ईथर
कहानी – प्रेमचंद सहजवाला
'वर्तमान साहित्य' अगस्त अंक में प्रकाशित
पिछली तीस अप्रैल को वर्मा जी की शादी को पूरे
तीस साल हो गए थे यह सोचते ही उन्हें घोर आश्चर्य हुआ था. जाने कैसे एक घरेलू सी
दिखती औरत के साथ उन्होंने पूरे तीस वर्ष काट लिये. जो वह अपनी युवावस्था में
चाहते थे वह उन्हें कभी ना मिला. वे जयपुर से पत्नी लाए थे जो दिल्ली से ज़्यादा
दूर नहीं है. पर जब पत्नी शैल आई तब पहले हफ्ते से ही झगड़ा चला कि शैल नौकरी ज़रूर
करेगी. शैल अड़ गई थी कि जब आप मुझे देखने आए थे तभी मेरी माँ ने आप से कहा था कि
वह नौकरी नहीं करना चाहती, फिर आप ने क्यों मुझे पसंद किया. वर्मा जी को आश्चर्य हुआ.
उन्होंने तो सोचा था कि पत्नी को ब्याह कर लाते ही वे उसे अपने आधुनिक और समझदारी
से भरे विचारों से प्रभावित कर देंगे और वह नौकरी तलाशेगी. शैल ने शादी से पहले एक
छोटी मोटी नौकरी लगभग दस साल जयपुर में ही की थी. किसी प्राईवेट कंपनी में पर अब
शैल को लगता था कि वह घर संभालेगी और वर्मा जी हैं कि यह खयाल आते ही उन्हें
विचित्र सा लगता है कि पत्नी पारंपरिक तरीके से पति की प्रतीक्षा करे. उनके आते ही
सामने चाय पेश करे और सारा दिन घर की डस्टिंग करती रहे और वाशिंग मशीन पर कपड़े
धोती रहे. बहरहाल, इसी तरीके की ज़िंदगी जीते उन्हें तीस वर्ष कैसे हो गए यही उनके
लिये आश्चर्य था. जब शादी कर लाए तो माँ थी, पिता थे, दोनों बड़े भाई शादियां कर के
अलग कहीं रहते थे और उनकी पत्नियाँ भी घर में ही रहती थीं. बहन अपनी ससुराल गई तो
उसे शादी से पहले वाली नौकरी ही जारी रखते देख उन्हें एक सुखद ईर्ष्या भी हुई थी
बहन से.
अब लेकिन वर्मा जी ने ज़िंदगी पार कर ली है और इन
दिनों वे अपनी अतृप्त आकांक्षा एक और तरीके से पूरी करने में जुटे हैं. उनका एक
बेटा है जो अब सत्ताईस वर्ष का हो गया है और बेटे की शादी के लिये लड़की ढूँढना
उनके लिये एक नया टशन हो गया है. बेटे के साथ गड़बड़ यह हुई कि वह एक लड़की से प्यार
करता था पर उसके पिता अड़ गए थे कि वे अपने समुदाय से बाहर नहीं करेंगे. हम लोग साऊथ इंडियन हैं सो साऊथ इंडियन
से ही करेंगे. वर्मा जी ने उस लड़की के पिता से फोन पर तर्क वितर्क भी किया कि अब
तो सब बच्चे मल्टीनैशनल कंपनियों में नौकरी करते हैं और पूरे भारत से जाने कहाँ
कहाँ से आ कर मैनेजमेंट प्रोफेशनल बन रहे हैं सो इस बात से क्या फर्क पड़ता है कि
आप की भाषा तेलुगू है और हमारी पंजाबी. दोनों ऑफिस में तो ज़्यादा से ज़्यादा समय
अंग्रेज़ी बोलते हैं ना. पर उस लड़की के पिता ने कहा – ‘आप अपना लेक्चर मेरे सामने
बंद करेंगे या जहाँ से बोल रहे हैं वहीं आ कर बंद कराऊँ मि. वर्मा शर्मा या जो भी
आप हैं? मेरी बेटी तेलुगू से ही शादी करेगी चाहे वह लंदन में नौकरी करती हो समझे
आप कि नहीं!’ वर्मा जी हैरान कि दुनिया तो एक इंच भी आगे बढ़ने को तैयार नहीं है.
पर इन दिनों जो गर्मागर्मी उनकी पत्नी शैल से चलती रही उसकी ओर तो उनका ध्यान ही
नहीं था. शैल रोज़ लड़ती कि हम भी क्यों दूसरी भाषा या जाति में करें. हमें क्या
तकलीफ है. मेरे लिये तो किसी भी दूसरी भाषा वाली लड़की समझो भंगिन है! वर्मा जी
अवाक् थे. उन्होंने पहले की तरह यही समझा था कि वे उसे नई दुनिया की रीत समझा
देंगे कि अब तो हिंदुस्तानी लड़कियां कोई कोई पाकिस्तानी लड़के से शादी कर के दुबई
या इंग्लैण्ड विंगलैण्ड जा कर रहती हैं ताकि झंझटों से बचे रहें दोनों. सवाल तो
दोनों के एक दूसरे की पसंद का है ना. पर आखिर उस तेलुगू लड़की का पिता जीत गया तो
सब से ज़्यादा शैल ही खुश हुई. उन्हें आश्चर्य इस बात का भी हुआ कि शैल अपने
विचारों की रौ में बेटे की खुशी देख ही नहीं रही. वह तो हर प्रकार से अपना निजी
संतोष ही चाहती है. उन्होंने कुछ समय तक बेटे का उतरा हुआ चेहरा देख देख कर काटा
पर आखिर उनका बेटा ही एक दिन बोला था – ‘पापा आजकल ऐसा ही हो रहा है. सब के सब लव
अफेयर सफल हो भी नहीं रहे. यानी शादी में बदल भी नहीं रहे.’ फिर बेटे ने पिता का
मूड बनाते हुए यह भी कहा – ‘एक मज़ेदार बात बताऊँ पापा, मैं नोएडा में जहाँ नौकरी
करता हूँ वहां एक बड़ा सा पार्क है. अक्सर हम सब वहां जा कर अपनी अपनी गर्ल
फ्रेंड्स के साथ रोमांस भी खूब करते हैं. पर एक दिन मैंने क्या देखा जानते हैं
आप?’
