“क्योंकि मैं सोचता हु इसलिए मैं हूँ”.
डेसकार्टेस के इसी विचार के आधार पर प्रेमचंद सहजवाला जी सोचते चले गए, और लिखते चले गए, और जीते चले गए. और फिर एक दिन बस चले गए।
पर नहीं, गए कहाँ हैं वो? बहुत कुछ है हमारे पास जिससे उन्हें हम अपने बीच जीवित रख सकते हैं. उनका लेखन, और उनकी सोच दोनों ही. और उनके बहुत से अधूरे काम। .
इस वेबसाइट के माध्यम से हम कोशिश करेंगे कि उनकी लिखी कहानियां, कवितायेँ, लेख व उनकी विचारधारा लोगों तक पहुंचें। कोशिश यह भी रहेगी की इसी माध्यम से उनके संस्थापित ‘अंजना: एक विचार मंच’ को भी नयी ऊचाइयों तक
ले जा सकें, तथा उनके अधूरे समाजिक कार्यों को भी संपन्न कर सकें
1 comment:
सर को नमन .........एक बेहद विनम्र और चिंतनशील व्यक्तित्व के मालिक थे .
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