Thursday, February 10, 2011

सितम फेसबुक के ..

सितम फेसबुक के
प्रेमचंद सहजवाला
फेसबुक से ज्यादा शायद इन्टरनेट का कोई भी लिंक प्रसिद्ध नहीं हुआ होगा. पर जहाँ एक तरफ फेसबुक से ही मुझे संदेश आते हैं कि फेसबुक के सदस्यों की संख्या अगण्य सी हो गयी है, इसलिए अब यह देखा जाएगा कि कौन फेसबुक को कितना इस्तेमाल करता है और बहुत कम इस्तेमाल वालों को बहिष्कृत कर दिया जाएगा, वहीं दूसरी ओर कभी कभी ऐसी ऐसी मुसीबतें भी खड़ी हो जाती हैं जिन से बहुत मुश्किल से निवारण हो पाता है. कुछ महीने पहले मेरे साथ भी कुछ कुछ ऐसा ही हुआ था.
फेसबुक पर मैंने खूब मित्र बनाए. लेखक हूँ सो कोई भी परिचित अपरिचित लेखक मित्रता का निवेदन भेजता तो मैं स्वीकार कर लेता और कइयों को मैंने भी निवेदन किये तो स्वीकार हो गए. अशोक चक्रधर, आलोक तोमर धीरेन्द्र अस्थाना उदय प्रकाश तक जैसी हस्तियाँ जिसकी फेसबुक मित्र हों भला उसे आखिर क्या चाहिए फेसबुक से? प्रसन्नता तो इस बात की भी कि अब तो महिलाऐं भी बहन जी या भाई साहेब के संबोधन का बंधन नहीं डालती वरन् एक से बढ़ कर एक प्रबुद्ध महिलाऐं भी मेरी फेसबुक मित्र हैं, यथा सुधा अरोड़ा, नेहा शरद, भला इस से ज्यादा खुशी की बात और क्या हो सकती थी?.
पर एक दिन क्या होता है कि मुझे एक महिला शायरा जिस की कई गज़लें पढ़ कर मैंने उन पर सुंदर सुंदर टिप्पिणियाँ की थी, की ओर से एक फेसबुक संदेश मुझे मिलता है – ‘मैंने आप को देख लिया है, आप वीडियो में दाईं ओर हैं.’ मैं चकित था. न जाने कितनी बार पत्रों पत्रिकाओं में तसवीरें छपीं और अब यह वीडियो भी देख लेता हूँ. कहाँ हूँ मैं? उस संदेश के साथ नीले अक्षरों में जो लिंक था, मैंने उसे बस क्लिक किया और मुसीबत शुरू. फ़ौरन मेरे कम्प्यूटर पर एक वाइरस का आक्रमण हो गया और कम्प्यूटर पर असंख्य चेतावनियाँ आने लगी. मेरे कंप्यूटर में मेरी कई कहानियों गज़लों आदि की कई फाईलें हैं और चेतावनियाँ आने लगी कि आप की इतनी इतनी फाईलिं खतरे में हैं. एक कंपनी की तरफ से ‘वाइरस निरोधक प्रोग्राम’ का भी एक संदेश मिला और कहा गया कि क्रेडिट कार्ड से इतने इतने पैसे भरो! फिलहाल मैंने ऐसा कुछ न किया और फ़ौरन अपने बेटे को जो सॉफ्टवेयर में खासी मास्टरी रखता है, उस के ऑफिस में धुक्धुकाती छाती से फोन किया. बेटे ने कहा – ‘पापा आप की ओर से फेसबुक पर मुझे बड़ा वल्गर संदेश मिला है!’ मैं चकरा गया पर बेटे ने आ कर गुत्थी सुलझाई. पर तब तक तो मेरे मोबाईल पर ही मेरी कुछ परिचित महिलाओं के एस.एम.एस आने लगे. एक युवा शायरा लिखती हैं – ‘यह क्या मेसेज हैं अंकल कि मैं फिल्म अभिनेत्री बन सकती हूँ बशर्ते कि... आगे वल्गर तरीके से लिखा है कि बशर्ते कि मैं एक्स्पोज़ होने को तैयार हो जाऊं!’ मैंने चौंक कर उस युवा शायरा से फोन पर बात की पर उसने तुरंत फिर मुझे एस.एम.एस भी किया कि मुझे भी लगता है यह कोई वाइरस होगा अंकल जी. भला आप क्यों इतना गंदा संदेश मुझे देने लगे? आखिर आप तो मुझे अपनी बेटी ही मानते हैं न!’