वर्मा जी उस समय एक मॉल के छोटे से रेस्तरां में
बेटे के साथ बियर पीने आए थे. बेटा उन्हें यदा कदा बियर पिलाने यहीं, इसी मॉल में
लाता है और वह भी साल में एकाध पेग पी लेता है सो उसने अपने लिये एक विस्की का
लार्ज पेग मंगाया. वर्मा जी चौंक कर नज़रों
से ही पूछने लगे – ‘क्या देखा,’ तो बेटा भी अपनी चौँकाहट उनके सामने प्रकट करता
बोला – ‘लड़के लड़कियां पार्क में रोमांस करते हैं और जाने क्या क्या भी करते हैं.
पर पार्क के बाहर एक दिन मैंने देखा कि पांच छः पंडितों ने भी अड्डे जमा रखे हैं.
फुटपाथ पर ही दरियां बिछा कर अपनी ज्योतिष या कुंडली मिलान की दुकानें खोल
पुस्तकें फैला कर पल्थी मारे बैठे हैं और लड़के लड़कियां टशन के लिये या जाने
सचमुच, अपनी अपनी जन्म की तारीख और समय भी उन पंडितों को दिखाते हैं. हंस हंस कर
पूछती हैं लड़कियां – ‘पंडित जी, ज़रा देखना यह लड़का मुझे धोखा तो नहीं देगा?’ पहले
बेटा भी यही समझता था कि लड़के लड़कियां यह सब मनोरंजन के लिये पूछते होंगे पर गहरे
पैठ कर उसने देखा कि नौजवान लड़के और खास कर के लड़कियां तो बहुत अंधविश्वास रखती
हैं, अब भी इस इक्कीसवीं सदी के ज़माने में भी. दकियानूसीपन जाने कब विदा लेगा
दुनिया से.’ उसी दिन पिता ने क्या किया कि घर के ठीक नीचे रहने वाली एक बहुत
आधुनिक और होशियार सी लड़की का नाम बेटे के सामने ले लिया, बोले – ‘अब तो वह तेलुगू
लड़की गई. अब उस इच्छिता के बारे में क्या कहोगे जो है भी पंजाबी और एम.बी.ए. कर
चुकी है. जॉब भी अच्छी मिल जाएगी उसे तो.’ पर बेटा बोला – ‘इच्छिता मेरे लेवल की
नहीं है. मुझे वह चाहिए जो हर चीज़ में मेरे बराबर हो.’ वर्मा जी जानते हैं कि उनका
बेटा सचमुच पढ़ाई में भी प्रखर रहा और बाकी शख्सियत में भी उसके जैसे बहुत कम लड़के
मिलते हैं. हैंडसम की ही बात नहीं, उसका बात करने का सलीका, उसका मैनरिज्म और
ज़िंदगी को ले कर उसकी स्वस्थ सोच... सब बढ़िया ही है बेटे का.
अब इन दिनों एक छोटे से तनाव में वर्मा जी पहली
बार जीत गए हैं. जब उस तेलुगू प्रसंग को काफी दिन हो गए तो वर्मा जी ने बेटे से ही
पूछा – ‘अब और कोई लड़की तो नहीं है, जो तुम्हें पसंद हो, अपनी मित्र मंडली में
ही.’ बेटा चेहरे के भाव बदल कर आखिर बहुत सामान्य से बना कर बोला – ‘अब जहाँ आप
दोनों चाहो, करवा सकते हो,’ बेटे ने कहा ऐसे जैसे अब बहुत आज्ञाकारी बन गया हो. पर
इतने दिन उसका चेहरा सचमुच उतरा हुआ रहा और एक बार तो यही बोला था कि अब मैं शादी
ही नहीं करूँगा पर उसकी माँ अक्सर उसे कोंचती ही रही – ‘अब आखिर कब करोगे शादी?
