Sunday, May 12, 2013

'आग' - कहानी : प्रेमचंद सहजवाला ('वर्तमान साहित्य' मई 2013 में प्रकाशित.

आग निशा की कार बेहद संतुलित सी हो कर दौड़ने लगी. केवल उसके मन की उड़ान की गति कुछ तेज़ थी पर उसे भी उसने संतुलित सा कर दिया और उसकी कार की गति में एक अजीब प्यारा सा रिदम आ गया. साथ में बॉस बैठा है, जितेन, पर वह गुनगुना सा रही है, जैसे जितेन तो उसका है ही, उसकी उपलब्धि को अब वह गुनगुना रही है. जितेन से उसने पूछा – ‘बोलो, अब किस तरफ मोड़नी है गाड़ी?’ जितेन बोला – ‘जिस तरफ मर्ज़ी मोड़ो, पर पहुंचेंगे हम वहीं, जहाँ हमें पहुंचना है!’ निशा चकरा सी गई, बोली – ‘क्या मतलब भाई. जहाँ जाना है उस जगह की कोई दिशा तो होगी ना! यह तो चारों तरफ सुनसान सा आ गया है!’ जितेन हंस पड़ा, बोला – ‘मेरा मतलब इसी सुनसान पर जो कि हम दोनों को बहुत प्यारा सा लगता है, दो किलोमीटर के करीब दौड़ा कर वह जगह आएगी, जहाँ एक प्यारे से फ़्लैट में हम कुछ देर उस आज़ादी का लुत्फ़ लेंगे, जो आज तुमने खुद को बख्शी है, या कि जो आज तुमने खुद के लिये बटोरी है!’ निशा इतने लंबे चौड़े वर्णन पर हंस पड़ी, बोली – ‘ओक्के, अब यह गाड़ी सीधी ही चलेगी. यहाँ न मेरे मियां का दखल न तुम्हारी उस्स्स् का...यानी मेरी कुछ देर की सौतन का... हा हा हा हा...’ - ‘हा हा... देखो ना, आज़ादी पाने के लिये शहर से दूर किसी उजाड़ सी जगह पर बन रही लोकालिटी की तरफ भागना पड़ रहा है!’ - ‘वो भी किसी दोस्त से कुछ घंटों के लिये फ़्लैट भीख में मांग कर, कि तुमने अभी फ़्लैट जॉयन तो किया नहीं, आज थोड़ी देर के लिये हमें दे दो ना!...’ कहते कहते कहकहा मारते मारते निशा ने स्टीयरिंग से हाथ हटा कर हथेली से भीख का एक कटोरा सा बना दिया! – ‘पर कुछ भी हो, ये चंद क्षण जो हम दोनों साथ साथ हैं, हम दोनों ने बटोरे हैं. जाने फिर कब मिलें ये! ह ह ह ह...’ फिर एक प्यारी सी हंसी! सुनसान सड़क पर दूर से वह लोकालिटी नज़र आई जो बन तो लगभग गई है, पर अभी बहुत नगण्य लोग वहाँ आ कर रहने लगे हैं. कहीं मार्केट की खाली खाली बिल्डिंग तो कहीं अंदर की किसी सड़क पर खड़ी इक्का दुक्का कार. फ़्लैट का ताला खोलते ही जितेन ने कहा – ‘भला हो मि. तिवारी का जिस से मैंने सिर्फ इतना कहा कि मुझे सिर्फ तुम्हारा फ़्लैट अंदर से देखना है, चाभी आ कर यहीं, तुम्हारी सीट पर दे जाऊँगा, और उसने खुशी खुशी दे दी चाभी!’ निशा मज़ाक के मूड में थी, सो बोली – ‘तुमने उसे यह क्यों नहीं बताया कि मार्केटिंग की निशा के साथ रंगरली मनाने जा रहा हूँ! ह ह ह ह...’ निशा उड़ने के मूड में थी, ये चंद पल उसने हिम्मत कर के बटोरे हैं ना! जितेन बोला – ‘अरे तब भी वह दे देता. ऑफिस में तुम्हारी मेरी अंतरंगता कौन नहीं जानता. क्या तुम इतनी बड़ी मैनेजीरियल पोस्ट पर कोई रिलेशनशिप नहीं रख सकती?’ - ‘ऑफ कोर्स रख सकती हूँ.’ कह कर निशा ने अचानक अंदर घुसते घुसते होंठ भींच लिये. मन ही मन सोचने लगी – ‘ऐसा भी क्या दिखावा करना. सहारा तो ‘व्यक्तिगत’ का भी लेना पड़ता है ना!’ और दोनों फ़्लैट में ही थे. तिवारी ने यहाँ थोड़ा सा फर्नीचर रखवा दिया था. एक टेबल दो कुर्सियां, शीशा वगैरह भी और एक पलंग और पंखा तक. अरे एक छोटा सा फ्रिज भी रखा है यहाँ! तिवारी तो हफ्ते में एक बार यहाँ राऊंड लगाता भी है और दोनों मियां बीबी कुछ समय यहाँ गुज़ारते हैं. किचन का सिंक वगैरह भी अच्छी तरफ साफ़ सुथरा धोया हुआ था. निशा अचानक बोली – ‘ज़रूरी है कि इतनी सुनसान जगह पर तिवारी बीबी के साथ ही आता हो!’ फिर वह बड़े रहस्यात्मक तरीके से हंस पड़ी फिर चुप हो गई. जितेन बोला – ‘क्या हर सुनसान जगह पर कोई खूबसूरत गुनाह ही किया जाता रहेगा! क्या देवता लोग बीबियों के साथ यहाँ नहीं विचरते होंगे!’ - निशा कुछ ना बोली, पर उसकी आँखें बोल गईं कि ‘देवताओं से अधिक आज़ाद तो ब्रह्माण्ड में कोई था नहीं भाई! हा हा...’ फ़्लैट में इस के बाद सब कुछ स्वचालित सा हो रहा था. दरवाज़ा बंद करते ही एक प्यारा सा अँधेरा आ कर कमरे में रुका और निशा जितेन के साथ बेड पर एकाकार सी हो गई. फिर अचानक उठ खड़ी हुई जैसे कोई विद्रोह सा उसके मन पर छा गया हो. उस ने क्या किया कि पल भर में अपने बदन से हर कपड़ा अलग कर दिया, जितेन पर हुक्म सा चलाती बोली – ‘यह प्रोपोज़ल मेरा था कि हम कहीं चलें. इसलिए जैसा मैं कहूँ, वैसा ही करते जाओ बस.’ और जितेन भी पलक झपकते ही एक मशीन की तरह फर्श पर खड़ा हुआ और नंग धडंग सा हो गया और दोनों आकृतियाँ उस रहस्यमय अँधेरे को हिलाने डुलाने सा लगीं, कभी फोकस के अंदर, कभी फोकस के बाहर. जल्द ही सब कुछ हो गया. आज़ादी कितनी अल्पजीवी होती है! अफ़सोस! अधिक से अधिक आधे घंटे बाद ही दोनों आकृतियाँ कपड़े पहन रही थीं. और कुछ ही देर में फ़्लैट बंद भी हो गया और नीचे खड़ी कार चल भी पड़ी. फिर उस सुनसान सड़क में जिस दिशा से आए थे, उस से दूसरी दिशा में थोड़ी दूर किनारे पर एक चाय की झुग्गी नज़र आई. दोनों को जाने क्यों लगा, कि घरों की तरफ जाने से पहले, यहाँ इत्मीनान से इस चारपाई पर बैठ मिल कर एक एक कप चाय की चुस्कियां लें दोनों. चाय की चुस्कियां लेते लेते भी जाने क्यों, निशा उस झुग्गी के बाहर आसपास बैठे इक्का दुक्का गंवई से ग्राहकों की नज़र बचा कर जितेन से सट कर बैठ गई, फिर अचानक उसकी कमर के गिर्द अपनी बांह का घेरा डाल उसके कंधे को हल्का सा झटका दे दिया उसने, जैसे गोपनीयता का कोई अनुबंध हो उनके बीच, फिर उसने क्या किया कि अपने बाएं कपोल की ढलान को ही कहीं जितेन के बलिष्ठ कंधे से