॉट की रोशनी में एक बिस्तर पर थे. हम प्यास को असीमता तक बढ़ने देने के लिये केवल एक दूसरे से हज़ार हज़ार बार लिपट कर प्यास को असह्य बनाने की चेष्टा में ही काफी देर गुज़ार चुके थे. हम ने ऐसे ऐसे पोज़ बना डाले कि पुराने ज़माने की किताबों के चौरासी आसन भी मात खा जाएं. अलीशा खेल खेल रही थी जैसे. खेल के लिये ही उसने यह ऐडवेंचर किया हो कि एक अजनबी से फेसबुक पर मिली और पहली मुलाकात में ही खेलने लगी, जैसे किसी अजनबी के साथ बिना सोचे समझे ही टेबल टेनिस या कोई और गेम खेली जाती है. उसने और मैंने अपने अपने निर्वस्त्र बदन कुछ ऐसे जोड़ लिये कि पता ही ना चले कि यह एक व्यक्ति है कि दो. हमने बैठे बैठे ही अपने अपने घुटने कुछ इस तरह कर दिए थे, जैसे वे समुद्र की लहरें सी हों, कोई तस्वीर खींचे तो पता ही ना चले कि ये दो इंसान हैं कि जानवर, या ये दो अजगर तो नहीं, या समुद्र की लहरें ही! हम देश काल से परे नहीं हो गए थे, वरन देश काल ही हम से परे हो गया था. हम तृप्तियों को पी पी कर फिर प्यासे होने के एफर्ट लगाते, फिर फिर झपटते से एक दूसरे पर आक्रमण करते. पर इस बीच मैंने अलीशा से पूछ डाला – ‘तुम सेक्स कब कब करती हो, चलो ऐसे पूछ लेता हूँ कि तुम सेक्स किसलिए करती हो आखिर?’ अलीशा तो ऐसे सवालों के लिये बेताब थी मानो इतनी देर, कि यह फेसबुक फ्रेंड हैंडी ऐसे ऐसे सवाल करे कि मैं उसके मुंह पर गुरूर भरे तमाचे से जड़ती जाऊं. बोली – ‘जैसे किसी फ्रिज वृज में प्रॉब्लम आ जाती है ना, मैं वैसे ही किसी भी दोस्त को आने का ऑर्डर सा कर देती हूँ. हा हा... ऑर्डर कहो या ऑफर, पर नहीं मैं शायद ऑर्डर ही करती हूँ, सुनने वाले को लगता होगा कि यह ऑफर है! हा हा!!!...’ वह आश्चर्य चिह्न सी बनी उस प्रश्न के आश्चर्य का ही मज़ा लेती रह गई. लगता था, बहुत लंबी होगी यह यात्रा. ओ.टी.सी पिल्स के पंखों पर उड़ती यह निर्द्वन्द्व निडर यात्रा, जैसे अलीशा सिर्फ चाय पी रही हो. उसके चेहरे पर आत्मविश्वास का समुद्र सा था, जैसे वह मात्र किसी के साथ चाय पी रही हो! रात खत्म होने का नाम नहीं ले रही थी. लगता था, रात हम दोनों को रौंद डालेगी, पर दरअसल तो अलीशा ही रात को बेरहमी से रौंद रही थी. इस समय दुनिया बहुत कुछ और भी कर रही होगी, सब जगह केवल सेक्स का ही खेल नहीं चलता होगा, पर अलीशा ऐसे मामलों में खुदगर्ज़ सी लगती थी. दुनिया को चलने के लिये, पृथ्वी को अपनी धुरी पर घुमाने में योगदान देने के लिये वह दिन को अपने बाप की फैक्ट्री में किसी यूनिट में मैनेजर की भूमिका बखूबी निभा रही थी. एम.बी.