बुड्ढे हो कर? मैं क्या ऐसे ही खटती रहूंगी ज़िंदगी भर.’ बेटे ने मानो माँ की खुशी
के आगे झुक कर ही पिता से कहा कि अब आप दोनों जहाँ चाहो करवा सकते हो. वर्मा जी
लेकिन इस बार एक बात के प्रति कृतसंकल्प थे कि शैल को खुश रखने के लिये लेंगे भले
ही पंजाबी लड़की, पर लेंगे वही जिसे बेटा कहे कि हाँ, वह उसी के प्रबुद्ध और प्रखर
लेवल की है. वर्मा जी को वैसे एक दिन आश्चर्य यह भी हुआ कि उन्हें पता ही नहीं कि
पिछले संडे बेटा माँ को ले कर एक कम्यूनिटी सेंटर भी गया था और फोटो समेत अपना
पूरा प्रोफाईल भी एक फॉर्म में भर आया और अब शैल कह रही है कि आज संडे है, हम उसी
सेंटर में जा कर लड़कियों के प्रोफाईल वाली फाईल देखेंगे और कोई अच्छी सी लड़की
ढूँढने की कोशिश करेंगे. वर्मा जी तो उस सेंटर में जा कर थोड़े आश्चर्यचकित भी हो
गए. वहां एक हॉल में दूर दूर तक कम से कम डेढ़ सौ पति पत्नी जोड़े बैठे थे जो अपने
अपने बच्चों के लिये सूटेबल मैच उन प्रोफाईल की फाईलों से ढूंढ रहे थे. उन्हें तो
इस बात पर भी घोर आश्चर्य हुआ था कि यह तो लिखा ही है कि लड़की क्या मांगलिक है, या
नहीं, पर यह भी लिखा है कि वह चश्मा पहनती है कि नहीं. हर लड़की की हाईट लिखी है,
जन्मतिथि के साथ जन्म का समय और शहर भी लिखा है और यह भी कि वह वेज है कि नॉन वेज.
किसी किसी के प्रोफाईल में छोटे अक्षरों में लिखा है – स्लाईटली मांगलिक. उन्हें
हैरानी हुई, मांगलिक तो सुना पर स्लाईटली मांगलिक क्या होता है. पर शैल झुंझला रही
थी – ‘इनको यह मांगलिक या स्लाईटली मांगलिक यहाँ ऊपर कोने में बड़े बड़े अक्षरों में
लिखना चाहिए. ईडियट लोग...’ पर वर्मा जी ने मेट्रो में शैल के साथ जाते समय ही उसे
बता दिया था कि वे कोई अच्छी प्रोफेशनल लड़की देखेंगे और जाने कैसे इस बात पर शैल
उनके आगे दब सी गई थी. वे हर फॉर्म का पन्ना पलटते और जहाँ जहाँ सोफ्टवेयर
प्रोफेशनल लड़की होती या मैनेजीरियल पोस्ट वाली या पोस्ट ग्रैजुएट वगैरह होती उस
प्रोफाईल का नंबर नोट कर लेते. आखिर सेंटर से उन उन लड़कियों के प्रोफाईल फॉर्म की
फोटो कॉपियां ले कर आए. और आते ही घंटे दो घंटे बाद दोनों का झगड़ा हो गया. शैल की
एक बहन है जो जयपुर में रहती है और खासी बुजुर्गियत का रौब अपने समाज पर ग़ालिब
करती रहती है. दोपहर वे इंटरनेट पर कुछ काम कर रहे थे कि उन की उन साली साहिबा
यानी शील का फोन आ गया. शील गरजती सी बोली – ‘जीजाजी आप सारे फॉर्म ऊंची ऊंची पढ़ाई
वाली लड़कियों के लाए जो भारी भारी नौकरियां करती हैं तो क्या बहन शैल ज़िंदगी भर खटती रहेगी. कोई ऐसी बहू लाओ जो उसका
हाथ बटा दे न. आप अपनी क्यों चलाते रहते हो हर बार.’ वर्मा जी को ताव आ गया कि अभी
घर में घुसे नहीं कि जयपुर भी फोन हो गया और साली साहिबा यानी शैल की बहना शील का
फोन भी यहाँ तक आ धमका.
यह देख कर वर्मा जी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा
कि वे किसी भी लड़की के पिता को फोन करें इस से पहले ही उनके अपने फोन में लड़की
वालों के फोनों की बाढ़ सी आ गई. उन्होंने
स्पष्ट लिखा था कि हाईट पांच दस है और वार्षिक पॅकेज दस लाख है. एक के बाद एक
उन्हें हर सज्जन का नाम व उनकी बिटिया का नाम नोट करना पड़ा. इस मामले में शैल ने
फुर्ती दिखाई क्योंकि उसे तो एक सुशील सुघड गृहकार्य में दक्ष और सास ससुर का सम्मान करने वाली अच्छी सी
बहू चाहिए थी न. ज्यों ही कोई फोन आता वह एक नोट बुक ले आती और उन्हें इशारे से
कहती कि लड़की का नाम और जन्म की तिथि समय और शहर वगैरह तो पूछिए न. झटपट एक छोटी
सी डायरेक्टरी बन गई जिसमें से शैल चश्मा लगा कर बार बार जाने किस किस को काटा
लगाती रहती.
एक लड़की थी प्रेरणा. नाम शैल को भी अच्छा लगा और
बोली कि मेरे फादर ने भी उस पुराने ज़माने में भी कितना बढ़िया नाम रखा शैल. आजकल भी
नाम अच्छे हैं कोई आकांक्षा है तो कोई अरुणिमा तो कोई प्राची वगैरह.
प्रेरणा बिटिया के बारे में उन्होंने कहा कि
एम,एस.सी स्टेटिस्टिक्स है और किसी विश्वविद्यालय में प्रशासनिक काम करती है. शैल
बोली – ‘चलो देखते हैं. प्रेरणा का जन्म का समय और तारीख क्या बताई?’
