Sunday, July 15, 2012

यह भी सच है...

यह भी सच है... (प्रकाशित – ‘हंस’ दिसंबर 2011). कहानी: प्रेमचंद सहजवाला आज शाम होते ही यूं हुआ कि रहेजा सा’ब दोपहर की नींद से जागते ही कमरे के आदमकद शीशे के ठीक सामने खड़े हो कर अपने ही बिम्ब में अपनी आयु का आकलन करने लगे. उन्हें पता है कि वे अब इकसठ के हो चले हैं तथा बालों को पत्नी कनक डाई लगा कर काला करती रहती है. पर उन्हें अकारण अपनी आकृति कुछ अधिक ही बुढाई हुई लगी तो वे तुरंत बाथरूम में घुस गए और नहाने लगे. कनक ने तब तक शाम की चाय भी बना ली थी और खुद पूरी तरह तैयार भी हो गई थी. कनक तो थी पचपन की और सब को यही बताती थी कि वह पचास की है. यह बात केवल रहेजा सा’ब को ही मालूम है. रहेजा सा’ब नहा कर निकले और फ़ौरन अपना चमचमाता कुर्ता पाजामा पहन फिर शीशे के सामने खड़े हो कर कंघी वँघी करने लगे तो खुद को काफी बेहतर लगे. कनक आ गई और उनके ठीक साथ खड़ी हो कर मुस्कराने लगी, बोली – ‘आप तो कहते थे न, कि आप एकदम संजीव कुमार की तरह लगना चाहते थे. पर आप तो यूं ही बहुत आकर्षक हो!’ रहेजा सा’ब को लगा कनक उनका मज़ाक कर रही है पर कंघी वँघी कर के दोनों चाय की मेज़ पर बैठे तो कनक बोली – ‘मैं तो आठ बजे तक लौट आऊँगी. आप अपना खयाल रखना. तब तक फेसबुक वगैरह देखते रहना. मैं मोबाईल पर आपको सूचित करती रहूंगी कि कहाँ कहाँ पहुँची हूँ. आप की तो ज़िद है न, कि मैं भी बस, कोई दोस्त बनाऊँ, और किसी दोस्त के साथ किसी बहाने जाऊँ और कहीं चाय कॉफी भी बैठ कर पियूं. अब यह कोई उम्र हुई दोस्त बनाने की. जब दोस्त यार थे तो सब आपने ही छुड़वा दिया.’ रहेजा सा’ब बोले – ‘औरत को भी तो वही आज़ादी होनी चाहिए न, जो पुरुष में है. यदि तुम किसी रेस्तरां में बैठ कर अपने किसी दोस्त के साथ चाय कॉफी पियोगी, गप्पें मारोगी या हंसोगी खिलखिलाओगी तो कौन सी अपवित्र हो जाओगी!’ - ‘ह्म्म्म. तभी आप ज़िद पर थे कि बस, मैं भी अपना एक दोस्त बनाऊं और यदा कदा उसके साथ चाय पीने जाऊँ. कभी तो जवानी में किसी से मेरा बात करना भी आप को अखरता था!’ रहेजा सा’ब मुस्कराए – ‘मेरे लिये जब भी किसी महिला का फोन आया तो तुमने खुद फोन आ कर मुझे दिया. कभी पूछा तक नहीं कि यह मैडम है कौन. मैं तो तुम्हें बता कर जाता रहा कि आज इस मैडम के साथ जा रहा हूँ, एक ऑफिस में उसे काम है. आ कर तुम्हें बताता रहा कि काम होते ही उसके साथ मैंने फलां रेस्तरां में चाय पी. मुझे इसीलिये सूझा कि मुझे कितनी खुशी होगी, अगर तुम भी ऐसे ही किसी के साथ जाओ!’ कनक खूब हँसने लगी, इतनी कि रहेजा सा’ब को समझ ही नहीं आया. पर कनक हँसती चली गई. * * कनक ‘बाय’ कर के चली गई तो रहेजा सा’ब फिर नितांत अकेले से महसूस करने लगे. कुछ देर तो बैठक में ए.सी. चला कर बैठ गए पर फिर मन न लगा तो ए.