टिका दिया, जैसे वह किसी भी क्षण वहाँ से फिसल सकता है! चाय आ गई है और वह छोटा सा छोकरा चाय लिये जाने के इंतज़ार में खड़ा मुस्करा रहा है, इसका भी ध्यान निशा को नहीं रहा. फिर चाय ले कर वह भी जाने क्यों, उस लड़के की ही तर्ज़ में मुस्कराने लगी. जितेन से खूब बतियाया निशा ने और फिर चाय समाप्त हुई तो उठ खड़ी हुई वह. कार तो सड़क के उस पार खड़ी थी. जितेन का हाथ हाथ में थामे वह सड़क पार करने लगी... * * फ़्लैट में सब कुछ रोज़ की तरह था. यानी निशा के अपने फ़्लैट में. शाम हुए भी दो घंटे हो गए. नवीन आ चुका था. नवीन को पता है कि निशा की नौकरी कुछ भारी सी है, इसीलिए उसके लौटने का कोई एक वक्त नहीं है. कभी तो वह घर से निकलती ही एक बजे दोपहर को है, इस बीच वह लैपटॉप पर काफी कुछ ऑफिस का करती रहती है. नवीन अपने ऑफिस सुबह चला जाता है. कंपनी की बस है उसके लिये तो. कार अक्सर निशा के ही कब्ज़े में रहती है पर कभी ज़रूरत पड़े तो नवीन भी ले जाता है कार. निशा अपने बेडरूम में पलंग पर लेटी सुस्ता सी रही थी जाने क्या कर रही थी. या कुछ सोच रही थी. अपनी हथेलियां आपस में लॉक कर के उसने सिर और तकिये के बीच फंसा दी और छत पर चल रहे पंखे को देखती रही. उसकी दोनों कोहनियां सिर के नीचे दो पंखों सी दोनों दिशाओं में फ़ैली तकिये से कुछ ऊपर ही उड़ रही थी. पर अचानक फ़्लैट में किसी के आने की हरकत सी हुई. नवीन का दोस्त था कोई और नवीन ने ही दरवाज़ा खोला था. वह इस बीच बैठक में सोफे पर बैठा दूरदर्शन पर कुछ देख रहा था और उसने तो वहाँ की लाईट भी ऑन नहीं की थी. पर दोस्त आया तो उसने लाईट ऑन कर दी और दोस्त को सोफे पर बैठा कर उस से बतियाने लगा. निशा सोचने लगी कि अब उठ कर मियां के दोस्त के लिये चाय वाय बनाती हूँ. पर नवीन ने तो आ कर उसे थोड़ा सा चौंका दिया, बोला – ‘यह मेरा दोस्त है ना, बड़ा बुद्धू सा है. यानी थोड़ा इनोसेंट सा. शरीफ ही समझो. कह रहा है, आज कुछ ड्रिंक करने का दिल है.’ - ‘तो ड्रिंक लगा लो. फ्रिज में रखा तो है एक ‘टीचर्स’ का फुल. उस दिन तुमने कहा था तो मैं साऊथ एक्स से लेती ही आई थी फुल. पर तुमने शायद अभी तक इस्तेमाल नहीं की ना!’ - ‘गुड़.’ नवीन ने कहा तो पर उसके पास आज निशा को लगातार चौंकाने वाली चंद बातें थीं, निशा की जो समझ से ही बाहर थीं. नवीन से उसकी शादी को पांच साल हो गए हैं. पर दोनों इस बात से ना जाने क्यों खुश हैं कि चलो, अभी बच्चों का कोई झंझट हमारे सिर नहीं है. जब मन करेगा, बच्चे भी पैदा कर लेंगे! नवीन सेक्सी है खूब, पहले तो निशा को बहुत कहता था, चलो यहाँ वहाँ रोमांस करें. निशा ने पूरा को-ऑपरेट किया. हिल स्टेशन पर हर साल जाते रहे. नवीन लेकिन निशा को ले कर बड़ा नर्वस सा भी रहता था. कभी कभी दबी ज़बान कहता भी था – ‘नौकरी छोड़ क्यों नहीं देती? क्या ज़रूरत है ऐसी टफ जॉब की जिसमें आने जाने का कोई वक्त ही नहीं.’ निशा पक्के इरादे वाली औरत थी. नवीन के मन में एक बात उसने बिठा दी कि नौकरी वह कभी नहीं छोड़ेगी. उसने एम.बी.ए. किया है तो सिर्फ घर को सजाने और पति के नीचे लेटने के लिये नहीं... पर नवीन का पिछड़ापन वह पहचानती थी, हालांकि नवीन ने कभी उस से झगड़ा नहीं किया. बस एक नर्वसनेस उसके सर पर सवार रहती थी. पर आज तो नवीन ने कमाल ही कर दिया, जैसे उसका कायाकल्प हो गया हो. पहले तो वह इतना ही बोला था – ‘टीचर्स का फुल ले कर ना और शो केस से गिलास वगैरह ले कर तुम भी आ जाओ, थोड़ा ड्रिंक करने बैठते हैं!’ निशा ने कहा – ‘ड्रिंक कभी कभी तुम्हारे साथ करती तो हूँ!’ कह कर वह मुस्करा दी और नवीन की आँखों में आँखें डाल बोली – ‘जो आज़ादी तुमने दी उसका इस्तेमाल करती तो हूँ तुम्हारे साथ बैठ कर. तुमने ही तो एक दिन कहा था ना, पुरुष ड्रिंक कर सकते हैं तो औरतें क्यों नहीं? ड्रिंक का मुझे कोई चस्का नहीं, बहुत रेयर्ली ही पीती तो हूँ. पर अब तुम अपने दोस्त के साथ ड्रिंक करो मैं स्नैक्स वगैरह तैयार करती हूँ!’ पर नवीन के सिर पर एक ज़िद सी सवार है आज तो, उसे देख बोली निशा – ‘ओक्के. आती हूँ. तुम जा कर बैठो. ये लो, ‘टीचर्स’ का फुल ले जाओ, मैं गिलास रख जाती हूँ.’ पर निशा को लगा जैसे आज नवीन तो पागल ही होने पर उतारू हो गया है. नवीन कहने लगा – ‘नहीं निशा. मैं चाहता हूँ आज सब कुछ तुम करो. ड्रिंक की सारी बैठक तुम करो. खाना वाना वह कहता है खाएगा नहीं. स्नैक्स वगैरह तो मिनटों में बन जाते हैं. तुम बस खुद ही ट्रे में ड्रिंक्स का सारा बंदोबस्त कर के आ जाओ, और सुनो, तुम ऐसे साड़ी में ही सती सावित्री बन कर मत आना पलीज़!...’ कह कर नवीन चुपके से ऐसे नाचने लगा जैसे नौटंकी वौटंकी की कोई नर्तकी हो या कोई वेश्या बेश्या. निशा को सिर्फ इतना ध्यान आया कि जब कभी महीने में एकाध बार ड्रिंक करना होता है, वह अपनी एक फ्रेंड जौसना के पास चली जाती है. जौसना अकेली ही रहती है और उसके सब लोग तमिलनाडु की तरफ कहीं रहते हैं. ड्रिंक ज़्यादा नहीं करती निशा, सिर्फ मानो महीने भर की थकान दूर करने को खूब बातें करती है जौसना से और खूब स्नैक्स वगैरह खाती है और धीरे धीरे ड्रिंक के सिप्स का मज़ा भी लेती सुस्ताती है बस. जौसना तो कभी कभी डाऊन भी हो जाती है पर निशा बहुत संतुलित है. उसने तो हर चीज़ में एक ही बात सीखी है, संतुलन. अधिक उत्तेजना की उसे कभी ज़रूरत महसूस ही नहीं हुई. जिंदगी में जो कुछ है, वह मानो उसका अधिकार है, कोई उसे छीनने की ताकत नहीं रखता बस. किसी के बाप की हिम्मत नहीं! कह कर वह खुद के साथ खूब खिलखिलाने भी लगती है! पर यह नवीन अचानक नौटंकी सा क्यों बन गया है! क्या मतलब है उसका? कल रात ही तो कह रहा था – ‘अब ना, इक्कीसवीं सदी आ गई है. बस, तुम मॉड बन जाओ मॉड. सेक्सी सेक्सी कपड़े पहना करो और ऑफिस जाया करो.’ निशा ने झिडक दिया – ‘मुझे अभी लैपटॉप पर बहुत डेटा भरना है. कुछ बिज़नेस संबंधी ई-मेल आने हैं. कोई फॉरेन पार्टी फोन भी कर सकती है. तुम अपनी यह मॉड वॉड बकवास रहने दो बस...और जाओ पलीज़..’. और आज कह रहा है – ‘तुम ड्रिंक ले कर आओ तो सती सावित्री बन कर साड़ी वाड़ी पहन कर मत आना. तुम यूं आना बस...’ और वह फुसफुसाने सा लगा. नवीन कुछ क्षण पहले यह भी कह रहा था – ‘देखो ना, ड्रिंक सेशन के लिये कमरा कैसा बन गया है बैठक में. ए.सी. चल रहा है और लाल बल्ब की मद्धम मद्धम सेक्सी सेक्सी सी रौशनी भी है.’ निशा ने उस तरफ झाँक कर देख भी लिया था. उसका दोस्त सोफे पर बैठा एक पत्रिका पढ़ रहा था. जैसा नवीन कह रहा था, वह लग भी रहा था, शरीफ सा. और इस समय लाल बल्ब की मद्धम रौशनी में भी किसी पत्रिका की या तो फोटो देख रहा होगा या यूं ही नज़रें गाड़ कर बैठने के लिये देख रहा होगा पत्रिका. नवीन कह रहा है – ‘यह साड़ी उतार देना. ब्लाऊज़ भी. और भले पेटीकोट पहने रखो, पर ज़रा कमर से नीचे तक बांधना...सिर्फ ब्रा नज़र आए, वह तुम्हारी पिंक वाली...’ और निशा को आया गुस्सा उसने क्या किया कि सामने खड़े बेहूदा तरीके से खीसें निपोर रहे नवीन का पूरा शरीर दरवाज़े की तरफ रोटेट कर दिया और उसे ज़ोर से धक्का दे कर दरवाज़े की तरफ पहुंचा ही दिया, बोली – ‘गेट लॉस्ट यू रास्कल...’ नवीन के पास बेहूदा तरीके की मुस्कराहट जारी रखते हुए भी कमरे से निकल जाने के अलावा कोई चारा नहीं था. दोस्त के सामने वह खिसियानी सी हँसी हँसता बैठ गया. निशा बैठक में गई तो हाथ की ट्रे में ‘टीचर्स’ का फुल था और दो गिलास. उसने बैठक के उस पोर्शन में पहुँचते ही स्विच ऑन कर के सहसा ट्यूब लाईट की तेज़ तीखी रौशनी कर दी कमरे में. दोस्त खड़ा हो कर हाथ जोड़ने लगा. निशा ने भी ट्रे सेंटर टेबल पर रखी और दोनों हाथ जोड़ कर मुस्कराई वह. बोली – ‘कैसे हो आप?’ - ‘मैं ठीक हूँ.’ दोस्त इस बात पर भी चकित था कि निशा तो पहली बार उस से मिल रही है, फिर भी, कैसे तो आत्मीयता से पूछ रही है – ‘कैसे हो आप?’ वह विनम्र सा मुस्करा दिया. निशा ने वार्तालाप को अगले क्षण ही समाप्त भी कर दिया. ट्यूब लाईट ऑफ कर के दोस्त से बोली – ‘आप लोग ड्रिंक करो, मैं कुछ बनाती हूँ,’ और वह उस ‘मद्धम मद्धम सेक्सी सेक्सी’ रौशनी के माहौल से दूर जाने लगी और उसके कदम फ्रिज की तरफ बढ़ रहे थे जो इधर किचन के बाहर ही रखा था. दोस्त पीछे से बोला भी – ‘आप भी आ कर कुछ लो ना...’ पर निशा के सधे हुए कदम उस जगह से दूर ही जाते रहे बस... निशा ने तो दोस्त की बात का कोई जवाब ही नहीं दिया. निशा किचन में जा कर कुछ चीज़ें तेज़ रफ़्तार से तैयार करने लगी और घंटे भर में दोस्त निपट गया. निशा ने वहाँ सलाद और कुछ नमकीन चीज़ें बना कर रख दी थीं और अब की बार ना तो दोस्त की ना नवीन की जुर्रत हुई कि कुछ कहे. निशा आ कर अपने बेड पर ही तकिये से टेक लगा कर लैपटॉप पर काम करने लगी. इधर हल्का हल्का एफ.एम. संगीत भी चल पड़ा और निशा की अंगुलियां लैपटॉप पर चलने लगीं, गीत बज रहा था – ‘दिल ढूँढता..., है फिर वही...’ निशा ने इस बेडरूम की ट्यूब बंद कर के बिल्कुल अँधेरा ही कर दिया और लैपटॉप में आँखें गड़ा कर काम करने लगी... रात हो गई थी. दोस्त जा चुका था. रात का खाना भी हो गया. दोनों नवीन और निशा कुछ बोले ही नहीं. बोले तो दफ्तर की और इधर उधर की जनरल बातें बतियाते रहे दोनों, जैसे व्यक्तिगत बातें करने से कतरा रहे हों दोनों. रात आगे बढ़ी तो सब कुछ सिमटने सा लगा. सब कुछ सिमट कर दोनों बेडरूम आए तो नशे के कारण नवीन जल्द ही बिस्तर पर लेट गया और गहरी नींद में खो गया. पर अभी निशा के चौंकते चले जाने को जाने क्या कुछ और था घर में! जब नवीन रात गहरी नींद में सो जाता है तब निशा बेड पर लैपटॉप रख कर काम नहीं करती, वरन् वह एक तीसरे कमरे में जहाँ लैपटॉप स्टैण्ड भी है, बल्कि एक प्रकार का स्टडी रूम और कम्प्यूटर हॉल बना हुआ है, आ कर काम करती है. सन्नाटा चारों तरफ फ़ैल सा गया था. निशा ने समय देखा तो तारीख भी बदल चुकी थी. उसकी नौकरी सचमुच बहुत भारी सी है. सेलफोन और लैपटॉप साथ रखती है वह, किसी भी समय बेल्जियम या यू.के से किसी भी पार्टी का फोन आ जाता है और खूब देर उनको अपने स्टफ के बारे में बताना पड़ता है. कभी कभी तो एकाध हफ्ते का ही टूर भी लग जाता है. पिछली बार बेल्जियम गई तो मीटिंग्स तो केवल तीन तीन चार चार घंटे की दो ही थीं, पर हफ्ता भर लगा आने जाने में. वह तो बेल्जियम से निपट कर एक ट्रेन द्वारा जर्मनी भी हो आई. वहाँ जौसना ने किसी सहेली के बारे में बताया था कि उस से मिल कर भी आना और इसी बहाने जर्मनी भी देख आना... * * लैपटॉप और मोबाईल अपनी जगह रख कर भी निशा को फ्रेश होने की ज़रूरत पड़ गई. वह वाशरूम में जा कर मुंह धोने लगी फिर मुंह पर थोड़ा उबटन भी मल लिया, दिन भर की गर्द हटाने के लिये. फिर वह अपने गाऊन में ही, जो उसने खाना खाने के ठीक पहले पहन लिया था, आ कर कम्प्यूटर हॉल में लैपटॉप के सामने बैठी. नवीन उसके पारदर्शी गाऊन के साथ भी अक्सर तांक झाँक सी करने की एक्टिंग कर के खिलखिलाता है. निशा मुस्कराती है – ‘लो यह तुम्हारे और मेरे बीच विलेन है ना, यही उतार देती हूँ बस!’ पर आज लैपटॉप पर काम शुरू करने से पहले तो निशा को यूं ही खयाल आया कि वह अपनी फोटो-वीडियो की फाईलों में कुछ ताज़ा पिक्चरें तो एक बार फिर देख ले! जर्मनी में जौसना की सहेली उस के पति और बच्चों के साथ समय अच्छा कटा था सो उस हसीन मुलाक़ात के कई फोटो थे और वीडियो क्लिप! उन्हें वह कभी कभार प्यार से फिर फिर देखती है! जर्मनी की ऊंची आलीशान इमारतें और आसपास सड़क पर जाती खूबसूरत चमचमाती कारें या किसी मॉल वॉल में खड़े खूबसूरत रौशनी उगलते से लोग! निशा को ड्यूटी के दौरान ऐसी ही सौंदर्य भरी अनुभूतियो किए बीच खुद को देखना बहुत भाता है! पर यह क्या, पिक्चरों वाले पृष्ठ पर एक नया ही फोल्डर खुला है, नाम है ‘माई वाईफ माई डार्लिंग’! ज़रा देखें तो, क्या बनाया है मियां ने. मेरी कौन सी तसवीरें हैं इस नए फोल्डर में! पर निशा को जैसे बुरी तरह शॉक सा लगा. नवीन बकता कितना है – ‘इक्कीसवीं सदी आ गई है इक्कीसवीं सदी! अब पूरी आज़ादी से रहो तुम! इक्कीसवीं सदी की सब से बड़ी देन है फ्री सेक्स’... आज भी उसका बस चलता तो वह ड्रिंक कर कर के नंगी ही परोस देता मुझे उस तथाकथित बुद्धू से दोस्त के सामने. रासकल! अब निशा को लगा कि वह दोस्त शरीफ लग तो रहा था, पर कपड़े उतार कर कोई भी औरत किसी भी अच्छे भले साधु तक को बदमाश में बदल सकती है! और नवीन तो बैठा ही था परोसने के लिये! इस समय भी निशा को बुरी तरह चक्कर से आने लगे हैं. उसकी बिल्कुल न्यूड न्यूड तसवीरें यहाँ इस कम्प्यूटर के फोल्डर में कैसे आ गई! नवीन अपने लैपटॉप पर काम करता है पर कभी कभी उसका भी ले लेता है. कब खींची नवीन ने ये तसवीरें! निशा ने गेस किया कि दो तीन तस्वीरों में तो वह निपट निर्वस्त्र शीशे के सामने खड़ी है और नवीन ने ही उसे कहा था कि ज़रा आँखें बंद करो ना. मैं तुम्हें शीशे में देखते रहना चाहता हूँ. लगता है रास्कल ने आँखें बंद करते ही डिजिटल निकाली होगी और शीशे में मेरी नंग धडंग तस्वीर खींच दी होगी. और यह! यहाँ तो मैं सो रही हूँ. सम्भोग को तैयार! और थकावट में आँखें बंद हैं मेरी, और नवीन ने यहाँ भी... निशा को चकराहट असह्य सी लगने लगी. यह बाथरूम में मैं नहा रही हूँ और मेरा ही मियां बाथरूम का हल्का सा खुला दरवाज़ा सरका कर मेरी तस्वीर खींच रहा है!... रास्कल अगर खींची भी हैं तो यहां कम्प्यूटर में किस कारण से लगा रखी हैं! ह्म्म्म?... उसका जी किया कि उठ कर नवीन को उसके बिस्तर से घसीटे और उसका गिरेबान पकड़ कर ज़मीन पर खड़ा कर दे, खींच कर उसके गाल पर एक तमाचा जड़ दे और पूछे – ‘क्या है यह सब? नॉनसेन्स! अपने आप को समझते क्या हो?...’ पर निशा ने घोर धीरज भी जिंदगी में सीखा है. उस ने लगभग एक दर्जन ऐसी ही तसवीरें एक एक कर के इत्मीनान से डिलीट कर दी. फिर वह वहाँ से ध्यान हटा कर व्यस्तता में आ गई और सोचा मेल बॉक्स तो खोलूँ. कोई ज़रूरी मेल ना आया हुआ हो. मेल बॉक्स में वैसे तो चालीस चालीस से कम मेल्स नहीं होतीं, पर काम की दो चार चुनने में ही वक्त लग जाता है. निशा ने मेल बॉक्स खोला तो और भी चकरा गई. सैंतीस ई मेल्स में से उन्नीसवीं मेल देखे तो वह नवीन महाराज की तरफ से ही आ रही है. मेल खोलते ही पढ़ा तो उसके साथ उन्हीं तस्वीरों का अटैचमेंट भी है, मेल पर नवीन ने लिखा है – ‘माई डार्लिंग. कभी क्या खुद को भी तुमने गौर से देखा है! देखो ना, तुम्हारी सारी निर्वस्त्र सुंदरता मैंने कैसे कम्प्यूटर में कैद कर रखी है! मैं चाहता हूँ तुम सौ फी सदी से भी ज़्यादा आज़ाद रहो. जहाँ चाहो, अपनी इस नायाब सुंदरता का इस्तेमाल करो. दिखाओ, अपने दोस्तों को दिखाओ, मेरी तरफ से तुम्हें पूरी छूट है. जिसे मर्ज़ी भेज दो ये तसवीरें डार्लिंग, मैंने कहीं नहीं भेजी, सिर्फ तुम्हें ही इस मेल में अटैच कर के भेजी हैं क्योंकि तुम्हारी इजाज़त के बिना भला इन्हें कहाँ भेजूं. इस इक्कीसवीं सदी में कितने तो मेल आते हैं, लड़कियां मुझे फेसबुक पर लिखती हैं, अपना ई मेल दे दो, मैं तुम्हें अपनी तसवीरें भेज दूंगी. उन लड़कियों को खूब लुत्फ़ मिलता होगा ना... ऐसा करते... तुम भी इस नई लहर वाली आज़ादी का खूब लुत्फ़ उठाओ डार्लिंग, आज़ाद परी बनो, आखिर सुंदरता होती किसलिए है...’ निशा को लगा अभी कोई कैंडल जला कर वह इस मेल को ही जला देगी. वह फिर डर गई, कहीं वह कैंडल जला कर नवीन को ही ना भस्म कर दे! इस खयाल से वह खूब डरी! रास्कल साला... बकवास सोचता है और बकवास करता है. निशा ने धीरज से तो काम लिया, उस मेल के उत्तर में ही नवीन को लिखा – ‘यू बास्टर्ड, तुम ने अपनी बीबी को समझ क्या रखा है?’ उसने मेल अलग से भेजा और नवीन वाला मेल होंठों को निर्मम तरीके से भींच कर डिलीट कर दिया. पर उस का गुस्सा ठंडा कहाँ हुआ था! आज कोई काम नहीं करूंगी मैं. उसने सब कुछ वाईन्ड अप कर दिया और लाईट ऑफ कर के किचन के बाहर रखे फ्रिज तक गई और एक जग ठंडे पानी का भर कर अपने बेडरूम में आ गई. उसका बास्टर्ड पति गहरी नींद में सो रहा था, या नशे में ही होगा अब तक. उसने जग को ही अपने खुले मुंह में उल्टा कर कई घूंट ठंडा पानी हलक के नीचे उतारा और लाईट ऑफ कर के डबल बेड के अपने वाले हिस्से में सो गई. पर उसके चेहरे से आग हट ही नहीं रही थी. उसने अपनी हथेली अपने संतप्त माथे पर रख दी और उसे लग रहा था उसका माथा भी बुरी तरह जल रहा है! एक आग है जो ठंडी होने का नाम ही नहीं ले रही! जैसे वह खुद ही भस्म हो जाएगी... संपर्क : प्रेमचंद सहजवाला C 106 डबल स्टोरी, रमेश नगर, नई दिल्ली – 110015 ph 09899706702, 011-25923704. e mail: premuncle@gmail.com

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