उन्होंने तारीख और समय बता दिया तो शैल फ़ौरन
दूसरे कमरे में चली गई और घंटे भर बाद में लौट आई, बोली – ‘शील ने यह फोन नंबर
दिया है, जो पंडित गौरिप्रसाद है ना वहां रहता है, उसी का है. प्लीज़, आप इसे फोन कर
के प्रेरणा का नाम जन्मतिथि शहर वगैरह सब बता दो.’ पर हुआ यह कि शैल की आज्ञानुसार
जब उन्होंने उन श्रीमान पंडित गौरीप्रसाद को फोन कर के सब बताया तो थोड़ी देर बाद
ही उनका फोन आया – ‘लड़की तो मांगलिक है.’ शैल
का कलेजा धक से बैठ गया. पर उसकी बहना शील का फोन तुरंत आ गया, बोली –
‘गौरीप्रसाद कह रहे हैं मांगलिक ज़्यादा नहीं है, बहुत थोड़ा है जिसका उपचार हो
जाएगा.’ वर्मा जी को उसी समय खयाल आया कि अरे, आजकल तो कुंडली का मिलान इंटरनेट पर
भी हो जाता है! फ़ौरन एक कुर्सी साथ में रख कर शैल को बैठने को कहते हुए बोले –
‘गूगल में डाल कर अभी इस प्रेरणा महारानी का पता करता हूँ.’ उन्हें हालांकि यह सब
बकवास लगता पर शैल की खुशी के लिये तो वे अब सब कुछ करने को तैयार थे क्योंकि उसने
एक पोस्ट ग्रैजुएट लड़की जो नौकरी करती है को विचाराधीन करने की मंज़ूरी दे दी थी.
गूगल में डाल कर आखिर कुंडली मिलान की वेबसाईट उन्हें मिल गई. उन्हें तो आश्चर्य
हुआ कि जब से सूचना प्रसारण की बाढ़ आई है तब से पुराने अंधविश्वास गुम होने की
बजाय और बढ़ गए हैं क्यों कि संबंधित पंडितों को धंधा करने का एक मौका और मिल गया
है. एक और सशक्त माध्यम, जैसे कच्चे घड़े में रखा अमृत अब किसी लोहे के मज़बूत कलश
में उंडेल कर और कई सदियों तक के लिये रख दिया गया हो.
उन्होंने इन्टरनेट पर बेटे के जन्म का समय तिथि
और शहर वगैरह उसके नाम के साथ डाल दिए और प्रेरणा बिटिया के भी. झट से एक लंबा सा
स्क्रीन आ गया जिस के अंत में लिखा था लड़का नॉन मांगलिक और लड़की मांगलिक. पर क्यों
कि शील बहना का कथन था कि मांगलिक ज़्यादा नहीं है सो यह रुकावट वे पार कर चुके थे.
उन्हें आश्चर्य यह भी हुआ कि इस स्क्रीन पर स्पष्ट लिखा है कि ये सारे निष्कर्ष
तीन हज़ार साल पहले के हैं और इनका आधुनिकीकरण कर दिया गया है. आश्चर्य कि तीन हज़ार
साल पहले के निष्कर्षों का आधुनिकीकरण उन ज्योतिषियों महापंडितों ज्योतिषाचार्यों
ने किया है जो खुद सदियों पहले की पोथियाँ बांच बांच कर समय के चक्र को जाने कब से
रोके हुए हैं. कई किस्म के टेस्ट लिखे हैं, जैसे यह कोई हस्पताल वस्पताल हो. मानसिकता मिलान, शक्ति मिलान, जन्म नक्षत्र
मिलान, फलां मिलान, टीरा मिलान, ना जाने क्या क्या मिलान. फिर दो किस्म के स्कूल
हैं जी, कृष्णमूर्ति स्कूल और चित्रपक्ष
स्कूल. अजीब ज़हमत लगी उनको. एक बार
उन्होंने शैल को यूं ही बहुत पहले की पढ़ी
हुई एक बात बताई थी कि एक किताब में लिखा है कि जो ग्रह हैं वे हमारी जिंदगियों पर
ऐसे असर करते हैं कि वातावरण में एक तरल पदार्थ होता है ईथर. उस के माध्यम से
ग्रहों का प्रभाव आ कर हमारी जिंदगियां बाग बहार या चौपट कर देता है. पर जो
वैज्ञानिक हैं ना शैल, वे सदियों लगे रहे पर उन्हें ईथर नाम का कोई तरल पदार्थ
नहीं मिला. शैल उन पर तरस खाती सी बोली – ‘ये सब बातें आप की समझ नहीं आयेंगीं.’