सी. बंद कर के लैपटॉप वाले रूम में आ गए. पर फिर कुछ देर वहाँ भी एकाग्रता नहीं जम पाई तो पूरे फ़्लैट में टहलने लगे. उन्हें कल्पना में नज़र आया कि यहीं नज़दीक ही मेन रोड पर कनक अपने दोस्त के इंतज़ार में खड़ी होगी और वह मोटर साईकिल पर आएगा और कनक पीछे बैठ उसकी कमर या कंधे पर हाथ डाल उस से बातें करती आगे की यात्रा करेगी. बल्कि उन्हें लगा कि उसका वह दोस्त उपेन्द्र पहले ही ज़रूर फुटपाथ पर मोटर साईकिल रोके उसके इंतज़ार में खड़ा होगा. कुछ दिन पहले उनमें और कनक में लगातार यही बात होती रही कि अब यह लैपटॉप जो बेटी दे कर लंदन में जा बसी है, पुराना सा हो गया है और बहुत प्रॉब्लम कर रहा है सो नया ले लेना चाहिए. कनक ने कहा था – ‘एक दिन न, मैं आई.सी.आई.सी.आई बैंक गई थी तो वहाँ कोई उपेन्द्र मिला था. बड़ा भला सा आदमी है. बातों बातों में दोस्ती सी हो गई. यह सुन कर रहेजा सा’ब ने खूब खुशी जताई और बोले – ‘चलो, तुमने भी एक दोस्त तो बनाया.’ - ‘हाँ पर वह डीसेंट है न.’ - ‘मैंने कौन सा कहा दुश्चरित्र होगा... हा हा हा हा...’ रहेजा सा’ब को पुराने दिन याद आ गए. शादी हुई तो लव मैरेज थी पर शुरू के दो तीन साल बहुत तनावपूर्ण थे और इतने तनावपूर्ण थे कि दोनों मियां बीबी के अलग होने की नौबत आ गई थी. तलाक तक की बातें होने लगी थीं पर बड़ी मुश्किल से वे कुछ साल बीत चले और दोनों में समझौता सा हो गया. पहले उनका कहना था कि कनक बहुत फ्रैंक है, सब से घुलमिल कर बात करने लगती है. कनक कहती थी कि वह भी पढ़ी लिखी है सो सब से बातचीत करने का उसे भी तो हक है. पर जब घर में कुछ शांति आई, तब कनक काफी बदल गई थी. माँ ने ही कहा था कि ज़िंदगी बचानी है तो पति का साया बन कर रहो, वर्ना घर गंवाओगी. उसने तो माँ से भी तर्क वितर्क किया था कि पति का साया बनने का मतलब यह तो नहीं कि अस्तित्व को ही समाप्त कर दो. पर माँ ने डांट पिला दी थी और कनक के पास चुप रहने के अलावा कोई विकल्प न था. बेटी जब कनक अपनी किस्मत से समझौते पर उतरी थी, तब हुई थी. रहेजा सा’ब तो ज़िंदगी भर सरकारी दफ्तर में क्लर्की करते रहे और आखिर तक पहुँचते पहुँचते केवल छोटे मोटे गज़ेटिड ऑफिसर ही बन पाए. दफ्तर की बाबू मानसिकता के होते वहाँ काम करने वाली महिलाओं के बारे में जो फब्तियां चलती थीं, रहेजा सा’ब एक प्रकार से स्वयं भी उसी का हिस्सा बन गए थे. कनक ने शादी के तुरंत बाद कहा था कि वह भी नौकरी करती है तो क्यों न जारी रखे पर रहेजा सा’ब गुर्राए थे – ‘न न, पता है मुझे, ऑफिस में काम करने वाली औरतों के बारे में ऑफिस वाले क्या क्या कहते रहते हैं.’ - ‘क्या क्या कहते रहते हैं?’ - ‘सब को चालू औरतें कहते हैं ऑफिस वाले. तुम भी चालू कहलवाओगी क्या?’ - ‘मतलब सारी पढ़ाई कूडेदान में डाल कर औरत घर में आ कर किचन में टंगी रहे या फर्नीचर साफ़ करती रहे यही न?’ - ह्म्म्म. और क्या. लेडीज़ जिस काम के लिये बनी हैं वही तो करेंगी न. कोई मिस वर्ल्ड थोड़ेई बनने चली जाएँगी!...’ कनक ने वे तनाव के वर्ष काटे थे और किसी प्रकार मन मार कर बैठ गई थी पर पिछले पांच छः वर्षों से वह पति के रंग ढंग देख खूब हँसती रहती है. पति महोदय कहने लगे हैं – ‘हमने यूं ही इतने साल गँवा दिए. मैं तुम पर कितनी सख्ती करता रहा. औरतें देखो कहाँ की कहाँ पहुँच गई हैं. तुम वही घर की मेहतरानी या कुक बनी रही.’ कनक हँसती उन पर – ‘ज़िंदगी भर तो गला घोंट कर रखा. अब सपने आ रहे हैं कि मैं भी कुछ करती तो...’ रिटायर होते ही रहेजा सा’ब ने पोस्ट ऑफिस जा कर और कुछ निजी कंपनियों में हाथ आज़मा कर उनकी एजेंसियां ले ली कि लोग कोई एफ.डी कराएं और उन्हें समुचित कमीशन मिलती रहे. उन्हें जोश आया तो कनक को भी एक दो प्रूडेंशल कंपनियों की एजेंसी ले कर दी. बेटी की शादी उन के रिटायर होने से दो साल पहले ही हो गई थी और वह शादी के बाद लंदन चली गई थी. पति गौरव उसकी फर्म में नोयडा में ही उसे मिला था जिस से प्रेम विवाह किया उसने. फिर गौरव उसी फर्म की तरफ से लंदन में पोस्ट हो गया. रहेजा सा’ब बढ़ चढ़ कर कनक को बताते रहे कि जैसे उन दोनों ने किया, वैसे हर लड़की को पूरा अधिकार है अपना जीवन साथी खुद चुनने का. कनक के पास पति की हर बात और हर परिवर्तन पर हँसने के अलावा कुछ था ही नहीं. कनक उपेन्द्र की मोटर साईकिल पर पीछे बैठी उस से गप्पें मारती जा रही थी और रहेजा सा’ब यह सब कल्पना में देख प्रसन्न हो रहे थे. तभी उन्हें कनक का फोन मिला – ‘खान मार्केट पहुँच गए हैं उपेन्द्र और मैं. लैपटॉप की दुकान का मालिक दिखाएगा अभी कुछ नमूने. कोई पसंद आया तो बताऊंगी आप को हँ?..., ठीक है न...’ रहेजा सा’ब की आवाज़ उड़ती सी जा रही थी – ‘हाँ हाँ घबराना मत. चाय कॉफी पीनी हो तो खुशी से चली जाना.’ कनक बोली – ‘कह रहा है उपेन्द्र हैबीटैट सेंटर में एक बड़ा रेस्तरां है ईटोपिया, उसी में चलेंगे.’ - ‘ओके. ज़रूर जाना. घबराना मत.’ कनक खफा सी हो गई – ‘आज़ादी ज़रा सी भी मिले तो उसका भी पति महाराज के सुपरवियन में ही मज़ा लो. हं...’ पर पति से वह बोली – ‘घबराना क्या पर पहले जिस काम से आई हूँ वह तो हो जाए न. लैपटॉप कोई आज ही थोड़ेई ले आऊँगी. यह तो उपेन्द्र का दोस्त है कह रहा है उसका तो घर वहीं अपने नरायना में ही है, वह कुछ नमूने घर भी ले आएगा और डेमो कर के दिखाएगा...’ - ‘ओ.के.’ रहेजा सा’ब को अब कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि आगे वे कहें क्या, क्योंकि वे तो मानो पिछले तीन चार वर्षों से खुद को ठीक करने में लगे हुए हैं कि कनक भी तो इंसान है और उसे भी अपने तरीके से ज़िंदगी जीने का पूरा हक है. पर इधर कनक थी कि उसे लग रहा था कि पति का यह टैग यानी मिसेज़ रहेजा उसकी शख्सियत से हटेगा ही नहीं कभी और वह यहाँ उपेन्द्र के साथ एक कहकहा भी लगाएगी तो वह भी पति महोदय कल्पना में देख ही रहे होंगे और बेकार में खुश होते रहेंगे, फिर बार बार उसे भी बताएंगे कि अब तो उनके विचार बहुत बदल चुके हैं ना, मानती हो ना... फिर कनक