जब तक बेटा ऑफिस से लौटे तब तक मेरे प्राण दरवाज़े पर ही अटके रहे. इस बीच घर में ही उपलब्ध एक और लैपटॉप खोला और उस में देखा मेरे फेसबुक खाते में तीन चार संदेश थे. असम के एक मित्र लिखते हैं – ‘मैंने ऐसा क्या किया जिसके लिए मुझे शर्म आनी चाहिए?’ यानी उस परम मित्र को यह संदेश गया कि आप को अपने किये पर शर्म आनी चाहिए? एक महिला को संदेश गया कि आप शीघ्र ही बिकिनी वाले पोज़ में प्रसिद्ध होने वाली हैं. उस महिला ने भी मेसेज भेज कर पूछा – ‘इस प्रकार के भद्दे संदेश का मतलब सर? क्या आप से मैं ऐसी आशा रख सकती हूँ.’ और मज़ेदार बात यह कि मेरे न भेजे हुए परन्तु हर फेसबुक मित्र को फिर भी प्राप्त हुए हर संदेश के साथ भी वैसा ही नीले अक्षरों वाला लिंक था. पर सब के सब जानकार लगते थे शायद. उन्होंने लिंक को क्लिक किया ही नहीं! मैं ही बुद्धू निकला. वर्ना उनके साथ भी वही होने वाला था जो मेरे साथ हुआ. यानी उनकी तरफ से अश्लील और भद्दे सन्देश उन के मित्रों तक पहुँच गए होते. बेटा आया तो मेरी जान में जान आई. बेटे ने समझाया कि गलत सलत लिंक क्लिक करने से आपका फेसबुक अकाऊंट हैक हो गया है और सब मित्रों को अश्लील सेक्सी प्रकार के संदेश पहुँच रहे हैं. बेटे ने यह भी बताया कि पापा इसे कहते हैं ‘फिशिंग स्कैम’. फिर उसने अपने ऑफिस के लैपटॉप पर गूगल खोल कर मुझे दिखाया कि ‘फिशिंग स्कैम’ होता क्या है. गूगल के रस्ते वह विकीपीडिया पहुंचा और वहाँ लिखा था कि यह मछली पकड़ने जैसा एक इंटरनेट अपराध है जिस के ज़रिये आप का क्रेडिट कार्ड नंबर और बैंक खाता आदि पता कर लिये जाते हैं. आप का पासवर्ड भी अपराधियों के हाथ आ जाता है. (अब तो विस्तृत अध्ययन से यह सुध भी हो गई कि जब 17 दिसंबर 2010 को ट्यूनिशिया के सीदी शहर में एक नागरिक ने पुलिस की ज्यादतियों के कारण आत्मदाह कर लिया था और देश में विद्रोह की आग भड़क उठी तब वहाँ के तत्कालीन तानाशाह राष्ट्रपति ज़िने एल एबिदीन बेन अली ने वहाँ के इंटररनेट उपयोक्ताओं के फेसबुक खातों को ‘फिशिंग स्कैम’ के ज़रिये हाईजैक करवा लिया था!), पर बहरहाल, बेटे के कहने पर मैंने अपना पासवर्ड बदला पर मेरी मुसीबत अभी खत्म नहीं हुई थी. मैंने दूसरे लैपटॉप पर अपने खाते की ‘वाल’ में एक सर्कूलर भी सब के लिए छाप दिया कि दोस्तो, मेरे साथ ऐसा ऐसा हुआ है, अगर आप को भी अश्लील संदेश आया है तो इस अबोध बंदे को बख्श दें. कुछेक युवा लेखकों लेखिकाओं ने मेरे सर्कूलर पर अपनी टिप्पिणियां भी लिख दी कि अंकल जी हमें भी ऐसा एक संदेश मिला है, पर आप घबराएं बिलकुल नहीं. हम समझ गए कि ऐसा किसी फेसबुक ट्रैजिडी के कारण हुआ है. पर मेरी असली मुसीबत तो तब आई जब मैं एक दिन आकाशवाणी के निमंत्रण पर ‘कविता के सात रंग’ कार्यक्रम में श्रोतागण में बैठ कर कविताएं सुनने गया. आकाशवाणी के वी.आई.पी लाऊंज में ही एक परिचित लेखिका मित्र मिल गईं पर मैं उन्हें तीन चार बार नमस्कार कर गया, उन्होंने गुस्से में दूसरी ओर देखना शुरू कर दिया. मैं संतप्त था और उन से आखिर पूछ ही लिया – ‘आखिर क्या गुनाह किया है मैंने, कि आप मेरे नमस्कार का जवाब तक नहीं दे रही हैं?’ महिला कुछ आक्रोश भरी निगाहों से मेरी ओर देख कर बोली – ‘बात करेंगे न बाद में. मैं बताऊंगी.’ और कार्यक्रम के बाद बाहर आ कर वे कहने लगी – ‘आपने फेसबुक में यह क्या संदेश भेजा मुझे? क्या यही है आपकी सभ्यता?’