बहरहाल, प्रेरणा बिटिया कई टेस्ट में पास हो गई तो शैल ने उसके नाम के आगे टिक
मार्क कर दिया और बोली – ‘प्रेरणा की मम्मी ने ही फोन पर मुझ से पूछा था बेटे के
बारे में. अब उसे फोन करूंगी या बेहतर है कि आप कर दो प्लीज़.’ उन्होंने कहा –
‘ठीक. कल ही करूँगा. इस समय तो देर हो चुकी है ना.’ रात के ग्यारह बजे थे और बेटा
देर से ही ऑफिस से लौटता है. शैल और वर्मा जी खाना वाना खा कर दूरदर्शन पर सीरियल
देखने बैठ गए तो अचानक शील महारानी का फोन भी आ गया. शील बोली – ‘जीजाजी आप शैल को
दबाते रहते हो क्या. आज जो लड़की आपने देख ली है वह तो एम.एस.सी पास है और कोई बड़ी
नौकरी करती है तो...’ उन्हें आश्चर्य हुआ. कम्प्यूटर बंद करते ही उन्होंने शैल से
सिर्फ इतना कहा था कि अच्छा है, अगर यह फैमिली
मिलने पर संतोषजनक लगती है तो बढ़िया रहेगा. यूनिवर्सिटी सीधी हमारी लोकालिटी से
मेट्रो से जुड़ी है. छः बजे ड्यूटी पूरी होते ही बिटिया सात बजे तक घर आ जाएगी. मैं
तो उस से खूब बातें करूँगा, अपनी सगी बिटिया से ज़्यादा चाहूँगा. कम्प्यूटर में
सैकड़ों समस्याएं आती हैं बेटे की तरह मिनटों में ठीक कर देगी कम्प्यूटर बिटिया. पर
जो कुछ जीजाजी शैल से कहते हैं वह जाने कौन से ईथर से शील तक पहुँच जाता है कि झट
से उसका फोन आ जाता है. उन्होंने शील को कुछ ज़्यादा जवाब ना दिया. टी.वी का रिमोट
हाथ में पकड़े कोई न्यूज़ चैनल ऑन करते ही उन्होंने एक बढ़िया सा कहकहा मारा – ‘हा हा
हा हा...जो दिखेगा वही मिलेगा...’ शील कट कर चुप हो गई फिर शैल फोन ले कर दूसरे
कमरे में चली गई और दोनों बहनों के बीच घंटा भर वार्तालाप चलता रहा. अब इन दिनों
एक और बहुत अच्छा प्रोफाईल उन्होंने देखा.
एक कोई एस.एस. सरीन साहेब थे जिन्होंने उन्हें सीधे फोन किया था और इत्तेफाक से उस
लड़की गौरवा का प्रोफाईल पहले से ही उनके पास था. बी.टेक एम बी ए. किसी मल्टीनैशनल
कंपनी में अच्छी पोस्ट पर है. यह केस उन्हें बहुत शानदार लगा. सरीन साहेब ने उनसे
यह भी कह दिया कि मेरी बेटी गौरवा सरीन की तसवीरें और बाकी प्रोफाईल आप को फेसबुक
पर भी मिल जाएगा. पहले हमें मिलने की ज़रूरत नहीं है. बिटिया कहती है कि पहले वह
किसी भी लड़के से विचार विमर्श करने को फेसबुक पर मित्रता करेगी फिर उस से लगातार
बातचीत कर के आखिर एक दिन उस से मिलेगी. फिर बात आगे बढ़ाई जा सकेगी. वर्मा जी को
मुंडली मिलान वाली वेबसाईट से यह फेसबुक वाली मित्र मिलान वाली साईट बहुत बढ़िया
लगी. इस में लड़कियां हों या लड़के, सब कुछ फ्रैंकली लिख देती हैं. कोई कोई तो लिखती
है – ‘इन रिलेशनशिप.’ कोई अपने मस्त से फोटोग्राफ लगा देती है, कोई कहीं भी घूमने
जाए सब से पहले वहां की सुंदर सुंदर तसवीरें फेसबुक पर अपनी मित्रमंडली के लिये
लगा देती है. फेसबुक भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का एक सुंदर माध्यम सा बन गया है
इन दिनों. हा हा.. पर वर्मा जी यह सोच कर भी हंस दिए कि कुछ यूरापीय देशों में तो
यह भी शिकायत है कि फेसबुक से तलाक बढ़ रहे हैं! हर देश की अपनी एक पहचान है और
भारतीय लड़कियां रिश्ते बहुत रूमानियत से
बनाती बिगाड़ती रहती होंगी. जहाँ शादी होती होगी वहां अपना घर बचाए रखने की भरपूर
कोशिश कर के भी अगर कोई कारण बन जाए तो घर तोड़ने में नहीं हिचकिचाती. अलबत्ता उन
यूरापीय या अमरीकी देशों की नक़ल में भारत में खर्राटे मारने या कुत्ते बिल्ली
पालने न पालने पर तलाक नहीं होते होंगे. शायद लड़कियां अपनी शर्तों पर ज़िंदगी जीना
चाहती हों जो उन्हें न मिले तो एक तरफ हो जाती होंगी. कुछ दिन पहले आजकल की
लड़कियों के बढ़िया नाम रुचि प्रत्युषा प्रत्यक्षा आदि पर बात हो रही थी तो शैल बोली
– ‘रुचि तो मेरी कंपनी में भी एक थी. पर उसने बड़ी मूर्खता की, पति से अलग हो कर
तलाक ले लिया. ईडियट लड़की. मेरे सामने आती तो एक लापड़ लगा कर सीधा करती, कहती जा
अपने पति के घर. हूँ...’ वर्मा जी डर भी
गए. उस अनदेखी लड़की जिसे शैल ने भी शादी के बाद नहीं देखा था, की बजाय गुस्से में
शैल कहीं उन्हें ही...
फेसबुक पर उनके बेटे गौरव गौरवा की बातचीत चल
चुकी थी. उन्होंने शैल को ही लुभा लुभा कर दो तीन बार उस कुंडली मिलान वाली साईट
पर छपा बताया कि देखो कितने बढ़िया परिणाम हैं. ऐसे तो कहीं होंगे ही नहीं. दोनों
के बीच हर क्षेत्र में सामंजस्य है, सब कुछ सोच समझ कर एक दूसरे को समर्थन देते
करेंगे. शैल बोली – ‘देखेंगे क्या करती है. कितने बजे उठती है कितने बजे सोती है
कब कब मायके जाती है कुछ पूछती पाछ्ती भी है कि सीधे ऑफिस से ही माँ के घर गप्पें
लगाने चली जाएगी.’ शैल के आगे जैसे वे गिडगिडाना चाहते थे कि बेटे से भी तो जानना
ज़रूरी है ना कि उसकी बातचीत उस लड़की से कैसी चल रही है. शैल से उन्होंने कहा इतना ही कि गुडगाँव में
कहीं असिस्टंट मैनेजर है, मैजेजर भी बन हई जाएगी बाद में. अगर सुबह आठ बजे निकल कर
शाम सात बजे के आसपास भी आ जाती है तो एक दो घंटे रेस्ट कर के फिर तुम्हारा ही तो
हाथ बताएंगी ना!’ शैल गर्दन नीचे कर के कोई अखबार वख बार टटोलती बोली – ‘देखेंगे.’
उन्होंने शैल से लेकिन एक बात कह दी – ‘अभी बेटे से कुछ मत पूछना कि क्या क्या
बातें हुई दोनों के बीच. जब तक खुद कुछ ना बताए.’ पर शैल बोली – ‘रोज बताता है.
लड़की अच्छी लग रही है शायद उसे.’
वर्माजी प्रसन्न थे. चलो अपने बेटा गौरव भी चला सेटल होने. नए ज़माने
के पति पत्नी की जीवन शैली कैसी है, जानने को उत्सुक हैं वे भी. फिर एक दिन क्या
हुआ उन्होंने भी फेसबुक पर गौरवा सरीन का नाम सर्च में डाला और उसकी फोटो देखने की
कोशिश की पर लिखा था कि गौरवा अपने प्रोफाईल की केवल सीमित सूचनाएँ शेयर करती
है. उन्होंने क्या किया कि फ्रेंडशिप
रिक्वेस्ट को क्लिक कर दिया. फिर घंटे भर बाद थोड़े घबरा भी गए, बेटे को जाने कैसा लगे.
सो उन्होंने खुद ही कैन्सिल भी कर दिया. पर उन्हें आश्चर्य हुआ कि उसी समय उन्हें
ही गौरवा सरीन की फ्रेंडशिप रिक्वेस्ट आई. वे क्षण भर को कांपने लगे. पर कांपते
हाथों से ही उन्होंने ‘कन्फर्म’ क्लिक कर दिया तो गौरवा बिटिया की चार पांच सुंदर
तसवीरें आ गईं. पर जब तक वे उन तस्वीरों को देखें तब तक उनकी एक मेल भी आ गई. गौरव
बेटे की ही मेल थी वह और गौरव ने लिखा था पापा ये रही गौरव की कुछ तसवीरें. कह रही
है एक बार हम लोग मिल लेन तो अच्छा. उनकी खुशी का ठिकाना ना रहा कि गाड़ी सीधी राह
पर जा रही है. ऑन द राईट ट्रैक. मेल में अटैचमेंट खोले तो गौरवा अति सुंदर लड़की लगी
उन्हिएँ. हाईट बेटे से दो इंच ही कम. मुस्कराहट देख कर उन्हें बिटिया पर प्यार आ
गया. शैल को बुला कर दिखाया – ‘देखो देखो गौरव बेटे ने गौरवा बिटिया की तस्वीरें
भेजी हैं. छः फोटो हैं उसकी देखो तो... किसी में गर्दन यूं मुस्करा कर एक तरफ कैसे
तो झुका दी बिटिया ने. चेहरे खिले फूल सा है... वगैरह वगैरह.. उन्हें अपनी कल्पित
डाटर की तस्वीरें देख अज़खुद खुशी हो रही
थी. शैल किचन से ही उनकी चीखें सुन कर हाथ में एक खुरपी लिये लिये ही लैपटॉप के
सामने बैठे उनके ठीक पीछे आ कर खड़ी हो गई. वे एक एक फोटो क्लिक कर कर के बार बार
दिखाते रहे. वह कब चली गई उन्हें पता ही ना चला. उन्हें लगा कि कमरे की हवा में एक
आवाज़ सी गूंजी है, हल्की लेकिन स्पष्ट सी – देखेंगे न.
फिर एक सुहाना दिन ऐसा भी आया कि वर्मा जी पत्नी
और बेटे को ले कर चले अपनी संभावित होने वाली बहू देखने. गौरव ने उन्हें बताया कि
तीन बार मिले हैं दोनों. अब आप दोनों जो कहो, मैं वही करूँगा.
तीनों कार में निकल पड़े तो ट्रैफिक जैम में ही
फंस गए. कार बेटा चला रहा था और वे उसके साथ बैठे थे, पीछे बैठी थी शैल महारानी.
वर्मा जी ने उस समय पिंक कलर की शर्ट पहन रखी थी और वे लगभग चुपचाप थे जैसे मन ही
मन एक अच्छी सी बात छुपा रहे हों पर उन्हें यह भी महसूस हो रहा था कि ज़रूर किसी
ईथर के ज़रिये उनका बेटा भी जानता है कि वे क्या सोच रहे हैं. गौरवा बिटिया से
उन्होंने भी दो तीन बार बातचीत की थी. बिटिया उन्हें कह रही थी कि आप बहुत दिलचस्प
आदमी हो. आप की जो भी बहूरानी होगी बहुत खुश रहेगी. आप के होते उसे कोई समस्या
होगी ही नहीं.