कल्पना करने लगी कि लैपटॉप पर बैठने का शौक इनको ही ज़्यादा है और इन्होने ही खोज निकाला था कि चैट कैसे करते हैं और कि फेसबुक क्या होता है. देखते देखते वे शाहरुख खान या सलमान खान बन कर लड़कियों से चैट भी करने लगे. फेसबुक पर ज़्यादा से ज़्यादा महिलाएं ही इन्होने मित्र बनाईं. कनक खुद भी फेसबुक पर आ गई पर प्रायः हल्के फुल्के मन ही बैठती. उसकी किसी सहेली ने उसे कुछ मित्र सजेस्ट किये जो उसने फेसबुक पर बना लिये और यदा कदा सर्फिंग कर लेती थी. एकाध कनाडा लंदन से भी बन गए. रहेजा सा’ब सोचने लगे कि जब से उन्होंने वह बाबूगिरी वाला दफ्तर छोड़ा है तब से न जाने क्यों मॉडर्न से हो गए हैं. पोस्ट ऑफिस में ही पहचान बना कर उन्होंने एक दो महिलाओं से कहा कि जिस कंपनी में मैं आप की एफ.डी कराना चाहता हूँ वह कनॉट प्लेस में है और कभी वहाँ मेरे साथ चलिए न.’ महिला चल पड़ी तो रहेजा सा’ब ने मेट्रो वेट्रो का झंझट छोड़ टैक्सी में जाना चाहा. पर महिला ने उन्हें चौंका दिया कि अरे, ऐसी बात है तो मैं अपनी कार निकाल लाती हूँ. पहले खयाल ही नहीं आया मुझे, सोचा था शायद आपके पास कोई स्कूटर व्कूटर तो होगा ही. इतने आत्मविश्वास वाली महिला के साथ उसकी ही कार में जाते जाते रहेजा सा’ब का मन जैसे आसमान में उड़ रहा था और मानो उनमें भी एक आत्मविश्वास सा आ रहा था. कंपनी में जा कर अंदर दो चार लोगों से मिलवाया और महिला ने साठ साठ हज़ार की दो एफ.डी करा भी दी, चेक बुक वह ले कर ही चली थी. बाहर निकलते ही रहेजा सा’ब बोले थे – ‘चलिए न, यहाँ मैकडोनॉल्ड में चल कर कहीं कॉफी वॉफी पीते हैं.’ पर महिला बोली – ‘मैकडोनॉल्ड में बहुत क्राऊड होता है. मैं कैफे कॉफी डे में जाना पसंद करती हूँ. वहाँ रेट भले ही हाई होते हैं, पर शांति सी होती है.’ रहेजा सा’ब खुश. मन ही मन हैरानी भी हो रही थी कि ऐसे, यह विवाहित महिला जिसकी दो बेटियां भी हैं, कैसे मेरे साथ आ कर बैठ गई है. कैफे कॉफी डे में बैठे बैठे उस महिला का मोबाईल भी बजा जो उन्हें पता चल गया कि उसकी बेटी का ही है. बेटी ने शायद पूछा हो – ‘मम्मी आप कहाँ हो?’ महिला बोली थी – ‘बस यहीं उसी कंपनी के ऑफिस में हूँ अभी. वापस पहुँचने वाली हूँ.’ पर उनका आत्मविश्वास तब और भी बढ़ा जब ऐसा ही एक दो तुक्का एक दो और महिलाओं से लग गया उनका. एक महिला के साथ इसी कैफे कॉफी डे से बाहर निकलते निकलते वे पूछ बैठे – ‘कभी एक्स्ट्रा मैरिटल रिलेशनशिप का मौका आया आपकी जिंदगी में!’ महिला सख्त सी हो कर अपनी कार में बैठते बैठते बोली – ‘मुझे ऐसी बातें अच्छी नहीं लगती. मैं जिसके साथ जाती हूँ जाती हूँ बस, मेरे कई दोस्त हैं. पर मुझे ऐसे बेकार के पचडों में नहीं पड़ना आता जो आप कह रहे हैं. दोस्ती ठीक है बस. क्या औरत मर्द में एक्स्ट्रा मैरिटल के सिवा और कुछ है ही नहीं?’ कनक का फोन फिर बजा. बोली – ‘उपेन्द्र के दोस्त ने न तीन अच्छे नमूने दिखाए हैं. सभी में लैपटॉप के सामने खड़े हो कर ही फोटो या विडियो भी बन जाता है. बाईस से तीस तक की रेंज के हैं. कोई भी लो तो तीन हज़ार छोड़ेगा.’ इधर रहेजा सा’ब ओके बोले तो कनक आगे बोली – ‘कह रहा है आप कहो तो संडे को ही घर में भी ले आएगा तीनों नमूने. आप यहाँ आ कर देखना चाहोगे कभी?’ - ‘नहीं नहीं क्या ज़रूरत है. अभी तो तुम उपेन्द्र के साथ ईटोपिया जाओ ना...’ पर कनक ने उन्हें निराश सा कर दिया, बोली – ‘कह तो रहा है पर अब क्या ज़रूरत है. घर आ जाती हूँ आप अकेले हैं ना...’ रहेजा सा’ब उत्तेजित से बोले – ‘नहीं नहीं ज़रूर जाओ तुम, वो बुरा ना मान जाए ना...’ कनक के पास भी ओके कहने के अलावा कोई चारा नहीं था. रहेजा सा’ब फिर कल्पना करने लगे कि मोटर साईकिल पर कनक उपेन्द्र के पीछे बैठी है और वहीं खान मार्केट के सामने ही मैक्स मूलर मार्ग के अंत में ही तो है हैबीटेट सेंटर. पर अगर वह साथ ही के ऐम्बेसडर में चली जाए तो कितना मज़ा आए. फिर वे सोचने लगे नहीं नहीं, कनक तो ज़मीन में गड़ जाएगी ऐसी अंतरंग जगह पर बैठने में किसी के साथ. वैसे अगर जाए तो क्या हर्ज है. पर ईटोपिया भी ठीक ही है. बहुत बड़ा हॉल है जैसे सिनेमा हॉल हो. भीड़ सी रहती है. भीड़ में कोई पहचान भी ले तो क्या है, किसी के बाप का कुछ ले रहे हैं क्या हम कि कहीं जा भी ना सके मेरी बीबी... सोचते सोचते रहेजा सा’ब ने लैपटॉप ऑन किया और एक चैट रूम में आमिर खान नाम से चैट करने लगे. अक्सर वे पॉर्न साईट में भी चले जाते हैं, उनके लिये यह ताजिरबा भी विचित्र था कि कई लड़कियां चैट पर ही सम्भोग तक कर लेती हैं और चैट में ही कपड़े उतार कर अंग अंग का वर्णन करती बातें करती हैं और सम्भोग के दौरान की तरह तरह की कराहें भी लैपटॉप पर टाईप कर के खूब हँसती हैं, कहकहे लगाती हैं. वे एक बार अपने असली नाम से एक चैट साईट के लाऊंज में चले गए थे. वहाँ एक पचपन वर्षीय विवाहित महिला से गप्पें मारने लगे. उस से बोले रहेजा सा’ब कि अदम को तो हव्वा ने एक ही ऐपिल दिया था. पर अब जो हव्वा पृथ्वी पर घूमती है तो उसके पास दो दो ऐपिल हैं. महिला हा हा कर के हंस पड़ी. रहेजा सा’ब ने कहा – ‘आर यू इंट्रेस्टिड इन सेक्स चैट?’ महिला बोली – ‘वाई नॉट’ और रहेजा सा’ब कहने लगे – ‘बट यू आर मैरीड!.’ पर वह महिला बोली – ‘लीव इट देन, इफ यू आर अफ्रेड. गेट लॉस्ट.’ रहेजा सा’ब अपना सा मुंह ले कर रह गए. अब वे कल्पना करने लगे कि उपेन्द्र भी ज़रूर कनक से थोड़ी सी तो आज़ादी मांग ही लेगा. कितना मज़ा आए तब! कुछ ही दिन पहले उन्होंने ऐसी बातों से कनक को खफा भी कर दिया था. रात को सो रहे थे दोनों कि रहेजा सा’ब ने कनक की ठुड्डी को अपने हाथ में पकड़ उसका चेहरा अपनी तरफ कर के कहा – ‘आजकल ना सब चलता है. ज़्यादा घबराया मत करो. कोई मिले तो हगिंग वगिंग सब चलती है. तबियत से लिपट लेना आजकल मामूली बात है. इक्कीसवीं सदी जो है.’ फिर सहसा कनक की आँखों में आखें डाल मुस्करा पड़े और बोले - ‘कोई कोई ना, ए पेक ऑन द चीक भी मांग लेता है... यानी गाल पर ज़रा होंठों से पुच करने की इजाज़त!... ही ही...’ कनक को आया गुस्सा वह उनका हाथ झटक करवट बदल कर सो गई. बोली – ‘लाईट ऑफ कर दीजिए प्लीज़. मुझे सुबह जल्दी उठना है. आप की मेडिसिन लेने तो डिस्पेंसरी जाऊंगी ना...’ चैट करते करते रहेजा सा’ब थक गए तो सोचा अब फेसबुक में जाता हूँ. वैसे फेसबुक में चैट वे कम ही करते हैं क्योंकि वहाँ जो भी दोस्त हैं वे उनका असली नाम जानते हैं. पर इधर उन्होंने फेसबुक खोला और उधर फ़्लैट में बाहर नीचे सीढ़ियों का ताला खोलने की आवाज़ सी आई. उन्हें पता चल गया कि कनक आ गई है, और वह अपनी चाबी से नीचे सीढ़ियों वाले दरवाज़े का लॉक खोल ऊपर आ जाएगी, फिर फ़्लैट की चाबी भी उसके पास है. यह कमरा दूर है. इसी समय उन्हें यह भी लगा कि अरे, यह तो कनक का फेसबुक एकाऊंट है, शायद खुला ही रह गया. और कनक की एक चैट पढ़ते पढ़ते वे हैरान से भी हो रहे थे. दिल धक् धक् सा भी कर रहा था. सेक्स चैट! कनक!! क्या क्या कह रहे हैं दोनों. उधर से कोई कनाडा में बैठा अजनबी सा दोस्त वीरेन है कनक के फेसबुक का. और कनक कह रही है – ‘यैस, वाई नॉट. किस मी!’ और उधर वाले ने टाईप कर दिया है – ‘पुच!’ कनक ने भी टाईप कर रखा है – ‘पुच!’ - ‘पुच!’ - ‘पुच!’ आगे की पढ़ कर रहेजा सा’ब के दिल की धक् धक् जैसे बढ़ सी गई. आगे सब कुछ है. कनक ने टाईप करते करते कपड़े तक उतार रखे हैं, वह निपट निर्वस्त्र है. उस तरफ कनाडा में बैठे अजनबी महाशय भी निपट निर्वस्त्र हैं, और आगे हैं आवाज़ें ही आवाज़ें! कराहें... आह!... क्या कर रहे हो... प्लीज़ बस...’ रहेजा सा’ब को काटो तो खून नहीं. उन्हें तो यह होश भी भूल चुका था कि कनक उनके ठीक पीछे आ कर खड़ी भी हो गई है और शायद उसे इस बात का अहसास भी हो चला है कि रहेजा सा’ब तो उसी की लापरवाही से खुली छूट चुकी चैट पढ़ रहे हैं. पर कनक ने क्या किया कि उनकी गर्दन के गिर्द बांहों का हार सा बना कर पीछे से ही फेसबुक पर अपने चैट विंडो पर ‘क्लीयर विंडो’ क्लिक किया और चैट ऐसे गायब हो गई जैसे अचानक तेज़ रौशनी से आँखें फटने सी लगती हैं. फिर कनक ने चुपचाप अपना फेसबुक एकाऊंट ही लॉग आऊट कर दिया और मुस्करा दी जैसे उन्हें बता रही हो, कि यह सब तो झूठ है डार्लिंग, सच तो यह है जो मैं कर रही हूँ. और वह बांहों का हार उनके गले में अटकाए ही पीछे से अपना चेहरा उनके चेहरे के साथ सटा कर मुस्कराती हुई प्यार सा करने लगी. पर रहेजा सा’ब को लगा जैसे कनक के कपोलों के स्पर्श में एक निर्जीवता सी है, जाने क्यों. वे कई क्षण उस स्पर्श में कोई स्पर्श खोजते स्वयं भी लगभग निर्जीव से बैठे रहे, जाने कितनी देर! और कनक थी कि अपना कपोल उनके कपोल से घिसती ही जा रही थी, सिर्फ एक स्पर्श का सृजन करने की नाकाम कोशिश में!

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