- ‘आह!’ मैं तो बुरी तरह आहत था. मैं इन्हें आखिर कैसे समझाऊँ? ये भी
वरिष्ठ आयु की हैं और नौजवान बच्चों की तरह समझें या न समझें जो कि सॉफ्टवेयर में काफी जानकारी रखते हैं. वे मेरी सफाई के बावजूद कहने लगी – ‘अपने आप ही मुझे यह संदेश आ गया कि क्या आप निर्वस्त्र हो सकती हैं? आपने भेजा ही नहीं?
मुझे हाथ तक जोड़ने पड़े और उन से यह कहना पड़ा – ‘आप की बेटियां जॉब करती हैं और अभी हाल ही में उन्होंने एम.बी.ए वगैरह किया है. आप प्लीज़, मुझ पर रहम खा कर घर जा कर मेरी यह सफाई बेटियों को बताएं.’ महिला अविश्वास में मेरी तरफ देखती चली गयी और जाते जाते कह गयी – ‘मैं टीचर हूँ सर, कभी कभी अपनी स्टूडेंट्स को ही कह देती हूँ मेरा खाता खोल कर बताएं कोई संदेश तो नहीं है! मैं फेसबुक में इतना ज्यादा जाती भी नहीं.’
पर ईश्वर की मुझ पर विशेष कृपा हुई और रात साढे ग्यारह बजे उन महिला का एस.एम.एस मिला कि हाँ सर, मैं अब कन्विन्स हो गई हूँ कि वह वाइरस था, पर आप को पहले ही पता था तो मुझे पहले ही क्यों नहीं सूचित किया आपने?’
बच्चियों से पूछने के बावजूद सब कुछ उस के सामने शायद साफ़ नहीं था. यदि मुझे पता होता तो मैं स्वयं ही ‘आ बैल मुझे मार’ के अंदाज़ में ऐसे किसी लिंक पर क्लिक क्यों करता. बहरहाल, उस महिला को तो बाद में हर बात स्पष्ट कर दी और दोस्ती पहले की तरह बरक़रार रही, पर मैं सोचने लगा इन्टरनेट एक नया आविष्कार है जो पिछले दो दशक में हमारी जिन्दगी में तूफानी परिवर्तन ला चुका है. पिछले कुछ समय में अरब में हुई क्रांतियों में भी लोगों को एकजुट करने में इन्टरनेट की बड़ी ज़बरदस्त भूमिका रही. क्या इसकी घटनाओं दुर्घटनाओं की पूरी समझ सब के लिए ज़रूरी नहीं, जो जो लोग इस का उपयोग करते हैं, उनके लिए?’ बेटे ने तो यह भी बताया कि वाइरस निरोधक प्रोग्राम बेचने के लिए कुछ कम्पनियाँ यह शरारत करतीं हैं. कुछ तो ऐसी भी हैं जो क्रेडिट कार्ड से पैसा भेजने के बावजूद कोई वाइरस निरोधक प्रोग्राम नहीं भेजती, यूं ही पैसा लूट लेती हैं. बहरहाल, मेरा वह ज़ख़्मी लैपटॉप बेटे ने तीन चार दिन में ही ठीक भी कर दिया और अब मैं फेसबुक हो या अपनी मेल, किसी भी लिंक को ऐसे देखता हूँ जैसे दूध का जला हूँ और छाछ को भी फूंक फूंक कर पी रहा हूँ. पर क्या इसके बावजूद इन्टरनेट और फेसबुक को ही तिलांजलि देने से काम चल जाएगा? शायद नहीं. बिलकुल नहीं. वह तो एक अपरिहार्य साधन बन गया है न जिंदगी का, जिसके ज़रिये क्रांति भी की जा सकती है!
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2 comments:

Nikhil said...

हाहाहा...माफ कीजिएगा...मगर मुझे हंसी आ गई...फेसबुक ने दरअसल आपको बता दिया कि वो क्या चीज़ है...आगे से सतर्क रहिएगा...

अंकित कुमार पाण्डेय said...

अरे आप के इस लेख के copyright की क्या स्थिति है ?