कल रात ही वह फेसबुक पर आई तो उन्होंने उस से कहा
– ‘ए बिटिया, जो सवाल मुझसे इंटरव्यू पर पूछोगी पहले ही लीक आऊट कर दो ना मैं बहुत
नर्वस हो रहा हूँ...’
गौरवा जहाँ बैठी थी वहां इतनी हंसी कि उसने
फेसबुक पर ही दो चार मुस्कराते गुड्डे छाप दिए. अंकल मैं आप से इंटरव्यू लूंगी कि आप? मैं पहले ही
नर्वस हुई जा रही हूँ और आप हैं कि.. हा हा...’ उन्होंने उसी समय गौरवा बिटिया से
कहा था – ‘शर्ट कौन सी पहन कर आऊँ? तुम्हें कौन सा कलर पसंद है?’ बिटिया मुस्कराती
बोली – ‘पिंक पहन कर आना अंकल...’ और वे मन ही मन मुस्करा रहे थे. पर उन्हें यह भी
लगा कि ज़रूर गौरवा ने गौरव को बता दिया होगा कि उसके पापा क्या पूछ रहे थे उस से.
बेटे को भी पता ही होगा कि उन्होंने पिंक शर्ट अंदर किसी बॉक्स में रखी नई नई
शर्ट्स में से निकल कर क्यों पहनी है. बहरहाल, ऊपर मेट्रो की लाईन जा रही थी और
नीचे गाड़ियां थी कि इंच इंच सरक कर दस दस मिनट रुकी रहतीं. उन्होंने बेटे से कहा –
‘ऊपर कितनी मेट्रो ट्रेनें निकल गई. शाम का समय था सो मेट्रो में नहीं चल सकते
थे...’ पता उन्हें भी था कि लड़की देखने जाओ तो अपना रुतबा दिखने के लिये कार में
ही जाया जाएगा. पर उन्हें खुशी हुई यह जान कर कि इस दौरान एस.एस. सरीन साहब यानी
शिव शंकर सरीन साहब के भी चार फोन आ गए कि वे भी ट्रैफिक जैम में फंसे हैं. मज़े आ
गए... आखिर जैसे पूरा गर्मियों का सीज़न रस्ते में ही बिता कर कार पहुँची उस मॉल तक
जिस में उन्हें मिलना था. फ़ूड कोर्ट में. लिफ्ट से ऊपर चढ़ कर तीनों आगे बढ़े तो
गौरव लपक कर आगे दौड़ते दौड़ते बोला – ‘वे लोग भी पहुँच गए पापा. मैं उन्हें रोकता
हूँ. वो रहे....’
आखिर एक बहुत शोरीले से फ़ूड कोर्ट में सब लोग
पहुँच गए. शिव शंकर जी महाराज उनकी पत्नी तनूजा और? और... और उनकी प्यारी सी
बिटिया गौरवा जो गौरव के साथ मुस्कराती हुई आगे बढ़ रही थी तो उन्हें लग रहा था
ज़िंदगी में सुहानापन शायद अब इतने साल यानी तीस साल बाद आया है...
पर उस सुहानेपन को आखिर चौंकाने ने जाने कौन आ
गया. अभी उस कडकडाते शोर में वे लोग एक बढ़िया सी मेज़ पर बैठे ही कि उनके सामने
एक लंबा सा आदमी आ खड़ा हुआ, शैल से बोला –
‘आ गए बहन जी...’ और शैल चिहुंक उठी. उठ खड़ी
हुई और क्षण भर को उस आदमी के साथ गायब हो गई और लौटी तो साथ में थी उसकी प्यारी
प्यारी बहना शील! जो अपने ड्राईवर के साथ अचानक किसी देवी सी यहाँ प्रकट हो गई थी
और जो आदमी अभी आया था वह उसकी कार का ड्राईवर था. शैल ने क्या किया कि शिव शंकर
जी से अपनी बहना का परिचय कराया – ‘ये मेरी बहन है. हम लोग मिलने वाले थे सो मैंने
इसे फोन कर दिया था कि आ जाओ तुम भी. मुझ से कुछ नहीं निपटेगा. सो तैयार हो कर कार
में आ गई है...’ बस इसके बाद किस्सा लगभग खत्म ही होना था, जैसे उस कुंडली मिलान
वाली वेबसाईट को कोई आखिरी टेस्ट रहता था जो उतना ही अदृश्य था जितना कि वो ईथर
जिस के रास्ते जितने भी ग्रह हैं वे हमारी जिंदगियों पर असर करते रहते हैं. उन्हें
तो अचानक अपनी इस ठिगनी सी और पोपले से मुंह वाली साली साहिबा जो शायद जल्दी में
अपनी बतीसी ही जयपुर भूल आई थी, को देख कर लगा था जैसे उस अदृश्य लीकुइड ईथर से
प्रकट हो गई है या क्षण भर को सारा ईथर जुड़ कर एक
औरत में बदल गया है जो पोपले मुंह से मुस्कराती बोलती है तो लगता है जैसे
शब्द उसके मुंह में छलांगें लगा रहे हैं. साड़ी भी नई नई और मस्त सी और ब्लाऊज़ भी
जैसे आज सुबह ही घर बैठे सिलवा कर आई थी. सब कुछ नया नया था इस ठिगनी सी शील में.