ए हाल ही में कम्प्लीट किया था. सुबह हुई तो होश आया कि अरे, दस बज गए हैं! इस सेकंड फ्लोर पर कुल तीन कमरे का एक पूरा काम्प्लेक्स सा, जिस में सुंदर सुंदर गमले भी थे तो किचन भी था और एक डाईनिंग रूम भी और एक टेबल टेनिस लॉबी भी, लॉबी और गैलेरी की दीवारों पर आला स्तर के चित्र थे, जिन के पक्के रंगों में घूर कर देखो तो व्यक्ति खुद ही उन थ्री डाइमेंशनल से लगते चित्रों के भीतर चला जाए, एक एक पेंटिंग लाखों से कम क्या होगी, यह सारा फ्लोर अलीशा का ही था. उस के भाई का पोर्शन पूरा ही नीचे फर्स्ट फ्लोर पर था, अपने माँ बाप के साथ. दो कमरों को बीच से जोड़ने वाला एक दरवाज़ा भी था, और जब रात डिनर कर के उस की ममी के साथ मैं और अलीशा बातें करते ऊपर सेकंड फ्लोर पर आए, तब यह माना गया कि अलीशा जिस कमरे में सोती है, उसके साथ वाले कमरे में मैं सोऊँगा, यानी दोनों बेडरूम थे ये, और ऐसा ही हुआ. अलीशा की ममी अंदर सब सेट कर के मुझे माथे पर एक चुंबन दे कर माँ जैसी ममता दे कर चली गई. कुछ देर टी.वी. पर एम.टी.वी देखने लगा. अलीशा इस बीच बीच वाले दरवाज़े से आ कर बोली – ‘चलो हैंडी. हम चलते हैं,’ और हम दोनों अलीशा वाले रूम में थे. बाहर कोठी में कौन कौन होगा, इस का मुझे होश नहीं. इधर उधर नौकर चाकर होंगे, जो अब सो गए होंगे. क्या ममी को पता होगा कि अब हम दोनों एक ही रूम में हैं? अलीशा और मैं? पता होगा, मुझे अचानक अपने भीतर की कॉमन सेन्स सब बता गई. यहाँ सब को सब कुछ पता होता होगा.सब को आज़ादी है. आज़ादी ही आज़ादी. और हम दोनों उड़ आए थे आकाश में तो सुबह पांच बजे जा कर अलग हुए, और अपने अपने रूम्स में जा कर निढाल से लेट गए, जैसे अब उस आराम का हम दोनों को पूरा पूरा अधिकार था. दस बजे वाशरूम वगैरह से निपट कर मैंने दरवाज़ा खोल दिया था और अलीशा की ममी जैसे नीचे फर्स्ट फ्लोर या हो सकता है वह ग्राऊंड फ्लोर पर हो, से ही सब कुछ जानती बूझती रही होगी कि अभी हम दोनों जागे नहीं हैं. पर कुछ ही देर बाद फिर अलीशा की ममी आ गई. उसके साथ ही अकारण मुस्कराती एक जवान परंतु मोटी सी नौकरानीनुमा कोई लड़की हाथ में चाय नाश्ते की ट्रे लिये थी. वह किस के साथ मुस्करा रही थी, इसका पता ही नहीं चल रहा था. पर अंडरस्टुड था कि वह इस उम्मीद से हवा सूंघते सूंघते ही मुस्करा रही होगी कि अलीशा बिटिया का दोस्त उसके साथ मुस्कराएगा, कुछ अपनापन दिखाएगा. मैंने ऐसा ही किया. ममी एक सेटी पर ही बैठ गई. दिल्ली की कई बातें पूछती रही, वह नौकरानी चाय बना कर चम्मच चीनी से भर कर मेरी ओर देखती ही रह गई कि कितनी डालूँ, मैंने कह दिया था – ‘सिर्फ एक चम्मच.’ * * उस दिन हम लोदी गार्डन घूमे थे. अलीशा बोली – ‘सामने ही वो देखो, मौसम भवन है, वहाँ टेम्प्रेचर लिखा होता है, पर हमें तो सर्दियों में ज़्यादा मज़ा आता है, जितना कम मिनीमम होता है, मुझे उतना ही ज़्यादा मज़ा आता है. पर ये तो बीच बीच के दिन हैं ना. यहाँ मैं मॉर्निंग वाक करने ज़रूर आती हूँ. सिर्फ तब तब नहीं, जब रात भर कोई मेरे साथ हो.’ ये दिन तो ज़्यादा सर्दी के ना थे. सिर्फ शुरू ही हुई हैं सर्दियाँ. इस समय शाम लगभग उतरी ही थी और हम दोनों लोदी के मकबरे के सामने ही एक रोमांटिक कपल की तरह घूम रहे थे. आसपास ऐसे असंख्य जोड़े आ चुके थे, जैसे उनके आते ही अब शाम गुज़रेगी, वर्ना शाम ना तो आती ना गुज़रती. अलीशा लॉन्स की तरफ निकल आई और इधर उधर घने घने झुरमुटों में जोड़े बहुत इत्मीनान से बैठना शुरू कर चुके थे. मैंने अचानक पूछ डाला – ‘ये लोग कितने बदनसीब होते होंगे, यहाँ आ कर दुनिया भर से छुप कर भी और दुनिया भर को दिखा कर भी सेक्स का मज़ा लेते होंगे, झुरमुटों में छुप कर. कभी कभी तो...’ अलीशा हल्की हो चुकी थी, इतनी कि जैसे अभी उसे कोई वज़न चाहिए ही नहीं. मेरी बात के उत्तर में बोली – ‘हाँ, यहाँ यही तो ट्रैजेडी है कि जो कुछ हो रहा है उसे अच्छी नज़र से नहीं देखा जाता, जब कि मैं अपना हक पूरा वसूल कर लेती हूँ, सेक्स करना मेरा हक है, मैं किसी से क्यों डरूं.’ - ‘यहाँ कभी कोई गड़बड़ हुई होगी...’ अलीशा हल्की सी मुस्कराई – ‘गड़बड़ कि भगदड़?’ - ‘हा हा,’ अब की बार मैं अलीशा की तरह ‘हा हा’ कर के हँसने लगा, जैसे किसी हसरत या ईर्ष्या से उसकी तरह हंस रहा हूँ. अलीशा ही बोली –‘हाँ एक बार गड़बड़ हुई थी, मेरी एक फ्रेंड ने अचानक मुझे फोन किया. मैं तो ऑफिस में थी अपने, यहाँ से काफी दूर है वह, पर मैंने दो चार फोन खड़खड़ाए और सब ठीक हो गया. फ्रेंड ही बोली थी सब ठीक हो गया अलीशा डोंट वारी. मैंने ही उस से कहा था – ‘अभी वो कल्चर यहाँ आया नहीं दोस्त कि हम वो सब हासिल कर लें, जो हमें चाहिए. अभी तो तुम भी अनुसूया हो और मैं भी अनुसूया! हा हा हा हा हा हा...’ अचानक अलीशा का वो हल्कापन जाने कहाँ चला गया, वह उल्टी सीधी गिरती पड़ती सी लगातार हँसने लगी. उसने एक लंबा सा स्कर्ट पहना था और बहुत सेक्सी सा एक ब्लाऊज़. बोली अलीशा – ‘यहाँ तो पोलिस के दो चार लोग आ जाएं तो वही झपटते हैं. बहुत गंदा कल्चर है उनका, ऐसी ऐसी बातें हो जाती हैं कि सुन कर लगता है जा कर कुछ करूँ मैं. रात देर हो जाए तो पकड़ने वाले लड़की तक को शेयर करने की घटिया बातों पर उतर आते हैं. हुं...’ * * साकेत में सिलेक्ट सिटी मॉल के एक रेस्तरां में मैं ही आग्रह कर के अलीशा को लाया था. जब गार्डन में घूमते घूमते मैंने उस से कहा था – ‘चलो पलीज़, साकेत में एक मॉल है ना, वहाँ चल कर कुछ शॉपिंग करते हैं.’ अलीशा बोली थी – ‘नो पलीज़. नो गिफ्ट टु मी. आइ डोंट लाईक इट.’ किसी भी क्षण मैंने यह सोचा ही नहीं था कि मुझे अलीशा पर बहुत भारी भरकम रकम खर्चनी पड़ेगी, या कि वह किसी भी सूरत में मेरा शोषण करेगी, पर मुझे उस बहादुर लड़की पर बहुत प्यार सा आ रहा था और मैं यूं ही बोला था – ‘चल कर शॉपिंग करते हैं.’ अलीशा ने बल्कि ज़बरदस्ती मुझे एक टाई खरीद कर दे दी थी, उन्नीस सौ रुपए की. और हम वहाँ एक जगह कॉफी पी कर घर लौट आए थे और रात बैठे थे उसी डिनर टेबल पर, जिस पर कल रात थे. अगली रात तो एक प्रकार से पिछली रात की फोटोस्टेट ही थी, बल्कि नहीं, अब जैसे अलीशा ने पूरी तरह मुझे प्राप्त कर लिया था और उस रात उसे मैं नहीं, बल्कि वह मेरे ऊपर एक आकृति सी लेटी लगातार कई बार भोग गई थी. मानो वह एक तूफ़ान थी जो अपने हर थपेड़े के ज़रिये अपने फंडामेंटल राईट्स लिखती जा रही थी और दूधिया रौशनी न जाने कैसे मुझे उन स्ट्रोक्स से बढ़ती लग रही थी. एकदम सामने की ही दीवार पर रोशनदान के नीचे जो पेंटिंग थी वह एक जंगल का सीन था जिस में कोई खूंखार रहस्यमयी सा जानवर मुझे जिस का नाम पता नहीं चल रहा था अपने पूरे वह्शीपने के साथ किसी और जानवर को अपने पंजों में लिये उसे काट काट कर चबा रहा था, गोश्त के कई टुकड़े आस पास बिखरे हुए. प्रकृति का क़ानून हो जैसे. उस से अगली सुबह भी पिछली सुबह की डुप्लीकेट सी. वही ममी, वही नौकरानी. और मैं कुछ ही घंटों बाद स्पाईस जेट फ्लाईट नंबर एस जी वन जीरो नाइन में उड़ रहा था मुंबई. जा कर महीम के अपने फ़्लैट में लेखा जोखा करने लगा मन ही मन, अलीशा के साथ बिताई इन दो सेक्स रात्रियों का. जब रिंग रोड पर कार दौड़ी जा रही थी, अलीशा चुप रही थी, फिर कहकहे लगाती जा रही थी, फिर बोली थी – ‘फेसबुक पर मिलते रहना हैंडी.’ - ‘हाँ ब्यूटी. अब तो मिलता ही रहूँगा ना.’ - ‘कैसा रहा आप का यह फेसबुक-फ्रेंड-फ़किंग दौरा...’ फिर वह ज़ोर ज़ोर से खिलखिला पड़ी कि उसकी हंसी रुक नहीं रही थी. फिर अचानक उसने कार रोक दी थी. अँधेरा था वहाँ. रेडीसन होटल से एयरपोर्ट तक कहीं अँधेरा मिल गया. कार रोक कर उसने अपनी बाँहें मेरे गले में डाल दी और बहुत पैशनेट तरीके से लगातार मुझे चूमती चली गई. कई चुंबन दिए उसने, बल्कि लिये, जैसे बाकी की बची तृप्ति मुझ से बटोर रही हो. जाने फिर कब किस के साथ ऐसा मौका मिले उसे. फिर जब कार दुबारा चल पड़ी तो मैंने एक मज़ाक किया – ‘हम फेसबुक पर अपनी इन दो रातों का ऐलान कर देंगे, कि हम ने सेक्स फ्लाईट का खूब मज़ा लिया. देखना...’ मैंने कहा सिर्फ मनोरंजन के तौर पर था, या फिर अलीशा को समझने के लिये, पर वह बहुत दिलदार तरीके से बोली – ‘ओ यैस, हमारे दोस्तों को पता होना चाहिए कि हम ने एन्जॉय किया. पूरी पूरी दो रातें, क्या क्या करते रहे हम! याद रहा है तुम्हें...’ - ‘नहीं,’ कह कर मैं नर्वस सा हो गया था. अलीशा क्या सचमुच सब को फेसबुक पर बता देगी? कि उसने इस हफ्ते किस के साथ सेक्स एन्जॉय किया! पहली रात उस लहरीले नशे में जब कि हमारे घुटने उठ कर अजीब कंट्रास्ट वाली सी शेप बना कर समुद्र की लहरों से लग रहे थे, तब अलीशा मेरे कान के पास अपने होंठ ला कर भी पूरी नोर्मल आवाज़ में बोली थी – ‘भला हो मार्क ज़ुकरबर्ग का... हा हा हा हा...’ उस दूधिया सेक्सी सी रौशनी में उसकी खिलखिलाहट बहुत पतली और प्यारी सी हो गई थी. - ‘जुकरबर्ग कौन? अच्छा वो...’ हा हा. ‘यानी फेसबुक का फाऊंडर. कि उसने हमें मिला दिया? ह्म्म्म. ठीक कह रही हो तुम,’ और उसके बाद ही बहुत वेग के साथ मैंने अलीशा को पीअर्स करना शुरू कर दिया था. उसमें कान्फीडेंस था, मुझ में एक हिंसकता सी! अब जो रेस्तरां में अपनी कैबिन में बैठा हूँ, इंटरनेट लगा कर फेसबुक टटोल रहा हूँ, तो अलीशा ने अपनी वॉल पर एक ऐल्बम लगा रखी है. अति सुंदर तस्वीरें. सिर्फ टेन मिनट्स अगो (दस मिनट पहले). बहुत शानदार लगता है अलीशा का डिजिटल. उसने सिलेक्ट सिटी मॉल में ही दो तीन जगह किसी न किसी को रिक्वेस्ट कर के हम दोनों की तस्वीरें खिंचवा दी थीं. एक छोटी टेबल पर आमने सामने कॉफी पीते हुए हम, दोनों के कॉफी मग एक दूसरे जितने ही ऊंचे उठे हुए और हम एक दूसरे को देख मुस्कराते से. गले में नेकटाई पहना कर खिलखिलाती सी अलीशा. फिर एक जगह मेरे कंधे पर अपनी बांह टिकाए हथेली को दूसरे हाथ से थामे अलीशा, मुस्कराती... बहुत चीअरफुल. एस्केलेटर पर नीचे मेरे साथ फिसलते फिसलते भी रख दी उसने अपनी बांह मेरे कंधे पर. सच, तस्वीरें बहुत सुंदर हैं. अलीशा ने लेकिन सिर्फ इतना भर उस ऐल्बम के बारे में लिखा है – ‘हैंडी. बहुत शुक्रिया. तुम दिल्ली आए. हम ने दो दिन बहुत रोमांस किया. फिर आना कभी, अगर मैं फ्री हुई तो...’ मैंने उसी समय क्या किया कि चैट की रिक्टैंगल खोल दी, अलीशा से कहा – ‘हाय’. अलीशा बोली – ‘हाय हैंडी. पहुँच गए अपनी कैबिन?’ - ‘हाँ. तुम?’ - ‘मैं भी अपने चैंबर में हूँ. वॉल देखी?’ - ‘देखी. पर तुमने दो दिन के रोमांस की बात लिखी है, सेक्स का नहीं लिखा? अच्छा किया.’ - ‘अच्छा क्या किया हैंडी.’ फिर वह काफी देर चुप ही रही. जैसे उसे इस बात पर ही अफ़सोस हो, कि वह दुनिया को खुल कर यह भी ना बता सकेगी कि..कि उसने पिछली दो रातें कैसे बिताई थीं! ----

No comments: