Saturday, October 20, 2012

प्रेमचंद सहजवाला का वृहद उपन्यास 'नौकरीनामा बुद्धू का' नमन प्रकाशन अंसारी रोड दिल्ली प्रेमचंद सहजवाला का उपन्यास 'नौकरीनामा बुद्धू का' इस महीने आए उपन्यासों में एक महत्वपूर्ण उपन्यास है जो सरकारी विभागों में व्याप्त अकर्मण्यता, भ्रष्टाचार, जाति-भेद, की कलई ही नहीं उधेड़ता इस के साथ साथ विभाग में काम करने वाले बाबू वर्ग के नारी-पुरुष संबंधों के प्रति एक संकीर्ण मानसिकता को भी उजागर करता है. उपन्यास के फ्लैप पर ही एक प्रकार से सरकारी विभाग का फलसफा लिखा है कि यहाँ 'जो काम करे उसका भी भला जो ना करे उसका भी भला'. एक और पृष्ठ पर कोई कहता है - 'यहाँ जो भी पूरी की पूरी ए बी सी डी जानता है और एक से ले कर दस तक गिनती कर लेता है वह इस या किसी भी सरकारी विभाग के लिये फिट है.' उपन्यास में पढ़िए क्या होता है जब एक प्रोमोशन लिस्ट में सभी के सभी दलित होते हैं क्योंकि पिछले कुछ वर्ष से एक भी दलित प्रोमोट नहीं हो सका था. जब कोई विवाहोत्तर संबंध स्थापित होता है तब कैसा तमाशाईपन सा विभाग में नज़र आता है. साथ ही पढ़िए उपन्यास के नायक बुद्धू की पहली शादी और उसके टूटने की दर्दनाक कहानी. स्त्री विमर्श पर इस उपन्यास के चार अध्याय जिनमें बुद्धू की पहली शादी होती है और बुद्धू की ही सोच के कारण टूट कर उसे अपराध बोध दे जाती है, काफी मार्मिक बन पड़े हैं. शीघ्र प्रति खरीदिए और पढ़िए उपन्यास 'नौकरीनामा बुद्धू का' - लेखक प्रेमचंद सहजवाला, [प्रकाशक : नमन प्रकाशन अंसारी रोड दिल्ली.

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