ब्लैकिश सी अति ब्राऊन पर रेशमी सी साड़ी का पल्लू बार बार उछाल उछाल कर जैसे अपनी
हस्ती का ऐलान कर रही थी, बैठी भी ठीक गौरव और गौरवा के बीच. अपने आसान पर जयपुर
वाले अपने घर में बैठी वह दिन भर पोते पोतियों को खूब झाड़ पोंछ भी करती है. तीन
बाहें हैं और तीनों की नौकरियां छुडवाने का रिकार्ड कायम कर चुकी है वह. घर की
बातें समाप्त हो जाएं तो आस पड़ोस की खबर्चार लेने को किसी ना किसी को बुला लेती
है. घर में किसी भी बहू से मिलने कोई भी आ जाए सब से पहले हमारी सासू माँ के आगे
माता टेकेगा. उसके लिये आदर्श ज़िंदगी यही है कि बहूरानी घर के चार पांच कमरों के
बीत आत्मा सी भटकती रहे और आखिर रात को जब सारे काम निपटा कर सोये तो सोते ही उसे
मोक्ष का सा आभास हो. उन्होंने खुद एक बार शैल से कहा था – ‘तुम्हारी मित्र मंडली
कहाँ है? तुम्हारे क्षितिज कहाँ हैं? कहाँ हो तुम खुद?’ शैल खिलखिला कर हंस पड़ी
थी, बोली – ‘ये हूँ मैं खुद. जी भर कर देख लो, नहीं रहूंगी तो रोओगे.’ मैं खुद
कहते हुए उसने खुशी से अपने हाथ से खुद अपने सीने की ओर संकेत किया था. फिर बोली थी – ‘ये रहा मेरा क्षितिज महाराज. ह
ह ह ह... मेरी मित्र मंडली भी तुम तो मेरे गणेश भी तुम... सब कुछ तुम ही तो हो और
क्या...’ फिर फटे मुंह पति को देखने लगी जैसे पति इस कदर बुद्धू सा हो कि एक छोटी
सी बात नहीं समझता. फिर वह जाने किस मूड में थी कि उन से लिपट कर एक गीत बहुत पतली
और अध सुरीली सी आवाज़ में गाने लगी – ‘पंछी से छुडा कर उस का घर तुम अपने घर पर ले
आए, ये प्यार का पिंजरा मन भाया हम जी भर भर कर मुस्काए जब प्यार हुआ इस पिंजरे से
तुम कहने लगे आज़ाद रह... ह ह ह ह ... पतली सी आवाज़ में लगातार मुस्कराती रही शैल
तो... और उन्हें एक अजीब बोरियत सी होने लगी इस अध सुरीली सी आवाज़ से जो अचानक सर
उनकी गोद में रख कर लेट सी गई थी...
बहरहाल. वो दिन निपट गया. सब कुछ बढ़िया चल रहा
था. गौरवा अपने इस अंकल और कल्पित नए पिता से गप्पें मार मार कर खूब हँसती जा रही
थी. शिव
शंकर से उन्होंने कह दिया था – ‘हम लोग सिर्फ हार्डवेयर हैं. सॉफ्टवेयर तो
ये बच्चे हैं. हम इन्हें सिर्फ सपोर्ट
करेंगे. ये एक दूसरे को पसंद कर लेंगे तो हम इन्हें पूरा समर्थन दे कर शादी कर
देंगे इनकी. आगे ये दोनों जानें... गौरवा का बहुत जी करता कि जिस समय उसे कहकहा आ
रहा है या प्यार, वह अपने ससुर (जैसा कि वह अवचेतन में कब का सोच चुकी थी) के कंधे
पर लाड़ से अपना सर रख दे. उस मुलाकात में लेकिन जब खाने पीने की चीज़ें आई तब एक
ब्रेड सैंडविच हाथ में पकड़ पोपले मुंह से
थोड़ा सा चप् चप् कर के दबोचने के बाद बाकी हाथ में पकड़ उसने जो बोलना शुरू किया तो
शब्द और अंदर फंसी डबल रोटी उछल उछल कर हवा में तैरने लगे. वैसे खूब शोर था क्यों
कि उस बड़े से ओपन फ्लूर में कम से कम सौ टेबलें थी जो सब की सब भरी थी, पर शब्द
जैसे पूरी फज़ा में फ़ैल गए – ‘अरे नौकरी की ज़रूरत क्या है इसे? क्या यह नौकरी
छोड़ेगी? मैं तो छुडवा दूंगी. पढ़ी लिखी है तो बस ना, और क्या चाहिए... वगैरह वगैरह,
काफी कुछ कह गई जैसे आज उसके लेक्चर का प्रोग्राम देखने आए हों ये चार पांच सौ
लोग... ठीक तीसरे दिन ही गौरव ने उन्हें एस.एम.एस किया था – ‘पापा गौरवा डर गई है.
उसने अपने पापा से कह दिया, मुझ से शादी नहीं कर सकेगी वह. मुझ से खूब माफी माँगी
उसने पर कहा कि वह मजबूर है. अपनी पर्सनैलिटी के साथ वह इतना बड़ा खिलवाड़ नहीं होने
देगी...’
वर्मा जी एस.एम.एस पढ़ कर सन्न से रह गए. उन्हें
लगा था कि जिस ईथर के ज़रिये शील को शैल की
खबर चुपचाप पड़ गई हो गी किआज वे लड़की देखने जा रहे हैं उसी ईथर में कुछ ज़हरीला सा
उनके जीवन से जुड़ गया है. अफ़सोस अब आगे जाने क्या हो...
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