Friday, August 17, 2012

क्रेज -

क्रेज़ संस्मरण - प्रेमचंद सहजवाला क्रिकेट के इतिहास में सुनहले दो पल तो हर किसी को याद रहते होंगे, एक तो 25 जून 1983 को जीता विश्व-कप और दूसरा 2 अप्रैल 2011 को जीता विश्व-कप. पर शायद उतनी ही उत्तेजना भरे वे क्षण भी थे जब मुल्तान में वीरू दादा ने तिहरा शतक बनाया और मुल्तान के सुल्तान कहलाए. फिर वीरू दादा विश्व के उन चार खिलाड़ियों में रहे जिन्होंने एक नहीं दो दो बार तिहर
े शतक बनाए. इस के अतिरिक्त सचिन तेंदुलकर का महाशतक तो है ही. विश्व-क्रिकेट के इतिहास में सचमुच भारत ने बहुत अच्छी जगह बनाई है, मुश्किल से मुश्किल परिस्थितियों से उबर कर भी कभी हार को जीत में बदल दिया, हालांकि कभी कभी जीती हुई बाज़ी हारे भी. पर वह क्षण भी कितना शानदार होगा जब दिल्ली के फेरोज़शाह कोटला ग्राऊंड में अनिल कुंबले ने लिये दस में से दस विकेट और कहलाए अनिल कुंबले 10/10. तब बेटा दसवीं में पढ़ता था और क्रिकेट की जितनी सूचनाएँ उसके पास थीं उतनी शायद ही किसी बच्चे के पास हों. उसी ने बताया कि पापा सब से पहले ना इंग्लैण्ड के जिम लेकर ने दस में से दस विकेट लिये थे, कुंबले दुनिया का दूसरा खिलाड़ी है ऐसा कमाल करने वाला. बेटे को हर रिकॉर्ड बरज़बानी याद, जिम लेकर, 10/53 26 जुलाई 1956, मानचेस्टर में बरक्स ऑस्ट्रेलिया. और पापा अनिल कुंबले ने आज 4 फरवरी 1999 को पाकिस्तान के खिलाफ 10 फॉर 74 दिल्ली के फेरोज़शाह कोटला ग्राऊंड में टीपे. मैं उन दिनों अपनी बड़ी दीदी को उस के स्कूल की तरफ से मिले एक विशाल से प्रिंसीपल-निवास कक्ष में रहता था जिसमें आसपास और नीचे फर्स्ट व ग्राऊंड-फ्लोर पर स्कूल की कक्षाएं थीं. अगले दिन स्कूल की जैसे हालत खराब थी, जिस बच्चे से भी मिलो वह अनिल कुंबले अनिल कुंबले चिल्ला रहा है. बच्चों की जैसे गज गज भर चौड़ी छातियाँ हो गई थीं. पर उस से भी ज़्यादा उत्तेजना तो तब छाई जब पता चला कि स्कूल के मालिकों के प्रयास से अनिल कुंबले हमारे स्कूल में ही आ रहा है एक दिन! सचमुच, उस दिन बच्चों के उत्साह व उत्तेजना को मापने वाला कोई यंत्र होता तो फेल हो जाता. बच्चे तो बच्चे, बड़ों की खुशी का पारावार न था. मैं तब भी मौसम विभाग में नौकरी करता था. उन दिनों ड्यूटियां शिफ्ट में थीं, थोड़े विचित्र से शिडूल के साथ. एक दिन दोपहर दो से रात आठ बजे तक ड्यूटी फिर अगले दिन सुबह आठ से दो. इस से अगले दिन रात आठ से सुबह आठ बजे तक बारह घंटे की ड्यूटी और फिर रात की ड्यूटी से लौट कर पूरा दिन रेस्ट करो. उस दिन भी मैं रात की ड्यूटी ही कर आया था और नहा धो कर नाश्ता वगैरह कर के कायदे के अनुसार मुझे दो तीन घंटे सो जाना चाहिए था पर बेटे ने स्कूल से ही मैसेज जो भिजवाया कि पापा अनिल कुंबले ना आज ही हमारे स्कूल में आ रहा है, तो नींद ऐसे उड़ गई जैसे अनिल कुंबले की गेंदों पर पाकिस्तानी बैट्समैनों की विकटें उड़ी थीं. मैं भी बेसब्री से तैयार हो कर बैठ गया कि अनिल कुंबले आए तो मैं उस से जा कर मिलूँ. बड़ी दीदी उस ब्रांच में नहीं थी जिस में हम रहते थे, वरन् वह स्कूल की वसंत-कुंज ब्रांच ‘बी.आइ.एस (भटनागर इंटरनैशनल स्कूल)’ की प्रिंसिपल थी. उसने फोन पर कहा कि नीचे जहाँ प्रार्थना होती है उस ग्राऊंड में अनिल कुंबले आएगा और आज शायद कुछ पेरेंट्स को भी ग्राऊंड से थोड़ा दूर खड़े हो कर अनिल कुंबले को देखने का मौका दिया जाए. तुम भी चाहो तो देखना जा कर. और मैं भला क्या ऐसी खूबसूरत बात सुनने पर घर में बैठने वाला था! - ‘अनिल कुंबले आ गया है.’ पत्नी ने सेकंड फ्लोर के हमारे घर से नीचे झाँक कर देखा कि अनिल कुंबले कुछ अध्यापिकाओं के साथ स्कूल की इमारत के ग्रिल में घुसा है. तब मैं भी जूते पहनने लगा फिर पत्नी को बता कर उत्तेजित क़दमों से सीढ़ियाँ उतरने लगा. नीचे बिल्डिंग से ही थोड़ा बाहर आ कर जो पतली सी सड़क स्कूल के मुख्य द्वार तक जाती है, सोचा उस तक पहुंच कर स्कूल के प्ले-ग्राऊंड तक जाऊं शायद अनिल कुंबले वहीं आएगा बाद में. पर देखूं तो बाहर जाने की ग्रिल ही बंद है. - ‘सर सर, अनिल कुंबले की कार वो ओ ओ रही...’ ग्रिल के बाहर ही जो लड़का बहुत उत्तेजना से चिल्ला कर मुझे बता रहा था वह एक नौवीं क्लास का लड़का था. ख़ासा मोटा और जब कि मैं उस से सीने से सीना चिपटाए उस ग्रिल के अंदर खड़ा हूँ और वह उन असंख्य लड़कों में से था जो ग्रिल से बाहर की तरफ चिपटे केवल एक मौका पा कर अंदर आना चाहते थे कि फर्स्ट-फ्लोर दौड़ कर अनिल कुंबले को देख लें. स्कूल ने दरअसल अनिल कुंबले के मोहल्ले में आ चुके होने की खबर सुनते ही सब की सब क्लासों के बच्चों को क्लास के अंदर ही बैठे रहने को कह दिया था. एक मास्टर सभी फ्लोर्स में दौड़ दौड़ कर एक प्रकार से पूरी इमारत में सन्नाटा बिखेर आया और इस बीच अनिल कुंबले चोरी चोरी सा किस समय मुस्कराती हुई प्रिंसीपल साहिबा उर्फ उस स्कूल की मालकिन व कई अन्य अध्यापिकाओं शख्सियतों के साथ कदम बढाता जा कर फर्स्ट फ्लोर पर प्रिंसिपल के बड़े से वातानुकूलित चैंबर में बैठा किसी को पता भी ना चला. इस के बाद स्कूल ने एक और काम किया कि रिसेस की घंटी बजा दी और सब के सब बच्चों को फ़ौरन ग्राऊंड में एकत्रित होने को कहा. बच्चे समझे थे कि अनिल कुंबले ग्राऊंड में पहुँच चुका है सो दहाड़ते दौड़ते से सब के सब पलक झपकते ही बिल्डिंग से बाहर हो गए. स्कूल ने तब सब के सब ग्रिल्स पर ताले लगवा दिए कि तब तक अनिल कुंबले चाय वाय पियेगा और फिर ग्राऊंड में जाएगा बच्चों से मिलने! और इन बच्चों ने ग्राऊंड खाली देखा तो आ कर ग्रिलों पर आक्रमण करने लगे कि हमें देखने दो अनिल कुंबले को, जिसने दस में से दस विकटों का एक ही पारी में सफाया कर दिया था. जो लड़का मुझ पर चिल्ला रहा था उस का नाम था लव. मैं नौकरी के साथ साथ शौकिया कुछ गणित की ट्यूशनें भी करता था और एक दिन उसी स्कूल में पढ़ने वाले लव की मम्मी जिस से कहीं थोड़ी सी पहचान हुई थी, ने फोन कर दिया कि आप हमारे घर मिलने आओ ना, मेरे बेटे लव को मैथ्स पढाओ. थोड़ी जान-पहचान थी सो मैं उनके घर मिलने गया. वहां पता चला कि उस घर में राम सीता लव कुश चारों रहते हैं. यानी लव के छोटे भाई का नाम कुश था जो छठी में पढ़ता था और दोनों के माता पिता थे राम और सीता! मैंने सीता जी को कॉम्प्लीमेंट दिया कि आप के घर में तो पूरी रामायण है पर वह बोली – ‘हमारे घर की रामायण में कोई रावण नहीं है. ना मेरा किसी ने कभी हरण किया ना किसी की जुर्रत पड़ी.’ मैं भी हंस कर बोला – ‘सचमुच अगर असली रामायण में भी ऐसा होता तो कितना मज़ा आ जाता. पूरी रामायण राम-राज्य से भरी होती.’ इस पर सीता बोली – ‘यहाँ राम-राज्य भी है तो सीता-राज्य भी. मैं सब कुछ देखती हूँ, लव कुश की पढ़ाई और मकान के भीतर के सब काम. साथ में एक जगह पुस्तकों की एक छोटी सी दुकान भी चलाती हूँ सर.’ मैं बहुत प्रसन्न था और सीता को कॉम्प्लीमेंट दे कर चला आया कि मैं अगले सोमवार से लव को पढ़ाने आऊँगा और कि मुझे बहुत फीस का लालच या शौक नहीं है, गणित मेरा प्रिय विषय है सो मैं उस के संपर्क में रहना चाहता हूँ. अपने बेटे के साथ भी रात देर देर तक गणित पढ़ता पढ़ाता जाने कितनी देर बाद जा कर सोता हूँ. लव भी मेरा अपना बेटा हो जैसे. और इस समय लव अपने सब सहपाठियों पर जैसे रौब जमा रहा था, कह रहा था – ‘सर अंदर से बाहर निकल कर मुझे भी अंदर करवा देंगे, मैं ऊपर अनिल कुंबले से मिल कर आऊँगा.’ पर मैं तो स्थिति समझ गया था. एक भी बच्चा अंदर फिसला कि अनिल कुंबले पर ही आक्रमण सा हो जाएगा. एक चपरासी ग्रिल के बाहर खड़ा मुस्करा रहा था और एक ज्याग्रफी की टीचर भी वहीं खड़ी थी. वह मुझे देख मुस्करा रही थी कि सर कैसे आएँगे बाहर. सर तो वसंत-कुंज की प्रिंसिपल के भाई हैं और ऊपर सेकंड फ्लोर पर ही सारी फैमिली रहती है. पर मौका पा कर गेट से दो चौकीदार बुलवा लिये गए. उन चौकीदारों ने क्या किया एक ने ज़ोर से चिल्ला कर फ़िलहाल बच्चों की उस उत्तेजित सेना को थोड़ा दूर धकेल दिया और ग्रिल का ताला खुलवा कर मुझे बाहर आने दिया और फिर मुस्तैदी से क्षण भर में ही ताला बंद कर दिया. बच्चों की सेना तो हक्की-बक्की सी थी पर लव सब को धक्का देता मुझ से आ कर चिपट गया – ‘सर ज्याग्रफी की टीचर से कहिये ना आप के साथ मुझे भी ऊपर प्रिंसिपल की ऑफिस में जाने दे. आप तो खुद प्रिंसिपल के भाई हो. सर आप इतना घबराते भला क्यों हो?’ बाकी सब बच्चे बड़ी ईर्ष्या से लव को देख रहे थे जैसे सोच रहे हों कि हम तो जा नहीं सकते, कहीं इस के सर इसी को न ले जाएं अकेले, अनिल कुंबले से मिलवाने! तब तो हम कहीं इसकी हड्डी पसली एक ना कर दें. बहरहाल, मैंने लव को अपने सीने से लगा लिया और उस से कहा – ‘प्रिंसिपल तुम्हें ऑफिस में घुसा देखेगी तो कितना गुस्सा होगी बताओ! कल को कोई ऐक्शन वैक्शन ले ले तो!’ लव मान नहीं रहा था – ‘सर आप के होते...’ उस समय ज्याग्रफी की वह टीचर इस दृश्य को और लव की उत्तेजना व बाल-सुलभ आत्मविश्वास को देख लगातार मुस्कराने का मज़ा ले रही थी. पर उसने मुझे पास बुला कर धीमे से कहा – ‘आप ही कोशिश करो, इधर उधर सब ग्रिल्स पर बच्चे इकठ्ठा हो गए हैं जैसे ग्रिल्स को तोड़ ही देंगे.’ मैंने क्या किया कि सब बच्चों से कहा कि क्या आप अनिल कुंबले से मिलना चाहते हो? वे सब इतनी ज़ोर से चिल्लाए कि लगा ऊपर फर्स्ट फ्लोर पर बैठा अनिल कुंबले भी सुन लेगा मानो. सब बच्चे चिल्लाए थे – ‘यै...स स....र..’ और उनकी सम्मिलित आवाज़ ने हवा में एक उत्साह भरी गूँज सी पैदा कर दी थी. - ‘तो चलो, लाइन बनाओ. मुझे पता है अनिल कुंबले कहाँ से निकलेगा. सब लड़के लड़कियां लाइनें बनाओ.’ दो लाइनें पलक झपकते ही बन गईं. लव पीछे रह गया तो आगे वालों को धक्का दे दे कर पहले नंबर पर खड़ा होने की कोशिश करने लगा. मुझे लव के कान में कानाफूसी करनी पड़ी – ‘ज़्यादा अपनापन दिखाओगे तो सब बच्चे तुम से जलेंगे और कोई तुम्हें मिलने ही नहीं देगा कुंबले से...’ लव दौड़ कर सब से पीछे जा खड़ा हुआ और उत्तेजना में उस की सांस फूल रही थी. पर तब तक सचमुच की उत्तेजना सी छा गई. दो तीन चौकीदार दौड़े दौड़े आए, मुझ पर ही चिल्लाए – ‘आप इन बच्चों को ले कर ग्राऊंड में चले जाओ सर सब नीचे आने ही वाले हैं.’ एक टीचरों का समूह उस ग्रिल के भीतर आ खड़ा हुआ और मैं बच्चों पर चिल्ला पड़ा – ‘चलो.’ और बच्चे मेरे पीछे पीछे चल पड़े. तब तक सिक्यूरिटी वालों ने चिल्ला चिल्ला कर सब ग्रिल्स पर इकठ्ठा बच्चों को ग्राऊंड की तरफ खदेड़ दिया था. पल भर में ही पूरा ग्राऊंड भर गया. टीचर्स तभी ग्रिल के बाहर आए थे और देखते ही देखते जिस प्रकार प्रार्थना के समय लाइनें बन जाती हैं, हर क्लास अपनी अपनी पोज़ीशन्स में खड़ी हो गई. देखो तो प्रिंसिपल और कुछ अन्य महत्वपूर्ण शख्सियतों के साथ अनिल कुंबले टेन आऊट ऑफ टेन वो आ रहे हैं. प्रार्थना ग्राऊंड में और स्कूल की इमारत के बीच एक विशाल सा मंच बना हुआ था, इसी मंच पर ना जाने कितने सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए. ना जाने कितने वी.आई.पी आए. मुख्यमंत्री आईं. यह स्कूल मानव-स्थली दिल्ली के अग्रणी से अग्रणी स्कूलों में से था जिस के बच्चे दो चार बार गणतंत्र दिवस पर भी अपनी आइटम दिखा आए. पर आज जैसे इस स्कूल के बच्चों के लिये एक त्यौहार सा था. उनका चहेता खिलाड़ी वो... वो प्रिंसिपल के साथ मंच पर चढ़ रहा है. इस बीच मैंने दूर तक नज़र दौड़ा कर टेंथ की लाईन में सब से पीछे कुछ लड़कों में खड़े अपने बेटे को भी देख लिया था. काफी लंबा है सो लाइन में पीछे तो खड़ा होना ही था पर इसी स्कूल की एक ब्रांच की प्रिंसिपल क्यों कि उसकी बुआ है, सो कभी भी अनुशासनहीनता नहीं करता वर्ना वह तो स्कूल की क्रिकेट टीम का खिलाड़ी रहा है. दो तीन बार अन्तर्विद्यालय मैचों में उस का नाम टाईम्स ऑफ इंडिया तक के स्पोर्ट्स-पन्ने पर छपा देख मुझे भी गर्व सा हुआ. नाइंथ क्लास की लाइन के बीचों-बीच खड़ा मोटा सा लव मैं दूर से पहचान सकता था. उस का चेहरा आज जैसे शिकायत से भरा था कि सर ने मेरी इतनी भी मदद नहीं की. उल्टे धोखे से सब के साथ मुझे भी यहाँ ले आए. कम से कम मुझे तो ले जा सकते थे ऊपर. और इस बीच जब बच्चों का वह हीरो, वह चहेता खिलाड़ी अनिल कुंबले मंच के ठीक केंद्र में आ खड़ा हुआ तो बच्चों की हालत खराब हो गई. उत्तेजना में वे जितनी ऊंची आवाज़ में कुंबले कुंबले पुकार सकते थे उतनी आवाज़ में बुलाने लगे. हर लड़का लड़की चाहती थी कि वह ज़ोर से अनिल कुंबले अनिल कुंबले पुकारे और उसका चहेता खिलाड़ी सारी दुनिया को छोड़ अगर देखे तो सिर्फ उसी की तरफ बस. कुंबले ने बहुत प्यार से सब से कहा – ‘गुड़ मॉर्निंग मानव स्थलियन्स.’ और दाहिना हाथ उठा कर सब तरफ वेव करते करते हर तरफ घूम भी गया. बच्चे ‘गुड़ मॉर्निंग’ बड़े रिदम से बोले – ‘गुड़ मॉ...र्निं...ग अनिल कुंबले...’ सब के सब पुरुष व महिला टीचर्स इन लाइनों के आसपास ही कहीं खड़े थे और केवल कुछ अन्य ब्रांचों की प्रिंसिपल व बहुत लकदक मेकप में कुछ वरिष्ठ अध्यापिकाएं मंच पर खड़ी थीं. इस बीच मैंने देखा कि बड़ी दीदी भी आ गई है. उसने मंच की सीढ़ियाँ चढ़ते चढ़ते मुझे दूर कही बास्केट बॉल के फ्लोर पर कुछ संकुचित सा खड़ा देखा तो वेव कर के पास बुला लिया और लो, जान पहचान का भरपूर फायदा उठा कर मैं भी दौड़ कर दीदी के साथ साथ चढ़ने लगा मंच की सीढ़ियाँ. सीढ़ियाँ चढ़ते चढ़ते एक खुद पर हँसने वाला सा खयाल आया कि अनिल कुंबले को बताऊँगा कि मैंने भी ज़िंदगी में थोड़ी सी क्रिकेट खेली है और मेरा करियर बेस्ट स्कोर है पच्चीस रन! और दो बच्चों के विकेट भी लिये मैंने! पर खुद पर ही हँसते हुए यह विचार झटक दिया, जा कर कुंबले के ठीक साथ खड़ा हो गया. इस के बाद अनिल कुंबले ने बच्चों को संबोधित कर के बहुत ही प्यारा भाषण किया जिसे सुनने का रस भी बच्चे ऐसे ले रहे थे जैसे किसी रसीले से पदार्थ का रस पी रहे हों. उसने बच्चों की हिम्मत खूब बढ़ाई. उसने यह भी कहा कि जो उसकी सफलता है उसे उसकी निजी सफलता ना मान कर पूरी टीम की और पूरे देश की सफलता मानी जाए, क्यों कि ‘नेशन इज़ अबोव आ... आ... ल.’ इस पर बच्चे फिर उत्तेजित से हो कर तालियाँ बजाने लगे और एक कोरस सा शुरू हो गया – ‘कुंबले प्लेज़ फॉर इं..डि..या..आ..आ...कुंबले प्लेज़ फॉर इं...डि...या..आ..आ...’ उन्हें शायद लग रहा था कि इतनी प्यारी शख्सियत के भाषण में ज़ोर ज़ोर से चिल्लाना ठीक नहीं, सो बहुत प्यार प्यार से ही अच्छे बच्चे बन कर स्पीच सुन गए. फिर इस के बाद उत्तेजना की लहरें पूरे बच्चों के क्राऊड में उमड़ सी गईं. मंच से कुंबले व सभी लोग नीचे उतर रहे थे तो टीचरों ने अपनी अपनी लाइनों की कमान संभाल ली पर बच्चे बहुत रिदम से और बहुत सुंदर तरीके से लगातार तालियाँ बजा रहे थे और जैसे कविता पढ़ रहे थे – ‘वी लव कुंबले... वी लव कुंबले...’ का राईम सा शुरू हो गया. कोई कोई लड़का या लड़की टीचर की नज़र बचा कर कुंबले को फ्लाईंग किस दे कर शरमा कर आसपास देख प्यारी सी हंसी हँसने लगता जैसे खुद पर ही हंसी आ रही हो उसे, अपने पागलपन पर. और कुंबले जब पहुँच गए फिर प्रिंसिपल के ऑफिस तो ग्रिल फिर बंद हो गए, बच्चे फिर बाहर रह गए, रिसेस शायद कुछ समय एक्सटेंड हो गई थी. और बच्चों में उत्तेजना थी कि कुंबले ने किसी को भी ऑटोग्राफ तो दिया नहीं. कुछ बच्चे लव के नज़दीक खिसक आए – ‘अब तो ऊपर किसी किसी को जाने देंगे ना. तू अपने ट्यूशन सर से कह कर किसी प्रकार ऊपर जा कर ऑटोग्राफ ले आ ना. क्लास से हमारी कॉपी भी ले जाइयो.’ लव मुझे ही खोज रहा था, और मुझे कहीं ग्रिल के भीतर सब से आखिर में घुसता देख मेरी बाजू खींच कर बाहर घसीटने लगा. उसी समय दीदी मुझसे मुस्कराती बोली थी – ‘प्रिंसिपल के कमरे में फिर सब इकठ्ठा हो रहे हैं. मैं तो कुंबले से बाय कर के जा रही हूँ वापस वसंत-कुंज. पर तू ऊपर चला जाइयो, और सुन, तू बहुत अच्छे जोक सुनाता है ना, सो कुंबले को बहुत अच्छे जोक सुना दियो.’ और ऐन उसी क्षण लव ने क्या किया था कि जैसा मैंने बताया मुझे घसीट कर बाहर कर दिया और सिक्यूरिटी वाले ने डर कर कि कहीं बच्चों का सैलाब अंदर ना पहुँच जाए फ़ौरन ग्रिल को ताला लगा दिया. मैं रह गया बाहर. लव जैसे रुआंसी सी आवाज़ में बोला – ‘सर मुझे ले चलो ना, मैं क्लास से अपनी कॉपी ले चलूँगा आपके साथ. आप मुझे ऑटोग्राफ ले कर देना.’ लव का बस चलता तो सिक्यूरिटी वालों को दो पंच कर देता. पर मैंने लव को आश्वस्त किया कि ऑटोग्राफ मैं ले कर दूंगा. क्यों घबराते हो. लव इस समय तक सारी परिस्थिति का तनाव समझ चुका था. सो बोला – ‘सर जाइए ना, चौकीदार आपको थोड़ेई रोकेगा. और सर मैं इन में से ना किसी की भी कॉपी पर ऑटोग्राफ नहीं होने दूंगा. सब बदमाश हैं साले... सेल्फिश... किसी पर अहसान करने की ज़रूरत नहीं है सर. ’ पर मैं कुछ देर यूं ही खड़ा भी रहा कि बच्चे थोड़े से तितर-बितर हो कर फिर कहीं चले जाएं या ग्राऊंड वगैरह में एकत्रित हों तो मैं जाऊँ. इस पर लव मुझे झाड़ता सा बोला – ‘सर आप जाते क्यों नहीं भला!’ मुझे लव पर प्यार आ गया. बहुत प्यारा सा भी है और आज उसमें इस कदर भोलापन सा आ गया है कि अपनी क्लास से काफी छोटी क्लास का सा लगता है. बहरहाल, दीदी बाहर निकली तो एक और टीचर मुझे भी बुलाने आ गई. ग्रिल थोड़ा सा ही खुला था पर अब किसी बच्चे ने अंदर जाने की ताकत लगाने की जुर्रत ना की. इस समय तक सब समझ चुके थे कि कुछ भी हो, उन्हें अंदर जाने नहीं दिया जाएगा. उस टीचर के साथ मैं भी चढ़ने लगा सीढ़ियाँ और अनिल कुंबले तो प्रिंसीपल के ऑफिस पहुँच चुका था. मैं फर्स्ट फ्लोर पहुँच कर उस टीचर से बोला कि ऊपर सेकंड फ्लोर से अपनी डायरी ले कर आता हूँ. मन में यही था कि मैं अनिल कुंबले का ऑटोग्राफ कम से कम अपने बेटे के लिये तो ले लूं. फिर उसी की फोटोस्टेट लव के लिये भी करा लूँगा. डायरी ले कर मैं प्रिंसिपल ऑफिस में पहुँच गया तो सब लोग खड़े खड़े ही हंस कर गप्पें मार रहे थे. कोल्ड-ड्रिंक और एक टेबल पर रखा रिफ्रेशमेंट चल रहा था. एक टीचर ने एक कोल्ड-ड्रिंक मुझे भी दे दी. पर मेरा ध्यान था अनिल की तरफ सो मैंने उस से हाथ मिलाने को आगे बढ़ाया और उसने भी मुस्करा कर तपाक से हाथ मिलाया मुझसे. कहना ना होगा कि ऐसा प्यारा और बहुत आकर्षक मैनरिज्म वाला खिलाड़ी मैंने पहले नहीं देखा था. मैंने सब का ध्यान अपनी ओर खींच कर कुछ बढ़िया चुटकुले सुनाए. मैंने कहा कि बहुत पहले एक जोक चलता था कि नवाब ऑफ पटौदी लंदन में टेस्ट मैच खेलने गए थे और अचानक पविलियन में शर्मीला टैगोर का फोन आया कि उन्हें पटौदी से बात करनी है. शर्मीला को बताया गया कि वे अभी अभी बैटिग करने गए हैं. इस पर शर्मीला ने कहा कि मैं होल्ड कर लेती हूँ, वे तो अभी आ जाएंगे ना! पर अब तो वह चुटकुला हर उस बल्लेबाज़ पर लागू होगा जिसके सामने अपने अनिल कुंबले टेन आऊट ऑफ टेन बॉलर होंगे. वे तो लाईन लगवा देंगे और सब खिलाड़ियों की गर्ल-फ्रेंड्स इत्मीनान से होल्ड करेंगी फोन पर. अनिल केवल मुस्कराए पर टीचर्स व प्रिंसिपल उर्फ मालकिन ने कहा – ‘कुछ और बढ़िया सुनाइये.’ मैंने खूब हंसी बिखेरी पर जब अनिल कुंबले को स्कूल के शोकेसों में रखी शील्ड्स और फोटोग्राफ दिखाए जा रहे थे तब मैंने चुपके से अपनी डायरी आगे कर दी और कुंबले ने बढ़िया सा ऑटोग्राफ दे दिया. उसने हस्ताक्षर ऐसे किया कि आधे से ज़्यादा पन्ना भर गया और ऊपर कुछ लिखने की गुंजाइश ना रही. और शाम को लव के घर पढ़ाने गया तो मेरी आ गई शामत. मैं कुंबले के प्रस्थान के बाद चुपके से घर जा कर नाईट ड्यूटी की थकावट दूर करने सो गया और शाम पांच बजे ही तैयार हो कर चल पड़ा लव को ट्यूशन पढ़ाने. जब जागा तो बेटे ने हँसते हँसते कहा – ‘पापा लव का न फोन आया था. कह रहा था सर अनिल कुंबले का ऑटोग्राफ ले कर सीधे घर क्यों चले गए. उन्हें तो मेरे पास आना था सीधे. हा हा...’ मैंने बेटे को बताया लव पढ़ने में भी पहले से काफी मेहनती हो गया है, जब टेंथ के बोर्ड इग्ज़ाम में पहुंचेगा तो अच्छे नंबरों से क्लीयर कर देगा सब, कम से कम मैथ्स में तो बहुत अच्छे नंबर लेगा. पर है बहुत भोला सा. कुंबले का तो एक क्रेज सा हो गया उसमें.’ बेटा बोला – ‘कुंबले ना आता तेंदुलकर आता तो भी लव के यही हाल होते.’ मैंने कहा – ‘उसका भाई कुछ तो दूसरी ब्रांच में होने के करण कुंबले को नहीं देख पाया और लव जा कर उसी पर खूब रौब झाड़ेगा कि उसने कुंबले को देखा है.’ - ‘हा हा,’ बेटे को भी लव के भोलेपन पर खूब हंसी आ रही थी. लव का घर जहाँ आजकल राजेंद्र प्लेस मेट्रो स्टेशन है, वहीं अंदर राजेंद्र नगर की तरफ था. मैं जब भी लव के घर पहुंचा हूँ अक्सर तीन चार बार उसके घर के पिछवाड़े वाले दरवाज़े पर लगातार ठक ठक करनी पड़ी है. कभी कभी अंदर से लव की चिल्लाने की आवाज़ आ रही होती है, वह अपने छोटे भाई कुश पर चिल्लाता है – ‘ओ बदतमीज़ लड़के जा कर दरवाज़ा खोल सर पढ़ाने आए हैं देखता नहीं.’ कुश दरअसल दूसरे कमरे में पढ़ रहा होता और मैं अक्सर यही सोच कर सब्र कर लेता कि माँ बाप दोनों इस समय अपनी अपनी दुकानों में बैठे होंगे. लव कुश के पिता राम भी करोल बाग में ही रेडीमेड कपड़ों का शो-रूम चलाते हैं. दोनों बच्चे रात आठ बजे तक किसी प्रकार अकेले समय काटते हैं सो आपस में ही लड़-झगड़ कर समय बिता लेते होंगे. कुश को तो लव की खूब झाड़ खानी पड़ती होगी बात बात पर. आज लेकिन परिस्थिति ही और थी. घर के पिछवाड़े लव खुद खड़ा है, और उसकी तरफ बढ़ते हुए लगा लव तो ऐसी नज़रों से मुझे देख रहा है जैसे मैंने अगर उसे ऑटोग्राफ वाली डायरी ना दिखाई तो आज ही सबसे पहले मुझे इस ट्यूशन की नौकरी से बर्खास्त कर देगा और चिल्लाएगा भी – ‘जाओ सर, आज से मुझे आप की ज़रूरत नहीं.’ मैं जब लव से अभी बीसेक कदम दूर तक ही पहुंचा था कि लव बड़े अधिकारी स्वर में बोला – ‘सर डायरी लाए हैं, कुंबले के ऑटोग्राफ वाली? सुबह ऑटोग्राफ ले कर सीधे मेरे पास आने वाले थे ना आप!’ मुझे बेसाख्ता हंसी आ गई और लव से बोला – ‘लाया हूँ सर को अंदर तो आने दो कम से कम.’ और लव ने लपक कर दरवाज़े पर खट खट शुरू कर दी फिर मुझसे बोला – ‘ये कुश ना सर, कभी अकल नहीं सीखेगा. उसे पता है सर आने वाले हैं और मैं आप ही के लिये खड़ा हूँ, तब तक दरवाज़ा ही बंद करके बैठ गया.’ मैंने कहा – ‘छोटा भाई है आप का, उससे प्यार किया करो ना. अपना ही तो है...’ पर लव पर असर कहाँ होने वाला था. वह लपकता हुआ मकान के दूसरी तरफ फ्रंट साईड चला गया पर इस बीच कुश ने पीछे वाला दरवाज़ा ही खोल दिया और मैं अंदर जा कर सोफे पर बैठ भी गया. लाइट ऑन कर के कुश बहुत भोलेपन से बोला – ‘सर वो ऑटोग्राफ मुझे भी दिखाएंगे ना.’ - ‘क्यों नहीं,’ और तब तक लव भी उत्तेजित सा कमरे में आ धमका. कुश और लव की शक्लें बहुत मिलती हैं हालांकि उनमें तीन साल का अंतर है. दोनों एक से मोटे और एक से भोले. अपनी मम्मी से दोनों के फीचर्स बहुत मिलते हैं. लव थोड़ा ज़्यादा ही गुस्से वाला और कुश प्यारा सा और चुपचाप नपी-तुली बात कहने वाला. मैंने मैथ्स की किताब लाने को कह कर अपने कागज़ों का पुलिंदा सेंटर टेबल पर रख दिया और वह डायरी उस पुलिंदे के भीतर ही कहीं छुपी हुई थी जिस के एक पन्ने पर अनिल कुंबले के ऑटोग्राफ थे. इस बीच कुश ने थोड़ी दूर की लाइट भी ऑन कर दी और कमरे में खूब जगमग सी हो गई. फिर उसने आदतन एक प्लेट में कुछ बिस्किट भी ला कर रख दिए जो मैं कभी भी खाता ही नहीं पर वे रख देते हैं. लव बोला – ‘सर खाइए ना आप तो कभी कुछ खाते नहीं हमारे घर.’ और थोड़ी ही देर में लव को झटके से याद आया असली टॉपिक. मैंने ज्यों ही कहा – ‘आज फैक्टर्स का एक और मेथड सीखेंगे हम.’ लव उत्तेजित सा बोला – ‘सर वो डायरी नहीं लाए?’ और मेरे सामने जल्दी से डायरी बाहर निकाल कर लव के सामने पेश करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. कुश वैसे दूसरे कमरे में ही चला जाता है पर आज लव से डरता डरता उस कमरे के दरवाज़े पर ही खड़ा रहा. लव ने कुंबले के ऑटोग्राफ देखे और कहा – ‘सर ये डायरी मैं रखूँ ना?’ मैं उत्तेजित था – ‘अरे बेटे कमाल करते हो. डायरी तो मेरी पर्सनल है. मैथ्स की भी कई बातें लिखी हैं उस में. इस की फोटोस्टेट करनी थी पर मुझे समय नहीं मिला.’ लव बोला – ‘सर मैं अभी आया,’ और कह कर डायरी उठा कर वह इतनी तेज़ी से नौ दो ग्यारह हो गया कि कुश और मैं एक दूसरे को देखते ही रह गए. लव लेकिन जब दस मिनट बाद लौटा तो उसके हाथ में डायरी थी और एक फोटोस्टेट. कुश बेचारा मायूस हो कर बोला – ‘सर मेरे लिये नहीं बनवा लाया फोटोस्टेट.’ इस पर लव ने क्या किया कि उठ कर कुश की पीठ पर ही एक ठूंशा सा मार कर बोला – ‘पढ़ाई लिखाई नहीं करेगा और तू ये ऑटोग्राफ रखेगा. चल...’ और कुश को उसने धक्का दिया तो मैंने लव को खूब डांटा. अपनी डायरी अपने ही पास रख कर मैं अपने कागज़ लिये खड़ा हो गया, लव से बोला – ‘मैं आज से नहीं पढ़ाऊंगा तुम्हें. अपने ही भाई को ऐसे ज़ालिम तरीके से मारता है कोई. लाओ वो फोटोस्टेट, कहीं से भी जा कर ले लो...’ और वो कागज़ लव से खींच कर मैंने झूठ-मूठ ही बाहर का रुख किया तो लव बोला – ‘सर बैठिये ना. मैं कुश से सॉरी कह दूंगा. लीजिए...’ और वह अनजाने ही कुश से लिपटने लगा. मेरी हंसी यह देख कर रुक ही नहीं रही थी कि भाई से लिपट कर भी लव बड़े भोले तरीके से छुप छुप कर उसे आँखों से डरा रहा था. मैंने कहा – ‘यह फोटोस्टेट मैं अपने पास रखता हूँ. परसों आऊँगा तो इसी की एक और करा लाऊंगा.’ पर लव कहाँ मुझे छोड़ने वाला था. वह फिर उस कागज़ को उठा कर दौड़ने लगा कि ‘सर एक और करा लाता हूँ प्रॉब्लम क्या है,’ पर मैंने उसे रोक दिया और गुस्से में कहा – ‘नहीं. आज पढ़ाई करो बैठ कर. यह कागज़ मैं कुश को दे जा रहा हूँ. अभी वही रखेगा. जब चला जाऊं तब दोनों मिल कर इसकी एक और कॉपी करा लेना.’ कह कर मैंने कुश को वह फोटोस्टेट देनी चाही तो लव गिड़गिड़ाता सा बोला – ‘मैं इसे दे दूंगा ना सर. आप यह फोटोस्टेट मुझे दे दीजिए.’ मुझे भी बहुत खीझ सी हुई और मैं बोला – ‘छोड़ो. दोनों में से किसी को भी यह कागज़ नहीं मिलेगा. मैं इसे अपने पास रखता हूँ. परसों दो कॉपियां लाऊंगा.’ और अब बारी थी कुश की. उसने गुस्से में आगे बढ़ कर लव की पीठ पर दे मारा एक ठूंशा. ‘सर कह रहे हैं मैं अपने पास रखूँ तो तू मानता नहीं, और मुझे मारता रहता है बस.’ और कुछ ही दिन बाद हँसते हँसते मैं जब सीता को ये सब बातें बता रहा था तब वह भी हंसी दबा गई. पर प्रत्यक्ष में हाथ जोड़ कर बोली – ‘सर. मैं आप से इन दोनों के बिहेवियर पर माफी मांगती हूँ.’ मैंने कहा – ‘जाने दीजिए. बच्चों में क्रेज़ तो होता ही है. दोनों का आपस में खूब प्यार लगता है. पर लव ज़्यादा ही गुस्से वाला है.’ उस समय लव चुपचाप अपनी मम्मी की उपस्थिति के कारण बहुत गंभीर स्कॉलर की तरह फैक्टर के नए मेथड वाली एक्सरसाईज़ कर रहा था. मैंने यह बात उसी रात बेटे से जा कर बताई और पत्नी को तो वे भी खूब हँसे, लव कुश के अनिल कुंबले के ऑटोग्राफ पर एक दूसरे को ठूंशे मारने पर.

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