संघ का हिंदुत्व
प्रेमचंद सहजवाला
इन दिनों संघ बनाम हिंदुत्व की खूब चर्चा
है. कतिपय मुस्लिम नेताओं ने संघ के वरिष्ठ अधिकारी इन्द्रेश कुमार के आगे कुछ प्रश्न
रखे जिनका उत्तर इन्द्रेश कुमार के पास नहीं था सो उन्होंने यह कह कर टाल दिया कि
मुस्लिम नेता पहले इन प्रश्नों के उत्तर के लिए एक सम्मेलन बुलाएं जिसमें संघ उन
प्रश्नों के उत्तर देगा.
दरअसल भारत में हिदुत्व के प्रथम मसीहा
विनायक दामोदर सावरकर थे जिन्होंने ब्रिटिश काल के दौरान ही कहा था कि भारत में जो
गैर हिन्दू हैं, अगर उन्हें भारत में रहना है तो धर्म परिवर्तन कर के वे हिन्दू बन
कर भारत में रहें. उस पर तुर्रा यह कि जो ये परिवर्तित हिन्दू होंगे उन्हें जाति
की सीढियों पर किसी निम्न जाति में रखा जाएगा. संघ के द्वितीय सरसंघचालक माधवराव
सदाशिव राव गोलवलकर ऐसा ज़रूरी नहीं समझते कि मुस्लिम या ईसाई हिन्दू बन कर ही इस
देश में रहें. अलबत्ता वे भौगोलिक एकता (integrity) को अस्वीकार कर के सांस्कृतिक
एकता की बात करते हैं. यानी इस देश में मुस्लिम
रहें या ईसाई, वे हिन्दू संस्कृति अपना कर ही रहें. यह भी कि इस देश के
नागरिकों में सर्वोपरि हिन्दू हैं और बाकी धर्मों के लोगों को दोयम दर्जे की
नागरिकता दी जाए. गोलवलकर हिटलर के प्रशंसक थे हालांकि जब हिटलर ने सत्ता अपनाई तब
उन्होंने हिटलर की सत्ता की लोलुपता की भरपूर आलोचना भी की. बहरहाल, सावरकर और
गोलवलकर के हिंदुत्व केवल भौगोलिक या सांस्कृतिक हिन्दू एकता तक सीमित नहीं थे.
दोनों के बीच एक और बात पर गहरे मतभेद रहे कि हिन्दू धर्म से हिंदुत्व हुआ या इसके
उलट हिंदुत्व से हिन्दू धर्म उपजा. गोलवलकर इन में से बाद वाले मत के समर्थक थे.
साथ ही यह भी कि सावरकर नास्तिक थे व गोलवलकर आस्तिक. सावरकर गोमांस को आर्थिक
स्थिति से जोड़ते थे जबकि गोलवलकर गोमांस खाने के कट्टरतम विरोधी. इन बातों से यह
तो स्पष्ट है कि कदाचित संघ भी हिंदुत्व को कोई धर्म नहीं मानता, वरन अभी तक के
संघ के कार्यकलापों से यही लगता है कि संघ हिन्दू संस्कृति को ही सबके लिए
अनिवार्य मानता है. पर प्रश्न उठता है कि क्या जितने भी गैर हिन्दू धर्म के लोग
हैं, क्या उनके लिए हिन्दू संस्कृति पर जीना भी एक धर्मपरिवर्तन नहीं माना जाएगा.
संघ के कई नेता समय समय पर जोर देते रहे हैं कि मुस्लिम लोग पहले राम और कृष्ण को
मानें फिर इस देश में रहें. स्मरण रहे कि रामजन्मभूमि के आन्दोलन में भी एक मस्जिद
गिरा कर भव्य मंदिर बनाने की बात कही गयी थी. अर्थ कि गैर हिन्दू उचित या अनुचित
कारणों से यहाँ रहें तो हिन्दू बन कर ही, बाकी अपने नाम के आगे लेबल वे भले ही
अपने धर्म का लगाएं. जिन मुस्लिम नेताओं ने इन्द्रेश कुमार के आगे प्रश्न रखे
उन्होंने यह भी कहा कि मुस्लिम किसी भी हालत
में ‘वन्दे मातरम’ या ‘भारत माता की जय’ नहीं कहेंगे. स्पष्ट है कि जिन
बातों पर संघ का वर्षों से आग्रह रहा है वह मुसलमानों को स्वीकार्य नहीं है और संघ
की तमाम बातें मात्र असंभव स्वप्न हैं. देश की सीमा पर जान लड़ा कर शहीद होने वाले
मुसलामानों की भी कमी नहीं. पर संघ उनकी शहादत को राष्ट्रीयता न मान कर केवल अपने
मानदंडों पर ही उन्हें सांस्कृतिक राष्ट्रवादी बनाना चाहता है. और संघ यह भी जानता
है कि वे मुसलमानों व अन्य गैर हिन्दू लोगों से असंभव परिवर्तन चाहते हैं, जिसके
कारण इस बात पर आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि संघ के सामने हिन्दू राष्ट्र का या
हिंदुत्व का कोई भी बना बनाया खाका नहीं है. अस्तु.
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